हैदराबाद में उच्च शिक्षा संस्थानों में कई आदिवासी छात्र पढ़ते हैं, लेकिन यह संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है. और इसकी शायद सबसे बड़ी वजह है कि हैदराबाद में आदिवासी छात्रों के लिए हॉस्टल नहीं हैं. हॉस्टल की कमी इन लोगों के लिए एक बड़ी बाधा है.
एसटी कोया वेलफेयर हॉस्टल, 2008 में कोठापेट के सरस्वती नगर इलाके में, तत्कालीन आंध्र प्रदेश के आदिवासी जन प्रतिनिधियों के प्रयासों से शुरू किया गया था. एक समय था जब इसके 10 कमरों और एक स्टडी सेंटर में 100 छात्र रहते थे, लेकिन आज बुनियादी सुविधाओं के अभाव में सिर्फ़ 30-40 छात्र ही यहां रह रहे हैं.
सुविधाओं के नाम पर यहां सिर्फ़ तीन शौचालय हैं, और वो भी बेहद ख़राब स्थिति में. रहने वाले छात्रों के लिए नहाने के लिए, बर्तन और कपड़े धोने के लिए एक खुली जगह है. चूंकि नलों से पानी नहीं बहता, इसलिए इन छात्रों को अपनी हर जरूरत के लिए एक पंप से पानी निकालना पड़ता है.
बारिश के पानी के रिसाव ने पूरी इमारत को कमजोर बना दिया है. छत, सीढ़ियों और दीवारों से कंक्रीट के ब्लॉक टूट कर जमीन पर गिर गए हैं, जिससे यहां के छात्रों की जान को ही ख़तरा बना रहता है.
हैदराबाद में 10 आदिवासी कल्याण हॉस्टल हैं, जिनमें से छह सरकारी इमारतों में और चार निजी परिसरों में चलाए जा रहे हैं. कोठापेट का यह हॉस्टल इकलौता है जो खासतौर पर कोया आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए बनाया गया है.
आदिवासी कल्याण विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, आदिवासी संगठनों के छात्रों और नेताओं द्वारा दिए गए अभ्यावेदन के बाद, आदिवासी कल्याण आयुक्त और आईटीडीए पीओ ने जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर स्थायी हॉस्टल बनाने का अनुरोध किया है.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ विभाग के पास तीन मंज़िला इमारत बनाने के लिए पैसा है, लेकिन हैदराबाद में सरकारी भूमि उपलब्ध नहीं है. इसलिए अब विभाग इस स्व-प्रबंधित हॉस्टल को चलाने के लिए एक ऐसी इमारत तलाश रहा है, जिसे किराए पर लिया जा सके.
एक अधिकारी ने अखबार को बताया, “हमें एक हॉस्टल बनाने के लिए कम से कम 1,000-2,000 वर्ग गज भूमि की ज़रूरत है, ताकि उसमें 250 छात्र रह सकें. अगर राजस्व विभाग एलबी नगर या उप्पल में कहीं जमीन आवंटित कर सकता है, तो हम एक विशाल हॉस्टल का निर्माण कर सकते हैं.”