ओडिशा की 13 आदिम जनजातियों (पीवीटीजी) में से एक लांजिया सौरा समुदाय के लोग आज़ादी के इतने साल बाद भी विकास को तरस रहे हैं. अधिकारियों की दशकों की अनदेखी अब इन्हें खटक रही है.
रायगड़ा ज़िले के गुनुपुर इलाके में सिंचाई के बुनियादी ढांचे और पेयजल की आपूर्ति की मांग उन्होंने अब सीधा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सामने रखी है. गुनुपुर उप कलेक्टर सोनल जेना के माध्यम से उन्होंने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को एक ज्ञापन भेजा है.
लांजिया सौरा के सैकड़ों लोग ज़िले की शगड़ा पंचायत में रहते हैं. हालांकि इन आदिवासियों की आजीविका मुख्य रूप से लघु वनोपज को इकट्ठा करके उसकी बिक्री पर टिकी है, लेकिन इनमें से कई खेती भी करते हैं.
उन्होंने ज्ञापन में कहा है, “खेती करने के लिए सिंचाई बेहद ज़रूरी है. सिंचाई की उचित सुविधा न होने की वजह से, हमें सूखे का सामना करना पड़ रहा है और हम सही तरीक़े से खेती करने में असमर्थ हैं.”
आदिवासियों ने मांग की है कि खेतों की सिंचाई और सूखे से बचाव के लिए पास की रुगुडी क्रीक में नए बांध बनाए जाएं. लगभग 40 साल पहले, इसपर तीन छोटे बांध बनाए गए थे, जिससे इन लोगों को खेती में मदद मिलती थी. आदिवासियों ने पिछले कुछ सालों में अलग-अलग तरह की फ़सलें उगाई हैं.
लेकिन अब मरम्मत की कमी ने बांधों की हालत खस्ता कर दी है. खेती को बढ़ावा देने के लिए इन बांधों को फिर से बनाना बेहद ज़रूरी है.
यह आदिवासी अपने अधिकारों को लेकर जागरुक हैं. वो जानते हैं कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें ज़मीन का पट्टा पाने का पूरा अधिकार है. लेकिन इनमें से कई आदिवासियों ने शिकायत की कि उनके पास उनकी ज़मीन और खेत के पट्टे नहीं हैं.
सिर्फ़ सिंचाई और पेयजल ही नहीं, इनमें से अधिकांश आदिवासी खाद्य सुरक्षा जाल से भी बाहर हैं. सरकार गरीबों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राशन कार्ड देती है, जिससे उन्हें मासिक राशन मिलता है. लेकिन इनमें से कई आदिवासियों के पास कार्ड ना होने की वजह से वह खाद्य सुरक्षा के लाभों से वंचित हैं.
लांजिया सौरा आदिवासियों की कई बस्तियों में सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति नहीं है. आदिवासियों के हितों के लिए लड़ने वाले संगठन शगड़ा पंचायत उन्नयन परिषद ने सरकार से इस आदिम जनजाति की हालत पर ध्यान देने, और उनके बुनियादी मुद्दों को सुलझाने की मांग की है.
वैसे तो लांजिया सौरा विकास एजेंसी (एलएसडीए) इन आदिवासियों के कल्याण और विकास के लिए विशेष रूप से काम कर रही है, और एजेंसी द्वारा लाखों रुपये खर्च भी किए जा रहे हैं. लेकिन इन आदिवासियों की हालत देखकर लगता तो नहीं कि वह पैसा इनके ही हित में ख़र्च हो रहा है.