झारखंड के देवघर ज़िले में स्थित माथाटांड गाँव में आज भी आदिवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. यहां रहने वाले हाजारों आदिवासियों को किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है.
शौचालय की समस्या
इस गाँव 255 परिवार रहते हैं. गाँव के लोगों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार गाँव में पांच साल पहले दस शौचालय का निर्माण किया गया था.
लेकिन इतने सालों में इन शौचालयों का रखराखाव नहीं किया गया. जिसके कारण आज इनकी हालत इतनी खाराब हो गई है की इन्हें इस्तेमाल कर पाना भी मुश्किल है.
कच्चे माकान और पेयजल की समस्या
गाँव के 80 से 85 प्रतिशत घर आज भी मिट्टी के बने हुए है. इन घरों के अंदर कोई शौचालय की सुविधा मौजूद नहीं है. हालांकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 34 मछुवारों को घर दिए गए थे. ये घर भी इन्हें अर्धनिर्मित अवस्था में मिले थे.
पीने के लिए पानी की कोई सुविधा मौजूद नहीं है. गाँव में जलापूर्ति योजना के नाम पर पाइप तो बिछी है.
लेकिन इन नलों से पानी आज तक किसी भी आदिवासी परिवार को नहीं मिला है. गाँव के लोग आज भी पानी के लिए पास के इलाकों में पाए जाने वाले झरनों पर निर्भर है. शौचालय के लिए ये लोग जंगलों में जाते है. ऐसा जीवन व्यापन करना कई बीमारियों का कारण भी बन सकता है.
गाँव की महिलाएं माला बेसरा, गोरकी माझियान और अन्य महिलाओं ने बताया की वो खुले में शौच करने पर मजबूर है.
रोज़गार में सुधार की जरूरत
यहां के रोजगार की हालात भी बेहतर नहीं है. यहाँ से लोगों को गुजरात, महाराष्ट्र या फिर कर्नाटक राज्य में मज़दूरी के लिए जाना पड़ता है.
योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
राज्य सरकार द्वारा आदिम जनजातियों के लिए बनायी गयी योजनाओं का भी लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है. गाँव में लगभग 40 से 50 पहाड़ी आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. जिनको किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिला है.
इनके कोई कार्ड भी नहीं बनाए गए है. आदिम जनजाति पेंशन योजना से भी गाँव के सभी निवासी वंचित है. जबकि कानून ये कहता है की पहाड़िया परिवार के 18 से 59 वर्ष के सदस्यों को पेंशन दी जाए.
इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रही डाकिया योजना का भी लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है. इस योजना के तहत प्रत्येक निवासी के घर 35 किलो चावल देने का प्रावधान है.
इस सिलसिले में गाँव में रहे रहें इन सभी पहाड़ी आदिवासियों ने डीसी देवघर को पत्र भेजा है. कई बार स्थानीय प्रशासन ने इन शिकायतों पर कार्रवाई का भरोसा दिया है. लेकिन ये शिकायत आज भी मौजूद हैं.
आज भी गाँव के सभी आदिवासी ओर अन्य समुदाय कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते है. केंद्र सरकार ने साल 2023-24 के बजट में आदिम जनजातियों के विकास पर 15000 करोड़ रूपये ख़र्च करने का ऐलान किया था.
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में कई जनसभाओं में दिए भाषण में इस घोषणा का ज़िक्र किया है. लेकिन ऐसा नहीं लगता है कि इस घोषणा को ज़मीन पर उतारा गया है.