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ओडिशा: आदिवासी हॉस्टलों में लड़कियों के यौन-शोषण में अध्यापक और स्टाफ़ शामिल है

2017 में कोरापुट जिले के एक गर्ल्स हाई स्कूल में दसवीं कक्षा की एक छात्रा छह महीने की गर्भवती पाई गई थी. हेडमास्टर अपराधी निकला और उस पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया.

ओडिशा के आदिवासी आवासीय विद्यालयों में लड़कियों के खिलाफ यौन शोषण के परेशान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं. आदिवासी छात्राओं के यौन शोषण के मामलों के बाद कई तरह की सावधानी बरतने की सिफ़ारिश की गई थी.

इन मामलों के इतिहास की समीक्षा करने के बाद सरकार द्वारा संचालित एक शोध संस्थान ने 2018 में सिफारिश की थी कि छुट्टियों से लौटने के तुरंत बाद आवासीय विद्यालय में लड़कियों के लिए गर्भावस्था परीक्षण के साथ नियमित स्वास्थ्य जांच की जानी चाहिए.

जबकि संस्थान के स्वयं के अध्ययन से पता चला है कि स्कूली अवधि के दौरान यौन शोषण के बड़ी संख्या में मामले घटित हुए. तो घरेलू समुदायों में भी दुर्व्यवहार के कुछ मामले घटित हुए थे.

अध्ययन में समीक्षा किए गए 29 मामलों में कम से कम 13 हेडमास्टर और 4 शिक्षक आरोपी थे.

ओडिशा राइट टू एजुकेशन फोरम के संयोजक अनिल प्रधान ने कहा कि आवासीय विद्यालयों में पढ़ने वाली कई लड़कियाँ पहली पीढ़ी की विद्यार्थी हैं. स्कूल परिसरों और बाहर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. यौन शोषण एक अभिशाप है जो आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के प्रयासों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.

आंकड़े

एसटी और एससी विकास, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री, जगन्नाथ सारका ने सितंबर 2023 में राज्य विधानसभा के पटल पर धूमिल आधिकारिक आंकड़े रखे थे. एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि पिछले पांच वर्षों में विशेष रूप से आदिवासी लड़कियों के लिए बनाए गए 188 आवासीय उच्च विद्यालयों में यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली लड़कियों के 22 मामले थे. जिनमें 34 लोगों को आरोपी के रूप में नामित किया गया था. इनमें से 12 छात्राओं ने शिशुओं को जन्म दिया था. इन स्कूलों में 62,385 लड़कियां पढ़ती हैं.

अगर विभाग के अंतर्गत कार्यरत सभी 1,737 स्कूलों को ध्यान में रखा जाए तो संकट बहुत बड़ा हो सकता है.

सरकारी रिकॉर्ड कहता है कि इन स्कूलों में 4 लाख 26 हज़ार 903 छात्र पढ़ते हैं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं. सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जवाब के हवाले से एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 और 2015 के बीच इन 1,737 स्कूलों से यौन शोषण के 16 मामले सामने आए.

हेडमास्टर और शिक्षक ही आरोपी

2018 में सरकार द्वारा संचालित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (एससीएसटीआरटीआई) द्वारा ‘ओडिशा के आवासीय स्कूलों में यौन दुर्व्यवहार की घटनाओं पर निवारक हस्तक्षेप का प्रभाव’ शीर्षक से आयोजित एक अध्ययन के हिस्से के रूप में शोधकर्ताओं ने आवासीय विद्यालयों में रिपोर्ट किए गए यौन शोषण के कई मामलों की जांच की. इनमें से अधिकतर मामलों में यौन उत्पीड़न के आरोप सही पाए गए.

शोधकर्ताओं ने पांच जिलों – कोरापुट, बालासोर, नयागढ़, मयूरभंज और सुंदरगढ़ में 2011 और 2016 के बीच हुए यौन शोषण के 29 मामलों की समीक्षा की. चौंकाने वाली बात यह है कि इन मामलों में 13 हेडमास्टर और 4 शिक्षक आरोपी थे.

स्टडी में पाया गया था कि ऐसे कुछ मामले थे जहां स्कूल के शिक्षण या गैर-शिक्षण कर्मचारियों द्वारा बोर्डिंग-स्कूल की लड़कियों का यौन शोषण किया गया था. वहीं कुछ अन्य मामलों में छुट्टियों के दौरान रिश्तेदारों सहित बाहरी लोगों द्वारा लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया.

जांच रिपोर्ट से पता चलता है कि स्कूल परिसर के अंदर रहने वाले स्कूल स्टाफ द्वारा अक्सर बोर्डिंग-स्कूल की लड़कियों को घरेलू मदद के रूप में उपयोग किया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे शोषण और यौन शोषण के मामलों में ज्यादातर हेडमास्टर या प्रभारी हेडमास्टर शामिल होते हैं.

यौन शोषण के मामले

2017 में कोरापुट जिले के एक गर्ल्स हाई स्कूल में दसवीं कक्षा की एक छात्रा छह महीने की गर्भवती पाई गई थी. हेडमास्टर अपराधी निकला और उस पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया.

इससे पहले 2013 में इसी जिले के एक अन्य स्कूल के हेडमास्टर का बोर्डिंग स्कूल की चार लड़कियों के साथ अवैध संबंध था. विभागीय जांच में दोषी पाए जाने पर उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. हालांकि पीड़ितों की ओर से कोई मामला दर्ज नहीं कराया गया.

मयूरभंज जिले में एक स्कूल के हेडमास्टर पर पांच लड़कियों के यौन शोषण का आरोप लगा है. छात्रावास के हेडमास्टर और असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट को 2017 में निलंबित कर दिया गया था.

उसी साल आठ लड़कियों ने अपने हेडमास्टर के खिलाफ आरोप लगाए थे, जिन पर POCSO के तहत आरोप लगाए गए थे. इसी साल मयूरभंज के एक अन्य स्कूल में चार लड़कियों ने एक शिक्षक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. हालांकि, उस मामले में गवाह मुकर गए.

कोरापुट जिले के एक स्कूल में यौन शोषण का आरोप लगने के दो साल बाद ही राज्य सरकार ने एक हेडमास्टर को बहाल कर दिया.

प्रेग्नेंसी टेस्ट की सिफारिश

विश्लेषण में यह भी पाया गया कि आवासीय विद्यालयों की कुछ लड़कियों का छुट्टियों के दौरान उनके घर, गांवों में रिश्तेदारों या परिचितों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था. ऐसे में एससीएसटीआरटीआई, जिसने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की वित्तीय सहायता से अध्ययन किया था. उसने सिफारिश की थी कि छात्राओं को छुट्टियों से लौटने के तुरंत बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट के साथ नियमित स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए.

कालाहांडी जिले के वेलफेयर ऑफिसर अरबिंद रे ने कहा कि छात्रों के लंबी छुट्टियों से लौटने के बाद हम स्वास्थ्य जांच करते हैं. लेकिन हम प्रेग्नेंसी टेस्ट नहीं करते हैं. जब हम लड़कियों में कुछ रूपात्मक परिवर्तन देखते हैं तो हम सबसे पहले स्वास्थ्य जांच के लिए उनके माता-पिता की सहमति लेते हैं. उनकी सहमति के बाद ही लड़कियों को अलग-अलग परीक्षणों से गुजरना पड़ता है. छात्रों पर प्रेग्नेंसी टेस्ट एक नैतिक मुद्दा है और यह प्रतिबंधित है.

सेफ्टी गाइडलाइन

यौन शोषण की इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने 2013 में स्कूल हॉस्टल मैनेजमेंट गाइडलाइन जारी किए, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि किसी भी परिस्थिति में हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों को उनके शिक्षकों के आवास पर नहीं बुलाया जाना चाहिए.

इसमें कहा गया है कि छात्राओं के मामलों का प्रबंधन करने वाले सभी शिक्षक और कर्मचारी केवल महिलाएं होनी चाहिए.

वहीं 2017 में सरकार ने एक और गाइडलाइन जारी की, जिससे हर दो महीने में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग आयोजित करना अनिवार्य हो गया, जिसमें लड़कियों की सुरक्षा एक प्रमुख चर्चा बिंदु के रूप में सामने आई.

शोधकर्ताओं ने आवासीय विद्यालयों में जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया है. एक शोधकर्ता जो वर्तमान में किशोर स्वास्थ्य पर एक अध्ययन में शामिल है. उन्होंने खुलासा किया कि कुछ लड़कियों का जीवन तब खतरे में पड़ गया जब उनके सहयोगियों ने गलत समय पर गर्भनिरोधक गोलियाँ दी.

विधानसभा में अपने जवाब में मंत्री ने कहा था कि सरकार शिकायतें दर्ज करने के लिए टोल-फ्री टेलीफोन के प्रावधान, क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरे लगाने, शिकायत पेटियां लगाने, इन और आउट रजिस्टरों को मेंटेन रखने, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीमों द्वारा यौन उत्पीड़न समितियों और स्वास्थ्य जांच की स्थापना करने सहित सभी संभव कदम उठा रही है.

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