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मणिपुर: सुप्रीम कोर्ट का अस्पतालों में रखे शवों का 7 दिनों में अंतिम संस्कार का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन शवों की पहचान हो चुकी है और उनके लिए कोई दावेदार सामने नहीं आया है, उस मामले में राज्य सरकार मृतकों के नजदीकी रिश्तेदारों को सूचना दें. कलेक्टर और SP को इस बात की छूट होगी कि वह कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए कारगर कदम उठाएं ताकि मुर्दाघरों में रखे तमाम शवों का अंतिम संस्कार सही तरह से हो सके.

पिछले 6 महीने से भी ज्यादा वक्त से पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी जातीय झड़पों में 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. अब सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मणिपुर हिंसा में मारे गए लोगों के शवों को लेकर गतिरोध खत्म करने का आदेश दिया.

साथ ही परिवारों के लिए एक समय सीमा तय की कि वे या तो उन पहचाने गए शवों को स्वीकार करें जिन पर अभी तक किसी ने दावा नहीं किया गया है या राज्य सरकार को उनका उनके धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार करने दें.

अदालत ने कहा कि वह इस तनावपूर्ण स्थिति में शवों को लेकर “उबाल” बनाए रखना नहीं चाहती, जहां मई में मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा हिंसा की जांच के लिए नियुक्त समिति ने मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान बताया कि पीड़ितों के रिश्तेदारों और परिजनों पर नागरिक सामाजिक संगठन काफी दबाव डाल रहे हैं.

समिति की रिपोर्ट के बाद कोर्ट ने 7 दिन के अंदर शवों का अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया है.

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति को मणिपुर में राहत और पुनर्वास की देखरेख का काम सौंपा गया है. जैसा कि अदालत के आदेश में कहा गया है, “पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 175 में से 169 शवों की पहचान की गई थी, जिनमें से 81 पर दावा किया गया था, जबकि 88 पर दावा नहीं किया गया है.”

जिन याचिकाकर्ताओं की याचिका पर पैनल का गठन किया गया था, उन्होंने इस रिपोर्ट की जानकारी के लिए अदालत का रुख किया था.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि जो भी शव शवगृह में रखे हुए हैं और जिनकी पहचान हो चुकी है उसका अंतिम संस्कार किया जाए. यह काम 4 दिसंबर या उससे पहले तक पूरा होना चाहिए. मई से मणिपुर में हिंसा हो रही है और इस बात को ध्यान में रखते हुए यह सही नहीं होगा कि शवों को शवगृह में रखे रहने दिए जाए.

कोर्ट ने कहा कि शवों के नाम पर मामले को हमेशा गर्म नहीं रखा नहीं जा सकता. राज्य सरकार ने दाह-संस्कार या दफनाने के लिए जिन नौ जगहों की पहचान की है वहां बिना किसी बाधा के शवों का अंतिम संस्कार किया जाए.

जिन शवों की पहचान हो चुकी है और उनके लिए कोई दावेदार सामने नहीं आया है, उस मामले में राज्य सरकार मृतकों के नजदीकी रिश्तेदारों को सूचना दें. कलेक्टर और SP को इस बात की छूट होगी कि वह कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए कारगर कदम उठाएं ताकि मुर्दाघरों में रखे तमाम शवों का अंतिम संस्कार सही तरह से हो सके.

क्यों शवों पर SC को देना पड़ा आदेश

मणिपुर बीते छह महीने से हिंसा की चपेट में है. जातीय संघर्ष में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई. इनमें कई शवों की पहचान हुई लेकिन कई शवों की ना तो पहचान हो सकी है और न ही उनपर किसी ने दावा किया है.

बीते कई दिनों से ये शव मुर्दाघरों में हैं. शवों का अंतिम संस्कार भी मानवाधिकार के दायरे में है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में आदेश पारित करना पड़ा. साथ ही कोर्ट ने कहा कि लोगों के अंतिम सस्कार उनके धर्म के हिसाब हो.

राज्य सरकार को इस बात की भी इजाजत होगी कि वह शव की पहचान के मामले में अगर कोई दावेदार नहीं है तो उसमें पब्लिक नोटिस जारी करे. नोटिस के एक हफ्ते के भीतर कोई दावेदार नहीं आता है तो अंतिम संस्कार राज्य सरकार ही पूरा करे.

सरकार से छात्रों की शिकायत पर विचार करने को कहा

इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र और मणिपुर सरकार से कहा कि वे अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थानांतरण की मांग कर रहे मणिपुर विश्वविद्यालय के 284 छात्रों की शिकायत का समाधान करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में हिंसा के कारण उन्हें पढ़ाई का कोई नुकसान न हो.

सुप्रीम कोर्ट ‘मणिपुर यूनिवर्सिटी ईआईएमआई वेलफेयर सोसाइटी’ की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि ये विद्यार्थी पहले ही लगभग छह महीने की पढ़ाई से वंचित हो चुके हैं और उन्हें अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इनमें से ज्यादातर छात्र दिल्ली, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित विभिन्न स्थानों पर चले गए हैं.

सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे. बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और राज्य के महाधिवक्ता से पूछा कि क्या इन विद्यार्थियों को उनके पाठ्यक्रम के अनुरूप केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित किया जा सकता है.

पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया है कि इन विद्यार्थियों को अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थानांतरित किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी पढ़ाई का कोई नुकसान न हो.’

इसने कहा कि हमने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और मणिपुर के महाधिवक्ता से इस मामले को (क्रमश: केंद्र एवं राज्य सरकार) के समक्ष उठाने का अनुरोध किया है ताकि इसका उचित समाधान किया जा सके.

मणिपुर में 3 मई को कुकी समुदाय ने मैतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा दिए जाने के खिलाफ एकजुटता मार्च निकाला था, जिसके बाद हिंसा भड़क गई थी. हिंसा में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए.

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