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टिपरा मोथा के नेताओं ने की गृह मंत्रालय के सलाहकार से मुलाकात, कहा- ग्रेटर टिपरालैंड अंतिम समाधान

टिपरा मोथा कोकबोरोक भाषा के लिए रोमन लिपि पर जोर दे रही है जबकि सत्तारूढ़ दल (भाजपा) ने अभी तक इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है. वाम मोर्चा भाषा के लिए बांग्ला लिपि का पक्षधर है.

त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल टिपरा मोथा के नेताओं ने मंगलवार को यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय के सलाहकार एके मिश्रा से मुलाकात की और पूर्वोत्तर राज्य के मूल निवासियों के लिए ग्रेटर टिपरालैंड की अपनी मांग दोहराई.

पार्टी प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘आज हमने गृह मंत्रालय के सलाहकार से मुलाकात की और हमारी ग्रेटर टिपरालैंड की मांग के तहत मूल निवासियों के लिए अलग प्रशासन का मुद्दा उठाया.’’

बैठक के बाद देबबर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी अपनी ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग पर अड़ी हुई है और ‘केंद्र को हमारी मांग पूरी करनी चाहिए और उन्हें हमारी मांग के बारे में अपने विचार स्पष्ट रूप से सामने लाने चाहिए.

उन्होंने कहा, “हमने गृह मंत्रालय के सलाहकार के समक्ष अपनी मांगें रखीं. अगर केंद्र के पास मूल निवासियों के लिए बेहतर विचार हैं तो वे लिखित रूप में हमारे पास आएंगे. हमने अपनी किसी भी मांग को कमजोर नहीं किया है.”

देबबर्मा ने कहा कि ग्रेटर टिपरालैंड मूल निवासियों की समस्याओं का अंतिम समाधान है.

कोकबोरोक लिपि विवाद पर देबबर्मा ने कहा कि भाषा का लिखित रूप किसी पर थोपा नहीं जा सकता.

उन्होंने मीडिया को बताया, “पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर उर्दू भाषा थोपने की कोशिश की और फिर 1948 में भाषा आंदोलन शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप संप्रभु बांग्लादेश का निर्माण हुआ. इसी तरह आदिवासी भाषा का सभी को सम्मान करना चाहिए और हमें मूल लोगों की भाषा के लिए अपनी लिपि की जरूरत है.”

टिपरा मोथा कोकबोरोक भाषा के लिए रोमन लिपि पर जोर दे रही है जबकि सत्तारूढ़ दल (भाजपा) ने अभी तक इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है. वाम मोर्चा भाषा के लिए बांग्ला लिपि का पक्षधर है.

एके मिश्रा, जो नागालैंड और मणिपुर में आदिवासी संबंधित विभिन्न मुद्दों और मांगों को भी देख रहे हैं. उन्होंने सोमवार रात त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा के साथ भी बैठक की और विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की.

टिपरा मोथा की ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ मांग, जो सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) द्वारा समर्थित है, 2021 से त्रिपुरा की राजनीति में एक प्रमुख मुद्दा बन गई.

अप्रैल में टिपरा मोथा द्वारा त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) में सत्ता हासिल करने के बाद पार्टी ने अपनी मांग के समर्थन में अपना आंदोलन तेज कर दिया है, जिसका भाजपा, सीपीआई-एम के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस और अन्य दल कड़ा विरोध कर रहे हैं.

देब बर्मन के नेतृत्व में टीएमपी नेताओं ने पिछले कई महीनों के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ कई बैठकें की. अमित शाह और सरमा, साथ ही त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने इसकी ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ मांग को खारिज कर दिया और कहा कि त्रिपुरा का कोई विभाजन नहीं किया जाएगा.

भाजपा की सहयोगी आईपीएफटी भी टीटीएएडीसी को पूर्ण राज्य के रूप में अपग्रेड करने की मांग कर रही है. टीटीएएडीसी, जिसका त्रिपुरा के 10,491 वर्ग किमी क्षेत्र के दो-तिहाई से अधिक क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र है और 12,16,000 से अधिक लोगों का घर है, जिनमें से लगभग 84 प्रतिशत आदिवासी हैं, अपने राजनीतिक महत्व के मामले में त्रिपुरा विधानसभा के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक निकाय है.

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