तेलंगाना (Telangana) के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (K Chandrashekhar Rao) ने आज यानि गुरूवार को औपचारिक रूप से राज्य में पोडु भूमि पट्टों (Podu land pattas) के वितरण की शुरुआत की और आसिफाबाद (Asifabad) के नए खुले एकीकृत जिला कार्यालय परिसर में लाभार्थी आदिवासियों को दस्तावेज़ सौंपे गए.
तेलंगाना सरकार का कहना है कि 26 जिलों के लगभग 1.5 लाख आदिवासियों को वन क्षेत्रों में 4 लाख एकड़ से अधिक पोडु भूमि पर खेती करने का अधिकार दिया जाएगा.
26 जिलों में फैले इन लाभार्थियों में से 82 प्रतिशत दावे मुख्य रूप से नौ आदिवासी जिलों – भद्राद्री कोठागुडेम, महबुबाबाद, कुमुराम भीम आसिफाबाद, आदिलाबाद, मुलुगु, खम्मम, वारंगल, नगरकुर्नूल और मंचेरियल के हैं. इनमें से 50 हज़ार से अधिक दावे अकेले भद्राद्री कोठागुडेम जिले से हैं.
वहीं भूमि पट्टा वितरण के अवसर पर बोलते हुए सीएम केसीआर ने कहा कि सभी भूमि पट्टे महिला लाभार्थियों के नाम पर वितरित किए जाएंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि सभी 1.5 लाख आदिवासियों को प्रति एकड़ 10 हज़ार रुपये की रायथु बंधु वित्तीय सहायता तत्काल प्रभाव से दी जाएगी.
केसीआर ने कहा कि कानूनी मुद्दों के कारण गैर-आदिवासियों को पोडु भूमि पट्टों के वितरण में देरी हो रही है और उन्होंने आश्वासन दिया कि गैर-आदिवासी आवेदक जिन्होंने यह सबूत दिया है कि उनके परिवार पिछले 75 वर्षों से आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे हैं, उन्हें संबंधित अधिकारियों से मंजूरी मिलने पर पोडु भूमि के पट्टे मिलेंगे.
मुख्यमंत्री ने राज्य की मुख्य सचिव ए शांति कुमारी, पीसीसीएफ आरएम डोबरियाल और डीजीपी अंजनी कुमार को इस अवसर पर पोडु भूमि पट्टे प्राप्त करने वाले आदिवासियों के खिलाफ दर्ज वन भूमि कब्जे के मामलों की जांच करने और उन्हें हटाने के लिए कहा है.
इसके अलावा केसीआर ने कहा कि सरकारी मेडिकल कॉलेज भवन का निर्माण तेजी से चल रहा है और जल्द ही पूरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सभी विभाग के कर्मचारियों के एकजुट प्रयासों की बदौलत तेलंगाना सभी मोर्चों पर महत्वपूर्ण प्रगति हासिल करने में सक्षम है.
शुक्रवार दोपहर मुख्यमंत्री कुमराम भीम आसिफाबाद जिला मुख्यालय पहुंचे. उन्होंने आदिवासी क्रांतिकारी कुमराम भीम को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके नाम पर शहर के चौराहे पर एक प्रतिमा का उद्घाटन किया.
पोडु भूमि विवाद
पीढ़ियों से वन भूमि पर खेती करने वाले आदिवासी भूमि पट्टों की मांग कर रहे थे. इसी को राज्य सरकार अब पूरा कर रही है. जमीनों का मालिकाना हक न होने के कारण उन्हें वन विभाग की दया पर निर्भर होना पड़ता था.
पिछले कुछ वर्षों में अक्सर इन जमीनों को लेकर वन विभाग के कर्मचारियों और आदिवासियों के बीच झड़प की खबरें आईं और इस दौरान हत्याएं भी हुई हैं. जमीन न होने के कारण इन आदिवासियों के सामने जीविका का भी संकट खड़ा हो गया.
दरअसल, पोडु खेती या स्थानांतरित खेती आदिवासियों के बीच एक प्रथा रही है जो जंगलों को साफ करके खेती के लिए नई भूमि की पहचान करते हैं. आदिवासी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि उन्हें उस जमीन का मालिकाना हक दिया जाए जिस पर वे खेती करते हैं.
लंबे वक्त से जारी पोडु भूमि विवाद पर मुख्यमंत्री केसीआर ने अक्टूबर 2021 में आदिवासियों को ऐसी जमीनों का स्वामित्व देने के अपने फैसले की घोषणा की थी. हालांकि, सीएम केसीआर ने 2014 और 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान इस मुद्दे को हल करने का वादा किया था लेकिन अब जाकर वो अपना किया हुआ वादा पूरा कर रहे हैं. क्योंकि वितरित की जाने वाली भूमि की सीमा और लाभार्थियों की पहचान और मूल्यांकन में कथित तौर पर प्रक्रिया में देरी हुई.
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के मुताबिक, 13 दिसंबर 2005 तक वन भूमि पर कब्जा करने वाले सभी आदिवासी सिर्फ व्यवसाय प्रमाण पत्र के लिए पात्र हैं.
वहीं अन्य पारंपरिक वन-निवासी परिवारों के मामले में उन्हें सबूत देना होगा कि वे 13 दिसंबर, 2005 से पहले पिछली तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) से दावा की गई वन भूमि पर निर्भर थे.
लंबे समय से लंबित पोडु भूमि मुद्दे को हल करने में देरी का मुख्य कारण यह रहा है कि उक्त कट-ऑफ डेट के बाद वन विभाग को बड़ी संख्या में दावे प्राप्त हुए हैं.
राज्य को 28 जिलों के 3,94,996 लोगों से 11,55,849 एकड़ जमीन के दावे प्राप्त हुए थे. इनमें से एसटी व्यक्तियों के दावों में 7,19,704 एकड़ के लिए 2,23,416 दावे शामिल हैं. जबकि बाकी 4,36,145 एकड़ के लिए 1,71,580 दावे – अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) और गैर-एसटी लोगों के हैं. इसके बाद सरकार ने वन अधिकार समिति (एफआरसी) के माध्यम से दावों और सबूतों का सत्यापन और फॉरेस्ट बीट या सेक्शन ऑफिसर के द्वारा भूमि की नपाई शुरू की.
यह उम्मीद की जानी चाहिए कि तेलंगाना सरकार की इस पहल के बाद राज्य में पोडु भूमि पर खेती के लिए आदिवासियों को वन विभाग के साथ संघर्ष नहीं करना पड़ेगा.
इसके अलावा पोडु भूमि के पट्टे वितरण की इस योजना का जितना स्वागत तो ज़रूर किया जाना चाहिए, लेकिन यह भी सोचना पड़ेगा कि 2006 के वनाधिकार क़ानून के बावजूद तेलंगाना के आदिवासियों को 17 साल जंगली की भूमि के मालिकाना हक़ पाने के लिए लड़ना पड़ा.