HomeAdivasi Dailyतेलंगाना: चेंचू आदिवासियों की बस्तियों को राजस्व गाँव में बदलने का आदेश

तेलंगाना: चेंचू आदिवासियों की बस्तियों को राजस्व गाँव में बदलने का आदेश

तेलंगाना (Telangana) के उच्च न्यायलय (High Court) ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया है की चार महीने के भीतर चेंचू आदिवासियों (Chenchu tribe) की बस्तियों को राजस्व गाँव (Revenue Village) में बदला जाए.

तेलंगाना उच्च न्यायलय ने राज्य सरकार को 3 सितंबर, मंगलवार को यह आदेश दिया है कि चार महीने के भीतर चेंचू आदिवासियों की बस्ती को राजस्व गाँव में परिवर्तित किया जाए.

ये बस्तियां गरकुर्नूल, महबूबनगर, जोगुलम्बा गडवाल, नारायणपेट और वानापर्थी ज़िले के अंतर्गत आती हैं.

दरअसल 2005 में शक्ति नाम के एक गैर सरकारी संगठन ने कोर्ट में आदिवासी क्षेत्रों में विकास की मांग को लेकर याचिका दर्ज की थी.

इस बीच साल 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी अधिनियम लाया गया था.

इसके तहत सभी आदिवासी क्षेत्रों के वन गाँव को राजस्व गाँव में बदलने का की बात कही गई थी.

मंगलवार को इस मामले की उच्च न्यायलय में आखरी सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई की राज्य सरकार ने कुछ समय पहले पोडु पट्टे जारी किए थे. लेकिन 2006 के अधिनियम को लागू करने में वह असफल रहे हैं.

इस अधिनियम के अंतर्गत सभी वन गाँवों, पुरानी बस्तियों, सर्वेक्षण रहित गाँवों को राजस्व गाँवों में बदलने का आदेश जारी किया गया था.

इसके साथ ही मुख्य न्यायधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एन.वी. श्रवण कुमार ने नाराज़गी जाताते हुए राज्य सरकार से पूछा की अभी तक सरकार ने इन बस्तियों राजस्व गाँव में परिवर्तित क्यों नहीं किया ?

चेंचू आदिवासी कौन है?

चेंचू द्रविड़ आदिवासियों का ही एक उपसमूह है. ये मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और ओडिशा के घने जंगलों में रहते हैं.

यह भोजन के लिए पहले खेती नहीं करते थे. अपितु जंगलों से मिले शिकार पर ही निर्भर रहते थे.

चेंचू समुदाय के ज्यादातर लोग वन गाँव (forest village) में रहते हैं. जिसकी वज़ह से इन्हें सड़क, पानी और बिजली जैसी कई मुलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाती.

यही कारण है की उच्च न्यायलय ने अब ये आदेश जारी किया है की चेंचू आदिवासियों की सभी बस्तियों को राजस्व गाँव में बदला जाए.

राजस्व गाँव में परिवर्तित होने से चेंचू आदिवासी को कई फायदें हो सकते हैं. जिसे समझने के लिए हमें राजस्व गाँव और वन गाँव में अंतर को समझना होगा.

राजस्व और वन गाँव में अंतर

राजस्व गाँव उन्हें कहा जाता है  जिसमें जिला प्रशासन और पंचायत मुख्य रूप से गाँव को नियंत्रित करते है. इसके साथ ही यहां पर कोई भी विकास कार्य आसानी से किया जा सकता है. क्योंकि इन क्षेत्रों में विकास कार्य करने से पहले वन विभाग की अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है.

वहीं वन गाँव में अगर कोई भी विकास कार्य करना हो तो उसे पहले वन विभाग की अनुमति लेनी पड़ती है.

जिसे मिलने में कई बार काफी समय भी लग जाता है. इसके अलावा कई बार यह अनुमति जंगल सरंक्षण को ध्यान में रखते हुए अस्वीकार भी हो जाती है.

इसके साथ ही जंगल की ज़मीन सिर्फ खेती के लिए ही दी जाती है. इसे दूसरे व्यक्ति को बेचा नहीं जा सकता. अर्थात इस ज़ामीन में आदिवासियों का कोई मालिकाना अधिकार नहीं होता है.

राजस्व गाँव में परिवर्तित होने से विकास कार्य आसानी से हो जाते हैं. इसके साथ ही इसमें सभी आदिवासियों को अपनी ज़मीन बेचने का भी अधिकार होता है.


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments