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हाई कोर्ट के चार में से तीन जज उच्च जाति के,दलित और आदिवासियों की संख्या 5 फीसदी से भी कम

जजों का कॉलेजियम दो स्तरों पर काम करता है- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट. भारत के प्रधान न्यायाधीश यानि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुवाई वाला चार सदस्यीय कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव लाता है.

देश में 2018 के बाद से हाई कोर्ट में नियुक्त चार जजों में से तीन उच्च जाति समुदायों से हैं. जबकि दलित और आदिवासी कुल मिलाकर 604 नियुक्तियों में से 5 प्रतिशत के आंकड़े के भी नहीं छू पाते हैं. सरकार ने शुक्रवार को ये आंकड़ा लोकसभा में बताया है.

दरअसल, AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी को एक लिखित जवाब में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा कि 2018 में अंतिम रूप दिए गए संशोधित अनुबंध के मुताबिक हाई कोर्ट के जजों की पदोन्नति के लिए सिफारिश करने वालों द्वारा सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी प्रदान की जाती है.

उन्होंने कहा कि सिफ़ारिशकर्ताओं द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, 2018 से इस साल 17 जुलाई के बीच नियुक्त हाई कोर्ट के 604 में से 458 या 75.58 प्रतिशत सामान्य श्रेणी के हैं. वहीं अठारह या 2.98 प्रतिशत जज अनुसूचित जाति के थे जबकि नौ या 1.49 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के थे.

जब ओबीसी समुदायों से न्यायाधीशों की बात आती है तो 72 या 11.92 प्रतिशत न्यायाधीश हैं, जबकि 34 या 5.6 प्रतिशत न्यायाधीश अल्पसंख्यक समुदायों के हैं.

मंत्री अर्जुन मेघवाल की प्रतिक्रिया ओवैसी के इस सवाल पर आई कि क्या यह सच है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान हाई कोर्ट में नियुक्त 79 प्रतिशत न्यायाधीश ऊंची जातियों से हैं, जो “पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के असमान प्रतिनिधित्व की और संकेत” करता है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, अनुसूचित जाति की आबादी 16.6 प्रतिशत है, वहीं अनुसूचित जनजाति की आबादी 8.6 प्रतिशत है. जबकि अल्पसंख्यक समुदाय जनसंख्या का 19.3 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं.

देश में ओबीसी की कोई आधिकारिक गणना नहीं है क्योंकि जनगणना के दौरान जाति की गणना नहीं की जाती है. हालांकि, मंडल आयोग की गणना के मुताबिक, ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत है.

जजों की नियुक्ति में भेदभाव पुरानी बात है

इससे पहले इस साल की शुरुआत में जब केंद्रीय कानून मंत्रालय ने विधि एवं न्याय पर संसद की स्थायी समिति को रिपोर्ट सौंपी थी तो उसमें भी इस तरह के भेदभाव को उजागर किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक देश के उच्च न्यायालयों में वर्ष 2018 से 2022 तक के चार सालों में 79 प्रतिशत जज उच्च जातियों से नियुक्त किए गए.

उस वक्त जो रिपोर्ट सौंपी गई थी उसके मुताबिक देश के 25 हाई कोर्ट में नियुक्त जजों में ज्यादातर उच्च जातियों से थे. आंकड़े बताते हैं कि पिछड़े वर्ग से मात्र 11 प्रतिशत जज ही हैं. वहीं वर्ष 2018 से हाई कोर्ट में नियुक्त कुल 537 जजों में से अल्पसंख्यक समुदाय के सिर्फ 2.6 प्रतिशत हैं. जबकि अनुसूचित जाति के 2.8 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 1.3 प्रतिशत जजों को नियुक्त किया गया.

सरकार बोली- हम बार-बार याद दिलाते हैं

केंद्रीय कानून मंत्रालय का कहना है कि हमने वक्त-वक्त पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को चिट्ठियां लिखकर जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता एवं सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने को कहा है.

इस साल की शुरुआत में संसदीय समिति को दी गई अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय ने कहा था कि कॉलेजियम अपने प्राथमिक उद्देश्य में असफल रहा है. कॉलेजियम सिस्टम से जजों की नियुक्ति में सामाजिक असमानता मिट नहीं पाई है. रिपोर्ट में कहा गया था, ‘सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में उन्हीं जजों को नियुक्त करती है जिनके नाम की सिफारिश कॉलेजियम करता है.’

कैसे काम करता है कॉलेजियम सिस्टम

जजों का कॉलेजियम दो स्तरों पर काम करता है- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट. भारत के प्रधान न्यायाधीश यानि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की अगुवाई वाला चार सदस्यीय कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव लाता है.

वहीं हाई कोर्ट कॉलेजियम की अगुवाई अपने-अपने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस करते हैं. हाई कोर्ट कॉलेजियम में तीन सदस्य होते हैं. यही कॉलेजियम अपने यहां नियुक्ति के लिए जजों के नाम सुझाता है.

जजों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान नहीं

वैसे तो संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 के तहत हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति के तय नियमों में किसी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. फिर भी सरकार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से लगातार अनुरोध करती रही है कि वो जजों की नियुक्तियों के प्रस्ताव भेजते वक्त अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों का ध्यान रखें ताकि सामाजिक विविधता सुनिश्चित की जा सके.

अर्जुन मेघवाल ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन के मुताबिक सरकार केवल उन्हीं व्यक्तियों को नियुक्त करती है जिनकी सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की जाती है.”

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