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त्रिपुरा: टिपरा मोथा ने JSM द्वारा आयोजित डिलिस्टिंग रैली के दौरान अपने लोगों से शांत रहने की अपील की

टिपरा मोथा ने पहले भी लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के प्रयासों की आलोचना की है. पार्टी के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने कहा है कि उन्हें तिप्रासा या राज्य के आदिवासियों को विभाजित करने के लिए धर्म का उपयोग करने का विवाद महसूस होता है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ा संगठन जनजाति सुरक्षा मंच (JSM) ईसाई धर्म अपना लेने वाले अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के लोगों से उनको इसकी वजह से मिलने वाले लाभ खत्म करवाने के लिए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में 25 दिसंबर को रैली आयोजित करने जा रहा है.

कई पार्टियां इसके कदम का विरोध कर रही हैं उनमें सीपीआई (एम), कांग्रेस, पीपुल्स कांग्रेस और टिपरा मोथा शामिल हैं. पार्टियों ने कहा कि यह कदम “असंवैधानिक” है और इसमें “साजिश” और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है.

अब टिपरा मोथा प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने एक ऑडियो संदेश में जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित महारैली के दौरान अपने लोगों से शांत रहने की अपील की है.

उन्होंने कहा, “नफरत, लालच, घमंड हमें हमारे समाज में गरीब बनाएगा. आदमी पैसे से नहीं, अपनी सोच से अमीर बनता है. जब कोई किसी से अपने प्यार और दर्द को बांटता है तभी वो जिंदगी में आगे बढ़ता है. मैंने देखा है कि 25 दिसंबर को धर्म के नाम पर तिप्रासा को ही तिप्रासा से लड़ाने की कोशिश होगी. जैसे मणिपुर में भाई-भाई ने एक-दूसरे को मारा है, वैसी ही स्थिति त्रिपुरा में बनाने की कोशिश की जा रही है.”

उन्होंने आगे कहा, “मैं जानता हूं कि ये लोग चाहते हैं कि हमलोग नाराज हो, गुस्सा हो और ऐसे में हमलोग कोई गलत कदम उठाएंगे. मैं नहीं चाहता कि आपलोग कोई गलत कदम उठाओ. हमलोग अगर शांत रहेंगे, एकजुट रहेंगे तो इन लोगों का प्लान फेल होगा. चुनाव आपका है, नाराजगी से आपलोग ही बीमार होंगे और शांति से वो लोग हारेंगे. आप जानते हैं कि आपको क्या चुनना है.”

टिपरा मोथा त्रिपुरा की मुख्य विपक्षी दल है. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में 13 सीटें हासिल करके टिपरा मोथा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है.

टिपरा मोथा ने पहले भी लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के प्रयासों की आलोचना की है. पार्टी के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने कहा है कि उन्हें तिप्रासा या राज्य के आदिवासियों को विभाजित करने के लिए धर्म का उपयोग करने का विवाद महसूस होता है.

JACCS ने रैली की कड़ी निंदा की

वहीं ज्वाइंट एक्शन कमेटी ऑफ सिविल सोसाइटीज (JACCS), जिसमें कई समूह शामिल हैं, ने जेएसएम रैली का कड़ा विरोध किया और कहा कि रैली का एजेंडा सीधे तौर पर राज्य के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का खंडन करता है.

जेएसीसीएस ने प्रेस बयान में कहा है, “त्रिपुरा के मूल निवासी लंबे समय से हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और जीववाद में विश्वास करते हैं लेकिन फिर भी धार्मिक आधार पर उनके बीच किसी भी टकराव के बिना शांतिपूर्वक एक साथ रहते हैं. यह हमारे राज्य में पहली बार है कि किसी संगठन ने ऐसी संवेदनशील धार्मिक मांग उठाई है और धर्मांतरित मूल निवासियों को सूची से हटाने की मांग की है. यह और कुछ नहीं बल्कि त्रिपुरा के मूल लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने का एक तरह का गंभीर प्रचार है.”

जेएसीसीएस ने भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर दिया, नागरिकों को अपनी आस्था चुनने की स्वतंत्रता की वकालत की. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने से किसी व्यक्ति की एसटी स्थिति स्वचालित रूप से समाप्त नहीं हो जाती है.

उन्होंने तर्क दिया कि किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में परिभाषित करने के मानदंड किसी विशिष्ट धर्म से बंधे नहीं हैं.

AARM भी कर रहा विरोध

हाल ही में आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (Adivasi Adhikar Rashtriya Manch -AARM) ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि जनजाति सुरक्षा मंच विभिन्न राज्यों में ईसाई आदिवासी समुदायों (Christian Adivasi communities) को निशाना बनाने के प्रयास तेज कर रहा है.

एएआरएम ने जोर देकर कहा कि ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) की सूची से बाहर करने का जेएसएम का अभियान असंवैधानिक और विभाजनकारी है.

क्या है पूरा मामला

जनजाति सुरक्षा मंच धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जनजाति से संबंधित लोगों को सूची से हटाने के लिए संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं.

संगठन की ये भी मांग है की धर्म परिवर्तित आदिवासियों को सरकार की कोई आर्थिक और सामाजिक सहायता ना दी जाए. इसके लिए ये संगठन कई राज्यों में डिलिस्टिंग को मुद्दा बनाकर रैलियां कर रहा है.

इतना ही नहीं गुजरात जनजाति सुरक्षा मंच ने इसी साल मई महीने में मांग की कि संसद उनके डीलिस्टिंग के लिए एक विधेयक पारित करे.

दरअसल, RSS से जुड़े संगठन लंबे समय से आदिवासी इलाकों मे हिंदुत्व का प्रचार करने के लिए काम कर रहे हैं. इनका मानना है की एक आदिवासी वही है जो हिंदु धर्म को मानता हो.

ऐसे में ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा की संगठन आदिवासी इलाकों में डिलिस्टिंग के बहाने धर्म परिवर्तन को सेंटर स्टेज पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.

आदिवासी इलाक़ों में जल, जंगल, ज़मीन और संवैधानिक और क़ानून हक़ों के लिए लड़ने की बजाए डिलिस्टिंग जैसे मुद्दों पर आदिवासियों को गोलबंद करने की कोशिश की जा रही है.

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