HomeAdivasi Dailyमध्य प्रेदश: विस्थापन और नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ सम्मेलन

मध्य प्रेदश: विस्थापन और नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ सम्मेलन

पीपल चौक में आयोजित सभा में नफरत की राजनीति और प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाने की मांग की गई. सभा मे वक्ताओं ने बताया कि रास्ट्रीय स्तर पर संघर्ष को मजबूत करेंगे और जल जंगल जमीन को बचाएंगे. 

जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के बैनर तले बसेरा सभागार बांद्राभान (होशंगाबाद, नर्मदापुरम) मध्य प्रदेश में ” नदियों को अविरल बहने दो, जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, विकास, रोजगार ” और नफरत छोड़ो संविधान बचाओ अभियान तथा देश में व्याप्त नफरत, उन्माद, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, निजीकरण, पूंजीवाद, फासीवाद के खिलाफ एवं अन्य ज्वलंत सवालों पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया.

जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय संयोजक व नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने इस सम्मेलन की प्रस्तावना प्रस्तुत की. उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की जरूरत है. मेधा पाटकर ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 48 ए के तहत एक सशक्त संघर्ष की जरूरत पर बल दिया.

उन्होंने कहा कि जल ही कल है. प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने से सम्पूर्ण सृष्टि के अस्तित्व पर खतरा है. मैदानी एवं कानूनी लड़ाई लड़ने की जरूरत है. देशभर से आये सैकड़ों प्रतिनिधियों ने संक्षेप में अपने-अपने संघर्षों का परिचय दिया.

सम्मेलन में कोसी जन आयोग द्वारा कोसी के नव निर्माण हेतु तैयार प्रस्ताव पुस्तिका का विमोचन किया भी किया गया.

नदी, भूजल, समुदायों के अधिकार संरक्षण, प्रदूषण, क्रूज़ संचालन, रेत खनन, निजीकरण रोकने, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, कोसी गंगा, गोदावरी, पेरियार, महानदी आदि नदी घाटियों के संरक्षण विषय पर केंद्रित तृतीय सत्र का संचालन राहुल यादुका द्वारा किया गया. इस सत्र में राजकुमार सिन्हा, कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव, प्रदीप चटर्जी, कमला यादव, विद्युत सैकिया, रेहमत एवं शरथ चेल्लूर ने अपने विचार रखें.

इस सम्मेलन में भू-रक्षा, भूस्खलन, भूकंप, भ-हस्तांतरण, भूमि अधिग्रहण, विस्थापन, पुनर्वास, खनन आदि की कानूनी व मैदानी हकीकत जैसे मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई. 

सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने जंगल, इतिहास, अधिकार, कानूनी हक, अमल, संघर्ष निर्माण, आदि विषय पर अपनी बात कही. जिन लोगों ने इस विषय पर बात की उनमें सुरेखा दलवी द्वारा मंच संचालनकिया गया और रामप्रसाद, पुष्पराज , राजेंद्र गढेवाल,  तितराम मरावी शामिल थे.

मुख्य वक्ता मेधा पाटकर ने कहा कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 को रोकने में देश के युवाओं की बड़ी भूमिका होगी. उन्होंने कहा कि बड़े बांध से विकास नहीं बल्कि विनाश है.

अमेरिका और यूरोपीय देशों ने नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बहाल करने के लिए 1800 बड़े बांध को तोड़ दिया है. 

एनएपीएम के इस सम्मेलन में देश के राजनीतिक और सामाजिक हालातों पर भी बातचीत हुई. इस सिलसिले में मेधा पाटकर ने कहा कि देश में व्याप्त नफरत उन्माद पूंजीवाद फांसीवाद एवं बदले की भावना से देश नहीं चलेगा, बल्कि आपसी प्रेम भाईचारा शांति सद्भाव समाजिक सौहार्द इंद्रधनुषी तहजीब कायम रखकर ही देश विश्व गुरु बनेगा. 

इसके अलावा जिंदगी बचाओ आंदोलन, बसनिया बांध (ओढारी) विरोधी संघर्ष समिति, जमीन बचाओ आंदोलन, किसान संघर्ष समिति आदि भी शामिल थे.

सम्मेलन में आए सुझावों को शामिल करते हुए राजनीतिक दलों से समन्वय, मैदानी एवं कानूनी संघर्ष आदि मुद्दों पर लंबी चर्चा के बाद सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया.

प्रस्ताव में समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों से समन्वय बनाकर संघर्ष तेज करने एवं समता, मानवता, न्याय, नैतिकता के आधार पर प्रकृति, संस्कृति के संरक्षण हेतु संघर्ष तेज करने का मजबूती से पहल करने का आव्हान भी किया गया.

जलवायु परिवर्तन विषय पर गोल्डमेन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित प्रफुल्ल सामंतरा ने विस्तार से जलवायु परिवर्तन के कारण, प्रभाव व निदान पर चर्चा की. विभिन्न मुद्दों पर पूरे देश में रचनात्मक, आंदोलनात्मक, सृजनात्मक संघर्ष तेज करने का आह्वान किया गया. इस दौरान राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अनेक गतिविधियां प्रस्तावित की गई.

अमूल्य निधि ने बताया कि एन ए पी एम ने  राजस्थान  में हाल ही में पारित स्वास्थ्य अधिकार कानून का स्वागत करते हुए इसे राष्ट्रीय स्तर का कानून बनाकर पूरे देश में लागू करने की मांग की गई. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर नदी घाटी मंच का गठन किया गया है. जिसमें राजकुमार सिन्हा, किरण देव यादव और इंद्रदेव यादव सहित 5 सदस्यों को रखा गया है.

इसके बाद नर्मदापुरम शहर के पीपल चौक में आयोजित सभा में नफरत की राजनीति और प्राकृतिक संसाधनों की लूट पर रोक लगाने की मांग की गई. सभा मे वक्ताओं ने बताया कि रास्ट्रीय स्तर पर संघर्ष को मजबूत करेंगे और जल जंगल जमीन को बचाएंगे. 

सभा को पर्यावरणविद प्रफुल्ल सामन्तरा, किरण देव जी  (बिहार),  बिद्युत सैकिया (आसाम),  मीरा संघमित्रा, केरल से गोमती जी, मध्य प्रदेश से प्रो उत्पल, होसंगबाद से चन्द्र गोपाल मलैया,  फागराम, राजेन्द्र गढ़वाल, मेधा पाटकर, राजकुमार सिन्हा, आराधना भार्गव आदि ने सम्बोधित किया.

क्या सम्मेलन का कोई प्रभाव होगा

आमतौर पर इस तरह के आयोजन का सीमित प्रभाव ही दिखाई देता है. लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन की मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में एक मजबूत पकड़ है.

इसके अलावा राज्य में विधान सभा चुनाव का माहौल भी बन चुका है. इस पृष्ठभूमि में इस तरह के आयोजन निश्चित ही आदिवासियों के ज़मीनी मुद्दों को चर्चा में लाने का एक अच्छा प्रयास है.

इस तरह की कोशिशें एक निरंतर होती हैं तो फिर राजनीतिक दलों और नेताओं को भी देर-सबेर इस तरह के मुद्दों पर बात करनी ही पड़ती है.

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