HomeAdivasi Dailyआदिवासी कहानियों का प्रसार उन्हीं की भाषा में, उन्हीं की जुबानी

आदिवासी कहानियों का प्रसार उन्हीं की भाषा में, उन्हीं की जुबानी

आदिवासी बच्चों की आवाज में लोक कथाओं को रिकॉर्ड करते हैं, और उन्हें अमेरिकी तमिल रेडियो पर प्रसारित करते हैं. इस पहल ने अब तक पूरे तमिलनाडु में 68 बाल कथाकार तैयार किए हैं.

देशभर के आदिवासी समुदायों में जो एक बात कॉमन है वो है मौखिक रूप से अपनी संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाना. आदिवासी समुदायों के विलुप्त होने के बावजूद, इन कहानियों का भंडार लोगों की यादों में मौजूद रहता है.

ऐसी ही कहानियों को उजागर करने और उन्हें अमर बनाने की कोशिश में, तमिल नाडु के कोयंबटूर और अमेरिका के स्वयंसेवक दक्षिण भारत में आदिवासी बोलियों का दस्तावेजीकरण करने के मिशन पर हैं.

यह लोग आदिवासी बच्चों की आवाज में लोक कथाओं को रिकॉर्ड करते हैं, और उन्हें अमेरिकी तमिल रेडियो पर प्रसारित करते हैं. इस पहल ने अब तक पूरे तमिलनाडु में 68 बाल कथाकार तैयार किए हैं.

“हालांकि अधिकांश आदिवासी भाषाओं की कोई लिपि नहीं है, लेकिन उनका इतिहास बहुत अच्छा है. हमारे कार्यक्रम से उन्हें अपनी भाषा पर गर्व हो रहा है. हम यह भी उम्मीद करते हैं कि इससे उन्हें अपने पढ़ने और सुनने में सुधार करने में भी मदद मिलेगी,” लेखक और इरुला गीतों के संग्रहकर्ता ओडियन लक्ष्मणन ने बताया.

लक्ष्मणन पिछले कुछ सालों से इरुला आदिवासी बच्चों के लिए ‘रीडिंग एंड लैंग्वेज रिट्रीवल मूवमेंट’ चला रहे हैं.

आदिवासी बच्चों के लिए एक मंच तैयार करने के लिए एक साल पहले इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी.

पूरे तमिलनाडु के 36 आदिवासी समूहों, जिनमें सोलकर, मलयाली, पझियार, अलु कुरुम्बा, कानी, इरुला शामिल हैं, के 68 बच्चों और पड़ोसी राज्यों के कुछ बच्चे एक साल पुरानी इस पहल का हिस्सा हैं.

लक्ष्मणन ने कहा कि शुरू में बच्चे उन भाषाओं में कहानियां पढ़ते हैं जो उन्होंने सीखी हैं और फिर उन्हें अपनी मातृ भाषा में फिर से सुनाया जाता है. जल्द ही, उन्होंने तमिल लिपि के साथ कहानियों को अपनी आदिवासी भाषा में लिखना शुरू कर दिया.

लक्ष्मणन लंबे समय से आदिवासी बच्चों के साथ काम कर रहे हैं

इसके अलावा उन्होंने अपने माता-पिता, दादा-दादी और दूसरे आदिवासी बुजुर्गों से भी कहानियाँ सीखीं, जबकि कुछ ने खुद अपनी कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया है.

“उनके दादा-दादी लोक कथाओं को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. वे लोक कथाओं के रूप में वास्तविक घटनाओं का वर्णन भी करते हैं और बच्चे उन्हें लिख देते हैं. अमेरिकन तमिल रेडियो, एक मोबाइल एप्लिकेशन पर उपलब्ध एक इंटरनेट रेडियो है, जिस पर इन बाल कथाकारों को कहानियां प्रसारित होती हैं. इसने बच्चों को दुनिया भर के श्रोताओं के लिए लोक कथाएँ सुनाने का एक मंच दिया है,” लक्ष्मणन ने कहा.

रेडियो की पहुंच अमेरिका, कनाडा, मलेशिया और सिंगापुर में तमिल डायस्पोरा तक है. कहानी का कार्यक्रम हर बुधवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 2 बजे पर प्रसारित किया जाता है. इसे अमेरिका में श्रोताओं के लिए शुक्रवार शाम 6 बजे फिर से प्रसारित किया जाता है. जैसे-जैसे प्रतिभागियों और श्रोताओं की संख्या बढ़ी है, यह कार्यक्रम इस रेडियो स्टेशन के लिए अहम बन गया है.

लक्ष्मणन और उनकी टीम कहानियों को रिकॉर्ड कर, भारत से ऑडियो भेजती है. इसके बाद अमेरिका में साउंडट्रैक लगाया जाता है. हर कहानी को पूरी तरह से तैयार करने में टीम को एक हफ्ता लग जाता है.

कार्यक्रम से बच्चों को आवाज में आदिवासी भाषाओं का दस्तावेजीकरण करने के अलावा, बच्चों के बीच कहानी कहने, सुनने और पढ़ने को भी बढ़ावा मिला है.

प्रतिभागी बच्चों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्हें एक सर्टिफिकेट और मेमेंटो भी दिया गया है.

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