तमिलनाडु के पश्चिमी घाट में स्थित नीलगिरी में करीब 450 से 500 आदिवासी बस्तियां हैं. यहां की ये आदिवासी बस्तियां प्राचीन पहाड़ियों और जंगलों में जहां-तहां बसी हैं. इन बस्तियों में टोडा, कोदा, इरुला, कुरुंबा, पनिया और काट्टुनायकन आदिवासी समुदाय रहते हैं.
2,565 वर्ग किलोमीटर में फैला यह इलाका तमिलनाडु के 38 जिलों में से एक है, जिसकी कुल आबादी 8 लाख है. इसमें से क़रीब 27,700 लोग आदिवासी समुदायों से हैं.
नीलगिरी को अपनी जैविक विविधता के लिए भी जाना जाता है. हालांकि कोविड महामारी की पहली लहर में ये लोग ज्यादा प्रभावित नहीं हुए थे, लेकिन दूसरी लहर ने आदिवासी समुदायों को भी नहीं बख्शा क्योंकि कोरोना वायरस ग्रामीण भारत के सबसे दूरदराज़ के इलाकों में भी पहुंच गया था.
वैसे सरकार ने टीकाकरण के लिए कई कार्यक्रम चलाए और टीकाकरण शिविर भी लगाए. लेकिन शुरुआत में आदिवासी समुदायों ने इसमें ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया, जिसमें नीलगिरी के आदिवासी समुदाय भी शामिल हैं.
लेकिन अब इसी नीलगिरी जिले के आदिवासी समूहों का सफल टीकाकरण हो गया है. इन बस्तियों के आदिवासियों को कोरोना के टीके की पहली खुराक दे दी गई है.
दरअसल तमिलनाडु सरकार अब संभावित तीसरी लहर से पहले 27,000 आबादी वाले आदिवासी समुदाय में सभी वयस्कों को दूसरी खुराक देने के लिए तैयार है. यह ध्यान में रखते हुए कि दूसरी लहर के दौरान विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (PVTG) को भी कोविड ने प्रभावित किया था.
इन छोटे जनसंख्या समूहों के जोखिम ने राज्य सरकार को 21,351 वयस्क PVTG सदस्यों को वैक्सीन का पहला शॉट देने के लिए मई-जून में एक विशेष अभियान शुरू करने के लिए प्रेरित किया.
वहीं 1 सितंबर तक वैक्सीन की दूसरी खुराक के लिए योग्य लोगों में से 20.5 फीसदी को टीका लगाया गया है. अब जिला प्रशासन को अगले दो महीनों में वैक्सीन के लिए योग्य सभी लोगों को कवर करने की उम्मीद है.
वैसे नीलगिरी में टीकाकरण की कहानी की शुरुआत गंभीर झिझक से हुई थी. जिला कलेक्टर जे इनोसेंट दिव्या के मुताबिक वैक्सीन को लेकर मिथकों को खत्म करने के लिए घर-घर जाकर आदिवासियों को जागरुक किया गया.
नए आंकड़ों से पता चला है कि जिले के वैक्सीन के लिए योग्य 5.9 लाख लोगों में से 97 फीसदी ने अपनी पहली खुराक ले ली है और 24 फीसदी ने अपना दूसरा शॉट ले लिया है.
स्वास्थ्य विभाग ने गलत धारणाओं और आशंकाओं से उत्पन्न होने वाली वैक्सीन हिचकिचाहट का मुकाबला करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया. टीकाकरण देर शाम तक किया गया था. साथ ही स्थानीय बोलियों का इस्तेमाल किया गया और सबसे पहले आदिवासी परिषद के सदस्यों का विश्वास जगाने के लिए टीकाकरण किया गया.