HomeAdivasi Dailyमहाराष्ट्र के हज़ारों आदिवासी आखिर क्यों सड़कों पर उतरे हैं

महाराष्ट्र के हज़ारों आदिवासी आखिर क्यों सड़कों पर उतरे हैं

आदिवासियों का ये मार्च 7 दिसंबर को शुरू हुआ था और इसमें नासिक, नंदुरबार और धुले में रहने वाले लगभग 15 हज़ार लोग शामिल हुए हैं. मार्च के ज़रिए ये आदिवासी समूह मुंबई शहर पहुंचकर केंद्रीय सरकार से अपनी मांगें पूरी करने का आग्रह करेगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के नासिक (Nashik), नंदुरबार (Nandurbar) और धुले (Dhule) से लगभग हज़ारों आदिवासियों ने अपनी मांग को लेकर मार्च शुरू किया है.

इन सभी का लक्ष्य मुंबई शहर में प्रदर्शन कर केंद्रीय सरकार का ध्यान आकर्षित करना है. आदिवासियों का ये मार्च 7 दिसंबर को शुरू हुआ था और इसमें नासिक, नंदुरबार और धुले में रहने वाले लगभग 15 हज़ार लोग शामिल हुए हैं.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक ये सभी आदिवासी 17 दिनों में 432 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करके 23 दिसंबर को मुंबई पहुंच जाएंगे.

मार्च के ज़रिए ये आदिवासी समूह मुंबई शहर पहुंचकर केंद्रीय सरकार से अपनी मांगें पूरी करने का आग्रह करेंगे.

इसी संदर्भ में सभी आदिवासियों ने मिलकर रविवार को उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मुलाकत की थी. इस मुलाकत के ज़रिए इन्होंने अपनी मांग के बारे में उप मुख्यमंत्री को बताया था. ये मुलाकत कुछ हद तक सफल भी रही है.

इसी सिलसिले में सत्यशोधक शेतकारी सभा के सचिव किशोर धमाले ने कहा, “जब तक सरकार हमें लिखित में आश्वासन नहीं देती, तब तक हम मार्च को बंद नहीं करेंगे.”

फिलहाल ये हज़ारो आदिवासी शहर के बाहरी इलाके में स्थित अदगांव में प्रदर्शन कर रहे हैं. रविवार को नासिक में एमपीएससी परीक्षा थी इसलिए प्रदर्शनकारियों से ये अनुरोध किया गया की परीक्षा खत्म होने के बाद वे मार्च शुरू करे, ताकि उम्मीदवारों को कोई परेशानी न हो.

मार्च में शामिल एक प्रमुख सदस्य धामले ने कहा कि हम सोमवार को नासिक से मुंबई की ओर चलना शुरू कर देंगे और सरकार से लिखित में आश्वासन मिलने के बाद ही कोई फैसला करेंगे.

ये भी पता चला है की ये आदिवासी समूह अपने मुद्दों पर चर्चा करने के लिए नासिक के संभागीय आयुक्त और आदिवासी विकास आयुक्त से भी मुलाकत करेंगे.

क्या है आदिवासियों की मांग

नासिक, नंदुरबार और धुले के आदिवासियों की कई मांगे है. जिसमें प्राथमिक तौर पर वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को ज़मीन सौंपना, वन भूमि में चरागाह क्षेत्र स्थापित करना, कृषि उपज के लिए उचित मूल्य तय करना, क्षेत्र के कई तालुकों को सूखा प्रभावित घोषित करना और सूखा प्रभावित खेत के प्रत्येक किसानों को 30 हज़ार रुपये का मुआवजा देना शामिल है.

2011 की जनगणना के अनुसार नासिक, नंदुरबार और धुले में लगभग 20 लाख आदिवासी रहते हैं. इसलिए इन आदिवासियों की मांग आने वाले चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकती है.

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