HomeAdivasi Dailyक्या मध्य प्रदेश में मोदी बीजेपी के लिए आदिवासी को मना पाएंगे?

क्या मध्य प्रदेश में मोदी बीजेपी के लिए आदिवासी को मना पाएंगे?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 5 नवंबर को मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले में दिया गया भाषण आदिवासियों पर फोकस किया गया था.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 5 नवंबर को मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले में दिया गया भाषण आदिवासियों पर फोकस किया गया था.

नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी की अंदरुनी लड़ाई और भ्रष्टाचार पर भी बात की थी. लेकिन उनके भाषण का बड़ा हिस्सा आदिवासियों पर ही था.

उन्होंने इस सभा में कहा कि उनकी सरकार बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के विकास पर 15000 करोड़ रूपये ख़र्च करेगी.

मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है.

उन्होंने यह भी कहा कि 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को अगले पांच साल तक बढ़ाया दिया जाएगा.

पीएम मोदी ने आदिवासियों के उत्थान के लिए भाजपा सरकार द्वारा किए गए कार्यों को सूचीबद्ध किया है.

मालवा-निमाड़ क्षेत्र महाकोशल क्षेत्र के साथ-साथ आदिवासी वोटों सहित राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ी हिस्सेदारी रखता है. 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने दोनों क्षेत्रों में भाजपा से बेहतर प्रदर्शन किया था.

इसलिए बीजेपी को अगर मध्य प्रदेश में अपनी सत्ता कायम रखनी है तो उसे इन इलाकों में तस्वीर बदलनी होगी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बीजेपी की खोई ज़मीन को पाने में मदद करने के लिए चुनाव से पहले भी कई दौरे कर चुके हैं.

लेकिन उन्होंने यहां चुनाव प्रचार में आदिवासी विकास के लिए जो बातें कही हैं उनमें कोई नयापन नहीं है.

प्रधान मंत्री मोदी ने विशेष जनजाति (PVTGs) के लिए 15,000 करोड़ रूपये ख़र्च करने की जो बात कही थी, दरअसल साल 2023- 24 के बजट में ही उसकी घोषणा की गई थी.

इस घोषणा की तह में जाने पर पता चलता है कि दरअसल यह एक लंबे समय में ख़र्च की जाने वाली एक रकम का आंकड़ा दिया गया है.

देश के आम बजट को पेश हुए करीब 8 महीने बीत चुके हैं, लेकिन इस 15000 करोड़ रुपये में से कितना ख़र्च हुआ है, यह किसी को नहीं पता है.

चुनाव इसी महीने होनी है इस लिए सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रही है. दोनों ही दल केवल आदिवासियों के लिए खोखले वादे पर वादे कर रही है.

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