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प्रवेश शुक्ला की हैवानियत के शिकार हुए दशमत रावत के पैर धोने से आदिवासी सम्मान स्थापित नहीं होगा

शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से इस आदिवासी के पैर धोने और उसे उपहार देने के दृश्य ट्वीट किये हैं. यह हरकत बिलकुल प्रवेश शुक्ला की हरकत से मिलती जुलती है. प्रवेश शुक्ला ने दशमत के सिर और मुंह पर पेशाब करने का वीडियो वायरल होने के बाद, पीड़ित यानि दशमत से ही यह शपथपत्र ले लिया कि प्रवेश शुक्ला बेकसूर है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने दशमत रावत के पैर धोए और उन्हें कुछ उपहार दिए. उन्होंने इस दशमत रावत से माफ़ी मांगी और कहा कि वे उनकी पीड़ा का सांझा करना चाहते हैं. इन तस्वीरों को ट्वीटर पर शेयर करते हुए उन्होंने कहा है कि वे दृश्य और तस्वीरें इसलिए शेयर कर रहे हैं जिससे कि सब ये जान लें कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान हैं तो जनता भगवान है. मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि किसी पर भी अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. राज्य के हर नागरिक का सम्मान उनका सम्मान है. 

शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से इस आदिवासी के पैर धोने और उसे उपहार देने के दृश्य ट्वीट किये हैं. यह हरकत बिलकुल प्रवेश शुक्ला की हरकत से मिलती जुलती है. 

प्रवेश शुक्ला ने दशमत के सिर और मुंह पर पेशाब करने का वीडियो वायरल होने के बाद, पीड़ित यानि दशमत से ही यह शपथपत्र ले लिया कि प्रवेश शुक्ला बेकसूर है. वैसे ही शिवराज सिंह चौहान ने इस आदिवासी को आसन पर बैठा कर उसके पैर धोए और उसे उपहार दिए.

इसके बदले में शिवराज सिंह चौहान आदिवासी, शोषित और वंचित तबकों से यह उम्मीद करते हैं वे उनकी सरकार और पार्टी को माफ़ कर दें. आदिवासी ये भूल जाएं कि कैसे सत्ताधारी दल का एक कार्यकर्ता उनके सिर पर कैसे पेशाब कर रहे हैं. 

शिवराज सिंह चौहान की पार्टी के एक ज़िम्मेदारी कार्यकर्ता ने एक आदिवासी को हैवानियत का शिकार बनाया है. जिसने यह हैवानियत की उस पर प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया गया है. उसके घर पर बुलडोज़र चला दिया गया है.

दशमत रावत के साथ हैवानियत करने वाले प्रवेश शुक्ला पर संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज करना और उसके घर पर बुलडोज़र चलाना भी एक दिखावा ज़्यादा है. यह दिखावा शिवराज सिंह चौहान और उनकी पार्टी की मजबूरी है.

क्योंकि मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव में अब लगभग 5 महीने का ही समय बचा है. पिछले चुनाव में आदिवासी इलाकों में झटका खाने के बाद बीजेपी लगातार दम लगा रही है कि अगले विधानसभा चुनाव में आदिवासी उसे ही वोट करें.

इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जान झोंक रखी है. दशमत रावत के साथ जो हैवानियत हुई है वह निश्चित ही बीजेपी के सारे किये धरे पर पानी फेर सकती है.

यह घटना गुजरात के उना में दलितों के साथ हुई हिंसा जैसी ही साबित हो सकती है. साल 2016 में गुजरात के सोमनाथ ज़िले के उना में कुछ दलितों को बांध कर बुरी तरह से पीटा गया था. उन दलितों पर गौ हत्या का आरोप लगाया गया था.

उना में दलित उत्पीड़न की घटना ने गुजरात में विपक्ष को जिंदा कर दिया था. मध्य प्रदेश में भी एक आदिवासी के साथ जिस तरह की हैवानियत की यह घटना चुनाव को पलट सकती है.

मध्यप्रदेश में 47 विधान सभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2018 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने का एक बड़ा कारण आदिवासी इलाकों में उसकी हार थी. उस चुनाव में बीजेपी को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कुल 47 में 16 सीटें ही मिली थीं.

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या करीब 1.5 करोड़ है. यह बताया जाता है कि यह जनसंख्या करीब 84 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखती है. राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं.

दशमत रावत जिनके साथ हैवानियत की गई है, वे कोल आदिवासी समुदाय से हैं. यह समुदाय राज्य की राजनीति में कितना प्रभाव रखता है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी साल फ़रवरी महीने में मध्य प्रदेश सरकार ने कोल कुंभ का आयोजन किया था.

मध्य प्रदेश के सामाजिक समीकरण में आदिवासी कम से कम चुनाव की दृष्टि से महत्व ज़रूर रखता है. इसलिए शिवराज चौहान ने हैवानियत के शिकार हुए आदिवासी व्यक्ति के पैर धो लिए हैं. 

शिवराज सिंह चौहान ने दशमत के पैर धोने की तस्वीरों के साथ जो चेतावनी जारी की है वह भी खोखली है. क्योंकि मध्य प्रदेश में उनके राज में आदिवासियों पर अत्याचार के आंकड़े यह साबित करते हैं. 

एनसीआरबी यानि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2022 में जारी रिपोर्ट कहती है कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों पर अत्याचार 6 प्रतिशत बढ़ें हैं. 

आज बेशक चुनाव में माहौल बिगड़ने के डर से सरकार अपराधी को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलवाने का दावा कर रही है. लेकिन मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के मामले देश में सबसे अधिक होते हैं. यह सच्चाई सरकार के आंकड़े बताते हैं.

आदिवासी युवक दशमत रावत के साथ हैवानियत करने वाले प्रवेश शुक्ला को अमृतकाल का कलंक बता कर इस घटना को अपवाद के रूप में पेश करने की कोशिश हो रही है.

लेकिन गुजरात, झारखंड,यूपी और कर्नाटक में ऐसे उदाहरणों की भरमार है जहां प्रवेश शुक्ला से भी ज़्यादा दरिंदगी करने वालों को जेल से लौटने के बाद बीजेपी के चुने हुए प्रतिनिधियों यानि सांसदों, विधायकों और नेताओं ने सम्मानित किया है

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