आदिवासी समन्वय समिति (Adivasi Samanwai Samiti) के बैनर तले अनेक आदिवासी संगठनों ने बुधवार को प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के खिलाफ राजभवन के पास धरना दिया और इसे आदिवासियों के अस्तित्व के लिए ख़तरा बताया.
उन्होंने कहा कि यूसीसी के विचार को छोड़ने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Droupadi Murmu) और राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन (C P Radhakrishnan) से हस्तक्षेप का अनुरोध किया जाएगा.
आदिवासी समन्वय समिति के सदस्य और झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री ओरांव ने कहा, ‘‘देश में सभी आदिवासी यूसीसी का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह आदिवासियों के अस्तित्व के लिए ख़तरा है. यूसीसी आदिवासियों के परंपरागत कानूनों और अधिकारों को कमजोर कर देगा जो भारतीय संविधान ने हमें प्रदान किये हैं.’’
उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल में भी आदिवासी परंपरागत कानूनों को संरक्षण मिलता था. उन्होंने कहा, “हम अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए आज यहां इकट्ठे हुए हैं.”
ओरांव ने कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड लागू करना भाजपा के एजेंडे में है. जब भी चुनाव की बारी आती है, यह मुद्दा गर्म हो जाता है. एक बार फिर से यह मुद्दा गर्म है. अगर सरकार इसे लागू करती है तो इससे आदिवासियों के अधिकारों का हनन होगा. क्योंकि आदिवासियों को संविधान में विशेष दर्जा मिला हुआ है. आदिवासियों की शादी हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत नहीं होती है.
समिति ने राज्य के राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपकर केंद्र से यूसीसी के साथ आगे नहीं बढ़ने का अनुरोध करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा, “हम इस प्रस्ताव के खिलाफ राष्ट्रपति और विधि आयोग से भी आग्रह करेंगे.”
समिति के सदस्य देव कुमार धान ने कहा कि यूसीसी का विचार देश भर में आदिवासियों की पहचान को ख़तरे में डाल सकता है. उन्होंने कहा कि अगर यूसीसी लागू होता है तो कई कानून कमजोर हो सकते हैं.
देव कुमार, जो आदिवासी महासभा के संयोजक भी हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने यूसीसी का विचार नहीं छोड़ा तो देश भर के आदिवासी भी नई दिल्ली में प्रदर्शन करेंगे.
वहीं आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम साही मुंडा ने आरोप लगाया कि आदिवासी भूमि से संबंधित कानूनों में संशोधन के लिए पहले भी कई प्रयास किए गए हैं.
क्या है यूसीसी?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे.
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