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केरल के पीवीटीजी (PVTG) परिवारों को आचार संहिता के कारण नहीं मिला राशन

केरल के 70 पीवीटीजी परिवारों का राशन आचार सहिंता की वज़ह से रोक दिया गया है. इन आदिवासियों का जीवन सरकार से मिलने वाले राशन किट पर ही निर्भर हैं.

मल्लापुरम ज़िले (Malappuram District) के पवीटीजी समुदाय चोलनाइक्कन (PVTG Community Cholanaikann) का सरकार की तरफ से मिलने वाला राशन किट रोक दिया गया है.  

यह आदिवासी मल्लापुरम (Malappuram) ज़िले के कारूलाई (karulai) में रहते है. सरकारी योजना के तहत बुधवार तक चावल को छोड़कर सभी जरूरी खाद्य पदार्थ आवंटित किए जाने थे, जो अभी तक नहीं हुए है.

एकीकृत आदिवासी विकास योजना (Integrated Tribal Development Scheme) के तहत कारूलाई में रहने वाले 70 आदिवासी परिवारों को हर महीने राशन किट वितरित किए जाते हैं.

यह राशन किट (Tribal Food kit) वार्षिक योजना के अंतर्गत आते हैं. यानी सरकार के बजट से स्कीम को लागू करने के लिए एक साल का पैसे ही मिलता है.

यह पता चला है कि सभी तकनीकी प्रक्रिया को पूरी कर जैसे ही बजट से आवंटित रकम मिलने वाली थी. देश में आचार संहिता लागू हो गई और यह रकम बीच में ही रोक दी गई.

इसलिए गोदाम में वितरित होने वाले खाद्य पदार्थ की कमी है और इन्हें आदिवासी परिवारों को बांटा नहीं जा रहा है.

पीवीटीजी स्कीम को पहले हर पांच साल के लिए लागू किया जाता था. जिसका अर्थ है कि बजट से पूरे पांच साल का पैसा आवंटित होता था.

लेकिन अब इस नियम में बदलाव किया गया है. पीवीटीजी स्कीम अब एक साल के लिए लागू होती है और सरकार की तरफ से एक ही साल का पैसा आता है.

हालांकि आईटीडीपी (एकीकृत आदिवासी विकास योजना) के अधिकारी ने निर्वाचन आयोग को पत्र भेजा है और अधिकारी ने आश्वासन दिया है कि आदेश आते ही राशन किट आदिवासियों को आवंटित कर दिया जाएगा.

इन आदिवासियों का जीवन इस राशन किट पर पूरी तरह से निर्भर है.

राशन किट के अंतर्गत आदिवासियों को चीनी, चाय पत्ती, दाल, चने, चावल, नमक, धानिया पाउडर, मिर्ची पाउडर, प्याज, आलू, सुखी मछली मिलते है.

यह किट इन्हें प्रत्येक महीने के पहले और तीसरे बुधवार को आवंटित किए जाते हैं और 10 सालों से इन्हें यह राशन किट मिलती आ रही है.

यह आदिवासी घने जंगलों में रहते है और बाहर आने के लिए इन्हें 25 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है, जो बेहद कठिन है.

अगर यह खुद से गाड़ी के सहारे जंगल से बाहर आते भी है तो इन्हें 2000 रूपये किराया देना पड़ता है.

इन आदिवासियों का रोज़गार जंगलों में मिलने वाला वन उपज़ है और इससे इतनी कमाई नहीं हो पाती की वह राशन के लिए 2000 रूपये खर्च करे.

अब धीरे-धीरे यह वन उपज़ भी खत्म होने लगे है और इनकी कमाई और भी कम हो गई है.

आदिवासियों का आरोप है की अगर प्रशासन पहले से ही योजना को लागू करने का प्लैन करती तो इन्हें आज दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता.

फिलहाल इनकी जिंदगी राशन दुकान से मिलने वाले चावल और गेहूं पर टिकी है.

इस पूरे मामले में प्रशासन इस बात के प्रति सचेत रह सकता था कि देश में किसी भी वक्त आचार संहिता लागू हो सकती है. ऐसी स्थिति में पहले से ही ऐसे प्रावधान ज़रूरी थे जिससे इस आदिम जनजाति को राशन किट बिना बाधा के मिलती रहती.

यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक उदासीनता का मामला है.

चोलनाइक्कन कौन हैं

भारत की 700 से ज़्यादा जनजातियों में से 75 आदिवासी समुदायों को PVTG या आदिम जनजाति कहा जाता है. इनमें में भी कई ऐसी जनजातियां हैं जिनकी जनसंख्या लगातार कम हो रही है.

चोलनाइक्कन समुदाय उन्हीं आदिवासी समूहों में से एक है. इन आदिवासियों की कुल जनसंख्या 200-400 के बीच बताई जाती है. इस जनजाति के लोग अभी भी पहाड़ी गुफ़ाओं में रहते हैं.

ज़ाहिर है इस आदिवासी समुदाय के वजूद को बचाए रखने के लिए राशन किट बेहद ज़रूरी है.

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