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मणिपुर में हज़ारों FIR दर्ज हैं पर न्याय की उम्मीद कम क्यों है?

MBB की टीम 3 जुलाई को ईस्ट इंफ़ाल के खुंदर्कपम में जलाए गए चर्च की तस्वीरें उतार रही थी. हम अभी अपना काम कर ही रहे थे कि मैरा पैबिस कही जाने वाली करीब 125-150 महिलाओं ने हमें घेर लिया. इन महिलाओं के साथ कई लड़के भी थे. इन महिलाओं ने हमारा काम रोक दिया और हमारा कैमरा छीन लिया. हमारे साथ एक स्थानीय मैतई महिला थीं जो हमारी मदद रह रही थीं. मैरा पैबिस को उन्होंने काफ़ी समझाने-बुझाने की कोशिश की थी. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. 

मणिपुर से दिल दहला देने वाले वायलर वीडियो (Manipur Viral Video) के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार से वहां की हिंसा और पीड़ितों को न्याय देने में देरी पर कई मुश्किल सवाल पूछे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर मामले में सुनवाई के दौरान सख्‍त टिप्पणी की हैं. लेकिन इसके बावजूद मणिपुर की सच्चाई ये है कि वहां हुई वारदातों में से ज़्यादातर में अपराधियों को सज़ा दिलाना संभव नहीं होगा.

आगजनी, हत्या, बलात्कार, अपहरण- ये दिल दहला देने वाले अपराधों की श्रेणी में आते हैं. लेकिन मणिपुर में यह समान्य हो चुका है. 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर में ऐसे अपराधों से जुड़ी 6,496 एफआईआर दर्ज की गई है. 

लेकिन अभी तक इन मामलों में सिर्फ 280 गिरफ्तारियां हुई हैं और कानून-व्यवस्था की ‘खराब’ स्थिति के कारण अधिकतर मामलों में जांच भी शुरू नहीं हुई है.

पुलिस रिकॉर्ड 3 मई के बाद से मणिपुर के गंभीर हालात को दिखाते हैं: 74 हत्याएं, 24 अपहरण, 27 लापता व्यक्ति, हथियार लूटने की 30 घटनाएं, महिलाओं और बच्चों पर 11 हमले, जिनमें तीन यौन हमले शामिल हैं. 

मणिपुर में हिंसा के दौरान 5,107 आगजनी के मामले हुए हैं. MBB के मणिपुर दौरे में हमें बताया गया कि वहां 5000 से ज़्यादा घर जला दिये गए हैं. इस हिंसा में मैतई और कुकी दोनों ही समुदायों के लोगों के घर जले हैं. लेकिन इस मामले में ज़्यादा नुकसान कुकी समुदाय का हुआ है. हमने इंफ़ाल, चुराचांदपुर और कांगपोकपी ज़िले में जले हुए घरों से लेकर क्षतिग्रस्त संपत्तियों और ढहे हुए घर घरों को अपनी आंखों से देखा है.

मणिपुर के सभी 16 जिलों में हजारों जीरो एफआईआर दर्ज की गई हैं. जिनमें हत्याओं, गुमशुदगी और कई अन्य दस्तावेज शामिल हैं, जिन पर अभी भी कार्रवाई होनी बाकी है. ये एफआईआर वास्तविक अपराध स्थलों से दूर के क्षेत्राधिकारों में दर्ज की गई थीं. 

दरअसल इंफ़ाल घाटी में मैतेई समुदाय का दबदबा है तो पहाड़ी ज़िलों में कुकी आदिवासियों का प्रभाव है. इस हिंसा के बाद कुकी घाटी छोड़ कर पहाड़ी ज़िलों में चले गए हैं और पहाड़ों से मैतई घाटी में आ गए हैं. दोनों ही समुदायों के पीड़ित लोगों ने पलायन के बाद अपने समुदाय के प्रभुत्व वाले स्थानों पर FIR दर्ज कराई हैं.

1 अगस्त यानि पिछले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा से संबंधित मामलों की जांच की “सुस्त” गति के लिए मणिपुर पुलिस को जमकर फटकार लगाई. अदालत ने मणिपुर में कानून-व्यवस्था और संवैधानिक तंत्र के ‘पूरी तरह से ध्वस्त’ होने की निंदा की और राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को 7 अगस्त को अगली सुनवाई के लिए तलब किया.

मैरा पैबिस का जांच में बाधा बनना

MBB की टीम 3 जुलाई को ईस्ट इंफ़ाल के खुंदर्कपम में जलाए गए चर्च की तस्वीरें उतार रही थी. हम अभी अपना काम कर ही रहे थे कि मैरा पैबिस कही जाने वाली करीब 125-150 महिलाओं ने हमें घेर लिया. इन महिलाओं के साथ कई लड़के भी थे.

इन महिलाओं ने हमारा काम रोक दिया और हमारा कैमरा छीन लिया. हमारे साथ एक स्थानीय मैतई महिला थीं जो हमारी मदद रह रही थीं. मैरा पैबिस को उन्होंने काफ़ी समझाने-बुझाने की कोशिश की थी. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. 

अंतत: अपने कैमरे का कार्ड हमें उन महिलाओं के हवाले करना पड़ा तभी हमें छोड़ा गया था. हमारे जैसे पत्रकार ही नहीं बल्कि ये महिलाएं सेना और पुलिस के काम में भी बाधा पैदा कर रही हैं.

मणिपुर में पुलिस का दावा है कि उन्हें इंफाल में अपने मुख्यालय और कुकी-प्रभुत्व वाले पहाड़ी जिलों के बीच एफाआईआर सहित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को स्थानांतरित करने में कई कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

280 आरोपी में से सिर्फ 84 जेल में हैं

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, मई की शुरुआत से 25 जुलाई के बीच गिरफ्तार किए गए 280 लोगों में से सिर्फ 84 को न्यायिक हिरासत में भेजा गया जबकि बाकी को जमानत दे दी गई है.

इसी दौरान पुलिस ने 14 हज़ार 898 सामान्य गिरफ़्तारियां भी दर्ज कीं. लेकिन सभी व्यक्तियों को 24 घंटों के भीतर रिहा कर दिया गया.मणिपुर में यह देखा गया है कि घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में समुदाय के नेतृत्व वाली सशस्त्र भीड़ अक्सर गिरफ्तारी के दौरान हस्तक्षेप करती है. कई ऐसे मामले देखे गए हैं जब पुलिस की ग़िरफ़्त से दोषी को छीन लिया गया. 

सच्चाई तो यह है कि कई बार तो अदालत  या जजों के घर के बाहर भी जमा हो जाती है. भारतीय सेना की तरफ से भी एक वीडियो जारी कर बताया गया था कि कैसे मैतई महिलाएं हथियारबंद लोगों को बचाने के लिए सेना के सामने खड़ी हो गई थीं.

पुलिस में भी विभाजन है

हमने यह पाया कि मणिपुर में पुलिस में भी जातीय विभाजन बिलकुल स्पष्ट है. मैतई और कुकी अब अपने अपने समुदायों के दबदबे वाले इलाके में ही पोस्टिंग चाहते हैं. हमें यह भी बताया गया कि मई की शुरुआत में 1500 से अधिक मैतेई और कुकी पुलिसकर्मी ड्यूटी से ‘गायब’ हो गए. कुछ दिन बाद अपने घरों के नजदीकी पुलिस स्टेशनों में फिर से दिखाई दिए.

जातीय विभाजन ने हिंसा से संबंधित मामलों को संभालने के तरीके को भी प्रभावित किया है. कथित तौर पर घाटी में अपने तबाह हुए गांवों के बारे में कुकी समुदाय की शिकायतें इंफाल में दर्ज नहीं की गईं क्योंकि वहां मैतेई लोगों का पुलिस स्टेशनों में दबदबा है. 

इसके विपरीत कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में नुकसान को लेकर मैतेई द्वारा दर्ज करवाई गई शिकायत को अनसुलझा छोड़ दिया गया. इस दरार के कारण यह आरोप भी है कि पुलिस अपने ही समुदाय के उपद्रवियों के साथ मिली हुई है.

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