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महाराष्ट्र: एक्सप्रेस-वे के नाम पर छिनी जा रही आदिवासियों की ज़मीन!

ग्रामीणों का आरोप है कि विस्थापितों को पूर्व में कोई सूचना नहीं दी गई थी. रूपाली चाकणकर ने कहा है कि परियोजना से प्रभावित लोगों को विस्थापित करने से पहले प्रशासन को उनके साथ बातचीत करनी चाहिए थी. इसके अलावा उनके कहीं और रहने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए थी.

महाराष्ट्र के पालघर जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी चार विधायकों को कलेक्टर ऑफिस के बाहर धरना देना पड़ा क्योंकि उन्होंने आरोप लगाया कि उन अधिकारियों के खिलाफ कोई उचित स्पष्टीकरण या कार्रवाई नहीं की गई जिन्होंने दहानु तालुका के धानिवरी में आठ आदिवासी परिवारों को उनके घरों से जबरन हटाया था.

दरअसल, मुंबई-वड़ोदरा एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए रास्ता बनाने के लिए दहानु तालुका में धानिवरी के इभाडपाड़ा में रहने वाले आठ परिवारों को जबरदस्ती निकाला गया था. इन परिवारों के साथ ये कार्रवाई 19 अप्रैल को 15 घंटे की शॉर्ट नोटिस के साथ की गई थी. इन परिवारों की कुछ महिलाओं को अशोभनीय तरीके से उनके घरों से बाहर निकाल दिया गया.

पुलिस की इस कार्रवाई के वीडियो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं. “जय आदिवासी युवा शक्ति’’ नाम के ट्वीटर हैंडल से एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि इसमें पुलिस द्वारा बर्बर तरीके से घसीटे और मारे जारे रहे लोग आदिवासी समाज के हैं. आरोप है कि आदिवासियों से इनके घर और ज़मीनें छीनी जा रही है.

एक और वीडियो में कुछ महिलाओं को देखा जा सकता है. पुलिस अपना सारा बल इन पर इस्तेमाल कर इन्हें इनके ही घर से निकालने की कोशिश करते नज़र आ रही है. इसमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. इन रोते-बिलखते लोगों पर इस कार्रवाई को हुए पांच दिन से ज़्यादा हो चुके हैं लेकिन आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वाली बीजेपी या किसी भी विपक्षी नेता को इनकी सुध नहीं हो पा रही है.

वहीं एक और वीडियो में कुछ आदिवासी ख़ुद ही अपने घर तोड़ते नज़र आ रहे हैं. वीडियो में साफ़ दिखाई पड़ रहा है कि कैसे लोग अपने ही घर को उजाड़ने पर मजबूर हैं, क्यों?  क्योंकि शायद इनके चारो ओर पुलिस अपनी तथाकथित ‘शक्ति’ का प्रदर्शन कर रही है.

वायरल हो रहे इन सभी वीडियो में एक महिला ने ख़ुद का दर्द बयां किया है और आरोप लगाया है कि सरकार इनके साथ ज़बरदस्ती कर रही है.

वीडियो में एक पीड़ित आदिवासी महिला कह रही है, “एक्सप्रेस-वे के नाम पर हमारा घर और ज़मीन ले ली लेकिन कोई मुआवज़ा नहीं दिया. पीड़िता का कहना है कि हमें कोई नोटिस नहीं दिया गया, अचानक आए और हमें घर से निकालना शुरु कर दिया. बारिश का वक़्त है, छोटे-छोटे बच्चे हैं, न ही खाने को है, न पैसे हैं. हम कहां जाएंगे.”

आदिवासियों पर हुई इस तरह की कार्रवाई की कुछ वीडियो के साथ पीड़ित महिला की ज़ुबानी को हंसराज मीना नाम के ट्विटर हैंडल से शेयर किया गया है.

ये पुलिसिया कार्रवाई महाराष्ट्र के पालघर में स्थित डहाणू इलाके की है, जहां से होकर बड़ौदा-मुंबई एक्सप्रेस-वे गुज़र रहा है. यहीं पर आदिवासियों की ज़मीनें और घर हैं और आरोप हैं कि यहां बिना किसी नोटिस और मुआवज़े के तोड़फोड़ की गई है.

आदिवासियों के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे

अब विधायकों ने मुआवजे और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. पालघर ग्रामीण जिले के सभी चार विधायक सुनील भुसारा (विक्रमगढ़), राजेश पाटिल (बोइसर), विनोद निकोल (दहानू) और श्रीनिवास वनगा (पालघर) ने उचित मुआवजे और निकासी के दौरान आदिवासियों को गुमराह करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है.

पालघर के कलेक्टर गोविंद बोडके ने चार विधायकों की बैठक बुलाई थी और पूर्व सांसद बलिराम जाधव के साथ कुछ गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया था. लेकिन दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर कलेक्टर जवाब से बचते रहे.

इस रवैये से खफा सभी जनप्रतिनिधियों ने बैठक का वाकआउट किया और एक घंटे के लिए कलेक्टर ऑफिस के बाहर धरना दिया, जिसमें पालघर ग्रामीण जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले चारों विधायक शामिल थे.

विधायक श्रीनिवास वांगा ने कहा कि वह आदिवासियों के खिलाफ अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे, उन्हें अपने विधायक पद की परवाह नहीं है. उन्होंने कहा कि वह किसी भी कीमत पर आदिवासियों के साथ खड़े रहेंगे.

सभी चार विधायकों ने विस्थापित आदिवासी परिवारों के लिए अपने समर्थन का आश्वासन दिया और कहा कि वे आदिवासियों के खिलाफ किसी भी अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे. सभी विधायकों ने जिला प्रशासन को कार्रवाई के लिए समय दिया है और अगर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो बड़े पैमाने पर उचित मंच के माध्यम से जिले भर में धरना-प्रदर्शन किया जाएगा.

महाराष्ट्र महिला आयोग ने लिया संज्ञान

वहीं महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग ने दो महीने के बच्चे और बुजुर्ग महिलाओं के साथ आदिवासी महिलाओं को उनके घर से बाहर निकालने के मामले में संज्ञान लिया है. आदिवासी महिलाओं पर हुई इस बर्बर कार्रवाई को लेकर महाराष्ट्र महिला आयोग की अध्यक्ष रुपाली चाकणकर ने जांच के आदेश दिए हैं.

रूपाली चाकणकर ने निर्देश दिया है कि पालघर के ज़िला कलेक्टर घटना की जांच कर रिपोर्ट पेश करें. उन्होंने जिलाधिकारी को आदेश प्राप्त होने के 48 घंटे के भीतर घटना की तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है.

आरोप लगाया जा रहा है कि मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेस-वे के निर्माण कार्य से प्रभावित हो रही महिला ग्रामीणों को पुलिस ने बेरहमी से पीटा ताकि उनके घरों को खाली कराया जा सके.

घटना के संबंध में रूपाली चाकणकर ने पालघर के ज़िला कलेक्टर को लिखे पत्र में कहा है कि मुंबई-वडोदरा एक्सप्रेस-वे निर्माण कार्य में परियोजना प्रभावित लोगों को विस्थापित करते समय पुलिस द्वारा पालघर की आदिवासी महिलाओं को पीटने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है.

ग्रामीणों का आरोप है कि विस्थापितों को पूर्व में कोई सूचना नहीं दी गई थी. रूपाली चाकणकर ने कहा है कि परियोजना से प्रभावित लोगों को विस्थापित करने से पहले प्रशासन को उनके साथ बातचीत करनी चाहिए थी. इसके अलावा उनके कहीं और रहने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए थी.

क्या है वडोदरा-मुंबई एक्सप्रेस-वे?

वडोदरा-मुंबई एक्सप्रेस-वे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस का एक हिस्सा है. सरकार के मुताबिक इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने के बाद वडोदरा से मुंबई तक की दूरी महज़ 379 किलोमीटर रह जाएगी. इतनी दूरी तक एक्सप्रेस-वे बनाने के लिए सरकार की ओर से अनुमानित 44 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं.

मौजूदा वक़्त में जेएनपीटी पोर्ट मुंबई और वडोदरा के बीच की दूरी लगभग 550 किलोमीटर है, जिसे कवर करने में लगभग 10-12 घंटे लगते हैं. हालांकि, मुंबई वड़ोदरा एक्सप्रेस-वे इस दूरी को न सिर्फ 379 किलोमीटर तक कम कर देगा बल्कि यात्रा के समय को घटाकर 3.5-05 घंटे कर देगा.

भले ही इस एक्सप्रेस-वे के ज़रिए सफ़र का वक़्त कम हो रहा हो लेकिन इस एक्सप्रेस-वे को बनाने में न जाने कितने आदिवासियों की ज़मीनें छीनने और उन्हें बेघर करने का आरोप भी लग रहा है. आरोप ये भी है कि कार्रवाई के बदले उन्हें मुआवज़ा भी नहीं दिया जा रहा. वहीं दूसरी ओर इस ‘अनैतिक’ कार्रवाई पर सरकार कोई भी जवाब देने के लिए तैयार नहीं है.

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

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