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तमिलनाडु की विमुक्त जनजातियों (denotified Tribes) ने दी 31 अगस्त से आंदलोन की चेतावनी

तमिलनाडु और केरल के 68 विमुक्त जनजातियों ने अपनी मांगे पूरी नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है

68 विमुक्त जनजाति जो तमिलनाडु विमुक्त जनजाति कल्याण संघ (DTWA) का हिस्सा हैं. उनका कहना है की अगर पुरानी मांग पूरी नहीं हुई तो वह 31 अगस्त को आंदोलन करेंगे.

DTWA के सदस्य ने कहा वह बहुत समय से दो प्रमाणपत्रों को खत्म करना चाहते है. दो प्रमाणपत्र यानी विमुक्त समुदायों और विमुक्त जनजातियों. वह एक विमुक्त जनजाति प्रमाणपत्र चाहते है ताकी वह सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने सके.

उनका दावा है कि इन 68 जनजातियों की जनसंख्या राज्य भर और खासकर दक्षिणी जिलों में करीब दो करोड़ हैं.

DTWA के मुख्य समन्वयक पीके दुरईमानी का कथन

DTWA के मुख्य समन्वयक पीके दुरईमानी ने कहा की 40 वर्षों के संघर्ष के बाद राज्य सरकार ने 1979 में जारी एक एक सरकारी आदेश (Government order) को वापस ले लिया और मार्च 2019 में 68 जनजातियों के नामकरण को विमुक्त समुदायों के रूप में बदल दिया.

इसके साथ-साथ उन्होंने कहा की  सरकार ने हमारी जनजातियों को दो प्रमाणपत्र जारी करना शुरू कर दिया हैं. जिससे की विमुक्त सामुदायिक प्रमाणपत्र से राज्य सरकार की आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सके और विमुक्त समुदाय प्रमाणपत्र से केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ उठा सके. 

इसके अलावा ये जनजातियाँ सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ी हुई हैं. इन 68 जनजातियों को विमुक्त जनजाति प्रमाणपत्र जारी करने में कोई कानूनी बाधा नहीं हैं.

कई मंत्रियों, अधिकारियों, अन्नाद्रमुक शासन और द्रमुक सरकार से बोलने के बाद हमने अब 24 अगस्त को BCs कल्याण मंत्री आरएस राजकन्नप्पन को एक ज्ञापन सौंपा और अगर तबतक भी उचित मांग पूरी नहीं हुई तो हम आंदोलन करेंगे.

अलंगुलम में 2021 विधानसभा चुनाव के समय तत्कालीन विपक्ष के नेता एमके स्टालिन ने वादा किया था कि अगर डीएमके सत्ता में आई तो दोहरी प्रमाणपत्र प्रणाली को खत्म कर दिया जाएगा। 

देश भर में 191 विमुक्त जनजातियाँ हैं और उनमें से ज्यादातर तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में रहत हैं. इसके अलावा, तमिलनाडु को छोड़कर कहीं भी कोई विमुक्त समुदाय नहीं हैं. इन्हें सिर्फ विमुक्त जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया हैं.

1871 से इस जनजातियों को अधिसूचित आपराधिक जनजातियाँ कहा जाता हैं. फिर 1924 में इसका नामकरण करके अधिसूचित जनजातियां रख दिया और अब इस जनजातियों को विमुक्त जनजाति कहते हैं।

तमिलनाडु में अम्बालाकरर, पिरामलाई कल्लार, बोयास, वलयार, कलादीस, केपमारिस, ओड्डार, थोटिया नायकर, उप्पुकोरावर और वेट्टईकारर 68 विमुक्त जनजातियों का हिसा हैं. राज्य सरकार के अधिकारिय यह मानते है कि विमुक्त जनजाति प्रमाण पत्र जारी 69% आरक्षण के लिए अच्छा नहीं होगा.

उन्होंने कहा की राज्य सरकार के अधिकारिय यह धारणा गल्त हैं क्योंकि 69% आरक्षण को नौवीं अनुसूची में रखा गया है और प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है तो इससे विमुक्त जनजातियाँ के आरक्षण में कोई परेशान नहीं होगी.

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