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हसदेव बचाओ: जंगल और आदिवासी बचाने के आंदोलन की तरफ देश का ध्यान खींचने की कोशिश

छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल और आदिवासियों को बचाने की लड़ाई में शामिल लोग 3 जनवरी को नई दिल्ली पहुँचे. लेकिन क्या वे राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस बड़े मुद्दे की तरफ खींचने में कामयाब हुए.

2 जनवरी को दिल्ली स्थित प्रैस क्लब ऑफ़ इंडिया में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के लोग जमा हुए. इस आंदोलन में कई ऐसे संगठन शामिल हैं जो राज्य के हसदेव जंगल को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

दिल्ली में यह कार्यक्रम राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस तथ्य की तरफ खींचने के लिए किया गया था कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार आने के बाद हसदेव जंगल की कटाई का ख़तरा ज़्यादा बढ़ गया है.

इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के आंदोलन में शामिल ग़ैर सरकारी और जनवादी संगठनों के अलावा राजस्थान से भारत आदिवासी पार्टी के विधायक थावर चंद डामोर भी समर्थन देने पहुंचे. 

इसके अलावा जाने माने पत्रकार प्रॉंजय गुहा ठाकुरटा और प्रोफेसर नंदनी सुंदर जैसे लोगों ने भी विस्तार से मीडिया को छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य की पूरी कहानी समझाने की कोशिश की थी.

यहां पर बताया गया कि 21 दिसंबर की सुबह डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता अजय टी.जी. और वन संसाधन के निजीकरण का विरोध करने वाले जन आंदोलन – छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का कथित तौर पर अज्ञात व्यक्तियों द्वारा अपहरण कर लिया गया था. बाद में शाम को उन्हें रिहा कर दिया गया.

यह घटना तब हुई जब वे आदिवासी बहुल सरगुजा जिले के रास्ते में थे. जहां छत्तीसगढ़ पुलिस ने स्थानीय आदिवासी कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था.

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पुलिस ने ग्रामीणों को परसा ईस्ट कांता बासन (PEKB) फेज II खनन परियोजनाओं के हिस्से, जैव विविधता से समृद्ध हसदेव अरण्ड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को फिर से शुरू करने में बाधा न डालने के लिए सलाह दी थी. 

हालांकि, पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया कि उन्हें चुप कराने के लिए उठाया गया था. दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में यह बताया गया कि 13 दिसंबर को विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री पद संभालने से कुछ दिन पहले भारी सुरक्षा घेरे में पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई शुरू हो गई थी. 

यह कटाई विशेषज्ञों की राय, पिछले साल छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा द्वारा पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव और स्थानीय विरोधों की उपेक्षा करती है.

भारत की 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी वाले राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री साय ने दावा किया कि कोयला खनन और पेड़ों की कटाई का निर्णय कांग्रेस शासन के दौरान किया गया था और चल रहा कार्य उसी निर्णय का विस्तार है.

अपनी और कार्यकर्ताओं की हिरासत को “अवैध” और “खतरनाक” मिसाल बताते हुए आलोक शुक्ला ने कहा कि विरोध की आवाज को दबाने के लिए कई लोगों को हिरासत में लिया गया है. उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में पुलिस ने लोगों को उनके घरों से उठाए जाने से पहले उनके कपड़े भी बदलने नहीं दिए.

28 दिसंबर को शुक्ला ने रायपुर में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था. इस प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को एक ज्ञापन सौंपा गया था. 

इस ज्ञापन में संविधान की अनुसूची V के तहत संरक्षित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया है.

छत्तीगढ़ का हसदेव जंगल जिस इलाके में पड़ता है उस सरगुजा जिले में भाजपा ने हाल के चुनाव में सभी 14 विधानसभा सीटें जीती थीं. हसदेव जंगल और आदिवासियों बचाओ आंदोलन के में शामिल संगठनों के नेताओं ने जानकारी दी है कि वहां के साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा जैसे गांवों की ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद पीईकेबी फेज II खनन के लिए वन भूमि सौंप दी गई है.  

जबकि ज्ञापन में तर्क दिया गया कि जारी वनों की कटाई पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 या पेसा का उल्लंघन है.

विवादित वन क्षेत्र सूरजपुर, सरगुजा और कोरबा जिलों तक फैला हुआ है. जो सरकार समर्थित कॉर्पोरेट खनन और आदिवासियों और पर्यावरणविदों के खनन विरोधी संघर्ष का केंद्र बिंदु बन गया है.

2015 में अडानी ग्रुप ने कहा था कि उसकी छत्तीसगढ़ में दो परियोजनाओं में 25,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश करने की योजना है. परियोजनाओं में कोयला से पॉली-जेनरेशन (सीटीपी) सुविधा और राइस ब्रान सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन प्लांट और रिफाइनरी शामिल थी.

अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) द्वारा खनन मंजूरी और कोयला वितरण को लेकर पिछली भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की आलोचना ने छत्तीसगढ़ विधानसभा को 26 जुलाई, 2022 को एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित करने के लिए प्रेरित किया था. जिसमें हसदेव अरण्य के 2,000 वर्ग किमी क्षेत्र को खनन मुक्त लेमरू हाथी रिजर्व के रूप में नामित किया गया.

आजीविका संबंधी चिंताओं और क्षेत्र में हसदेव नदी जलग्रहण क्षेत्र और जैव विविधता पर वनों की कटाई के नकारात्मक प्रभाव को लेकर प्रभावित ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के कारण एईएल कोयला खनन परियोजना को एक दशक से भी अधिक समय से विवाद का सामना करना पड़ रहा है.

रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अडानी ग्रुप छत्तीसगढ़ में ज्यादा से ज्यादा कोयला खनन के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, भले ही उसकी योजना के कुछ हिस्सों में रुकावटें आ गई हों. लेकिन छत्तीसगढ़ में अडानी समूह 3.7 बिलियन टन कोयले के संभावित उत्पादन के साथ कोयला खदानों को लक्षित कर रहा है.

हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में खनन से जुड़े एक मामले के जवाब में छत्तीसगढ़ सरकार ने जुलाई में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. जिसमें कहा गया था कि किसी भी नए खनन आरक्षित क्षेत्रों को आवंटित करने या उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं है.

राजनीतिक घमासान

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, 2022 में 41 हेक्टेयर पेड़ काटे गए और अतिरिक्त 93 हेक्टेयर के लिए मंजूरी नवंबर 2023 में दी गई. कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपने-अपने कार्यकाल के दौरान खनन से संबंधित वनों की कटाई पर एक-दूसरे की आलोचना की है.

हाल के राज्य विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने अपने चुनावी वादों में जिसे “मोदी की गारंटी 2023” के रूप में प्रचारित किया. उसमें छत्तीसगढ़ में परसा ईस्ट और कांता बासन ब्लॉक में राजस्थान सरकार को खनन की अनुमति देने में पूर्व कांग्रेस सरकार के “धोखे” को उजागर किया.

आम आदमी पार्टी (आप) की छत्तीसगढ़ यूनिट ने भी खदानों से संबंधित पेड़ों की कटाई को लेकर राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आदिवासी हितों के खिलाफ काम करने और अडानी का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए पार्टी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो क्लिप साझा किया. जिसमें मोदी आदिवासियों से वादा करते हुए दिख रहे हैं कि वह जंगलों को कोई नुकसान नहीं होने देंगे.

वीडियो में मोदी को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “मैं आदिवासियों को आश्वासन देता हूं कि आपके जल, जंगल और जमीन को खतरा नहीं होगा.”

आप ने सोशल मीडिया पर लिखा, ”छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनने के कुछ ही समय बाद मोदी ने अडानी को जंगल काटने की खुली छूट दे दी है.”

26 दिसंबर को छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने रायपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन की मंजूरी रद्द कर दी थी.

इसी तरह छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता चरण दास महंत ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर एईएल का पक्ष लेने का आरोप लगाया.

वहीं कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंह देव, जिन्होंने पहले खनन परियोजनाओं पर अपनी ही सरकार की आलोचना की थी, ने प्रदर्शनकारी आदिवासी ग्रामीणों के साथ एकजुटता व्यक्त की.

हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि पीईकेबी फेज II के लिए अनुमति केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन द्वारा तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव के बाद जारी की गई थी. उन्होंने कहा कि स्थानीय आबादी ने दो अन्य खनन परियोजनाओं का भी विरोध किया था.

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बार-बार मोदी पर गौतम अडानी के करीबी होने का आरोप लगाया. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक चुनावी रैली के दौरान कहा था, ”अगर कमल का बटन दबाओगे तो वीवीपैट पर अडानी निकलेगा.”

हालांकि, इससे पहले 2022 में उन्होंने हसदेव में अडानी की कोयला खदान के लिए 43 हेक्टेयर में फैले पेड़ों को काटने की अपनी सरकार की मंजूरी को उचित बताते हुए इसे “राष्ट्रीय हित” के लिए जरूरी बताया था.

हाल के घटनाक्रमों ने सरगुजा जिले के क्रमकथरा ग्रामीणों के दैनिक जीवन में काफी बदलाव लाया है. पड़ोसी पेंड्रामार-घाटबर्रा के जंगलों में पेट्रोल से चलने वाली चेनसॉ के शोर के कारण इस क्षेत्र में फंसे जंगली हाथियों को रोकने के लिए निवासी अब रात भर निगरानी करते हैं और मशालें जलाते हैं.

स्थानीय वन अधिकारियों की रिपोर्ट के मुताबिक, असहाय हाथियों की घुसपैठ ने लोगों को संकट और आर्थिक तबाही पहुंचाई है, घरों और खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया है.

खनन के लिए निर्धारित जंगलों के पास हाईवे पर फंसे हाथियों द्वारा यातायात को बाधित करने की भी खबरें हैं. रायपुर स्थित वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल ने एक्स पर भालू के दो बच्चों की तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि “ये दोनों उसी सरगुजा जंगल में पाए गए जहां हसदेव अरण्य को नष्ट किया जा रहा है.”

2012 में बिलासपुर के एक वकील सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का दरवाजा खटखटाया था. दो साल बाद एनजीटी ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को क्षेत्र में खनन के पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने का निर्देश देते हुए खनन लाइसेंस रोक दिया.

डब्ल्यूआईआई और आईसीएफआरई ने अपनी रिपोर्ट में पारिस्थितिक संकट और मानव-वन्यजीव संघर्ष की भविष्यवाणी करते हुए क्षेत्र में एक नई खदान खोलने के प्रति आगाह किया है.

उन्होंने हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र और आसपास के परिदृश्य को नो-गो जोन घोषित करने की सिफारिश की. छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष (एचईसी) के संबंध में डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट से पता चला है कि कम हाथी (भारत की जंगली हाथियों की आबादी का 1 प्रतिशत से भी कम) होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में एचईसी घटनाओं की काफी अधिक संख्या देखी गई, जिसमें सालाना 60 से अधिक मानव मौतें हुईं.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक कोयला-घोटाले के फैसले के हिस्से के रूप में खनन आवंटन को रद्द कर दिया. नरेंद्र मोदी सरकार ने दो अध्ययनों और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति बैनर के तहत स्थानीय निवासियों के लंबे समय से चले आ रहे विरोध को नजरअंदाज करते हुए फरवरी 2022 में पीईकेबी फेज II खनन परियोजनाओं को फिर से आवंटित कर दिया.

हसदेव अरण्य को बचाने के आंदोलन को चलते हुए अब 600 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं. इस आंदोलन में शामिल संगठन पहले भी दिल्ली में आकर राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने की कोशिश कर चुके हैं. उस समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी.

उस समय कम से कम कांग्रेस की हाईकमान ने इस आंदोलन को नोटिस किया था. इसके बाद राहुल गांधी ने हस्तक्षेप किया था और हसदेव के बचने की उम्मीद बंध गई थी.

लेकिन अब केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार है. 3 जनवरी मंगलवार को एक बार फिर हसदेव जंगल और आदिवासियों बचाओ आंदोलन की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश की गई, लेकिन इस आोयजन से मुख्यधारा के टीवी चैनल, अख़बार दूर ही रहे.

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