छत्तीसगढ़ के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिलों में फैले हसदेव अरण्य में कोयला खनन का मुद्दे पर राहुल गांधी पार्टी के भीतर चर्चा करेंगे. लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पहुंचे राहुल गांधी से स्टूडेंट ने इसके बारे में सवाल किया था. इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा, वे इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर बात कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जल्दी ही इसका नतीजा भी नज़र आयेगा.
हसदेव बचाओ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों ने राहुल गांधी के इस बयान का समर्थन किया है. इस बयान का स्वागत करते हुए आंदोलन के नेता आलोक शुक्ला ने दिल्ली में कहा कि राहुल गांधी के इस बयान का स्वागत करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई है कि राहुल गांधी राज्य सरकार से कहेंगे कि हसदेव में जो अनुमति दी गई हैं वो वापस ले ली जाएँ.
लंदन में कुछ छात्रों ने राहुल गांधी से पूछा था कि 2015 में आपने हसदेव अरण्य क्षेत्र में आदिवासियों से कहा था कि वे वह उनके अधिकारों की रक्षा के लिए और कोयला खनन के खिलाफ उनके साथ खड़े रहेंगे. अब जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है, वनों की कटाई और खदानों के विस्तार की अनुमति कैसे मिल रही है.
इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि इस मामले में चल रही चर्चा का परिणाम जल्दी ही सामने आएगा.
दिल्ली में कई संगठनों ने हसदेव बचाओ आंदोलन का किया समर्थन
आज दिल्ली के प्रैस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक प्रैस कॉंफ़्रेंस में कई संगठनों ने हसदेव बचाओ आंदोलन का समर्थन किया. आंदोलन का समर्थन करने वाले संगठनों में से एक भूमि अधिकार आंदोलन के नेता हन्नान मौला ने कहा कि इस मसले पर जुलाई महीने में एक राष्ट्रीय कन्वेंशन बुलाया जाएगा. हसदेव आंदोलन चला रहे संगठनों के समर्थन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन ने यह साबित कर दिया है कि एक मज़बूत आंदोलन ही सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर सकता है.
इस प्रैस कॉन्फ़्रेंस में पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग भी शामिल हुए. इसके अलावा राजस्थान की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा कि राजस्थान सरकार बिजली संकट को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रही है. उन्होंने राजस्थान सरकार की बिजली उत्पादन से जुड़ी रिपोर्टों के हवाले से बताया कि ख़ुद राज्य सरकार यह कहती रही है कि बिजली बनाने के लिए कोयले पर निर्भरता कम होनी चाहिए.
आज दिल्ली में जमा हुए इन सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने केंद्र सरकार की नीतियों की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि सरकार उद्योग घरानों को फ़ायदा पहुँचाने की नीति पर काम कर रही है.
हसदेव बचाओ आंदोलन के नेता आलोक शुक्ला का कहना था कि अभी तक आंदोलन के नेताओं ने सरकार या क़ानून का कोई दरवाज़ा नहीं छोड़ा है जहां दस्तक नहीं दी है. उन्होंने कहा कि इस सिलसिले में आंदोलन के नेता दो बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिल चुके हैं.
दोनों ही बार राहुल गांधी ने आंदोलन के नेताओं को आश्वासन दिया है कि इस मसले का हल जल्दी ही निकाला जाएगा. लेकिन अभी तक इस मामले में कोई नीतिगत पहल नहीं देखी गई है. उन्होंने कहा कि हसदेव में औद्योगिक घरानों को खदान देने के लिए सभी क़ानूनों और नियमों को ताक पर रख दिया गया है.
आलोक शुक्ला ने दावा किया कि हसदेव में कोयला खदानों को अनुमित देने के ज़रूरी ग्रामसभा की अनुमति नहीं ली गई है. उनके अनुसार ग्राम सभाओं की अनुमति के दावे फ़र्ज़ी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ ग्रामीण जो अब इस दुनिया में नहीं हैं उनके हस्ताक्षर भी ग्रामसभा की अनुमति में दिखा दिये गये हैं.
राजस्थान सरकार ने बढ़ाया दबाव
इस बीच राजस्थान सरकार ने खनन शुरू कराने का दबाव बढ़ाया है. राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक आरके शर्मा ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने जल्द से खनन शुरू कराने में प्रशासन की मदद मांगी.
उनका कहना था, उनके परसा की बासन खदान में केवल जून के पहले सप्ताह तक का कोयला है. अगर जल्दी ही दूसरी खदाने शुरू नहीं हुई तो उनके थर्मल पावर प्लांट बंद हो जाएंगे. शर्मा ने सोमवार को सरगुजा और सूरजपुर के कलेक्टर-एसपी से भी मुलाकात की थी.
हसदेव पर खदानों से आया संकट
हसदेव अरण्य उत्तर छत्तीसगढ़ के एक लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला विशाल और घना जंगल है. इसमें बहुत से कोल ब्लॉक भी हैं. केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही यहां परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की थी.
इसके साथ ही संकट बढ़ा और विरोध शुरू हुआ. हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति सहित स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया था, जिस प्रस्ताव के आधार पर यह स्वीकृति दी गई है वह ग्राम सभा फर्जी थी. सरकार ने बात नहीं सुनी और अलग-अलग तिथियों पर अगली मंजूरी भी जारी कर दी गई.
मार्च-अप्रैल में राज्य सरकार ने वन भूमि को खनन के लिए देने की मंजूरी जारी की. 26 अप्रैल को कंपनी ने बिना अनुमति के ही पेड़ों की कटाई शुरू कर दी.