HomeAdivasi Daily बसनिया बांध, चुनाव में बीजेपी को पड़ सकता भारी 

 बसनिया बांध, चुनाव में बीजेपी को पड़ सकता भारी 

5 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के मंडला में जन आर्शिवाद यात्रा की शुरुआत की थी. वहीं ठीक इसके एक दिन पहले आदिवासी समुदाय ने मीटिंग की थी.इस मीटिंग का उद्देश्य बसनिया बांध परियोजना के अंतर्गत विस्थापन कीसमस्या पर सरकार का ध्यान खींचना था. दरअसल इस परियोजना के अंतर्गत 12000 लोगों का विस्थापन किया जाएगा. जिसमें करीब 43 प्रतिशत आदिवासी हैं.

5 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के मंडला में जन आर्शिवाद  यात्रा लॉन्च की था. लॉन्चिंग के दौरान उन्होंने कहा की बीजेपी सरकार आदिवासियों के साथ है.

लेकिन शायद अमित शाह को लॉन्च के एक दिन पहले हुई आदिवासी समुदाय की मीटिंग बारे में जानकारी नहीं थी. तभी उन्होंने इस बारे में कोई बात ही नहीं की थी.

बसनिया बांध परियोजना खारिज हुई थी

7 साल पहले सरकार द्वारा इस परियोजना को रद्द कर दिया गया था. जिसे अब दोबारा लागू करने की बात की जा रही है. यह परियोजना नर्मदानदी की 7 बांध परियोजनाओं में से एक है.  

2016 में इसे सरकार द्वारा इसलिए रद्द किया गया था क्योंकि इस परियोजना के तहत काफ़ी लोगों का विस्थापन किया जा रहा था.

यह सभी लोग नर्मदा नदी के किनारे रहते हैं. और अपनी रोज़ी रोटी के लिए खेती या फिर आस पास के जंगलों पर निर्भर है. जो कि उसे इस परियोजना के तहत छीना जा रहा है. 

इसके अलावा नर्मदा में कई सारे भूकंप भी देखने को मिले है. पिछले दो सालों में नर्मदा नदी के आस पास के जिलों में 37 भूकंप देखने को मिलेहैं.   

इसलिए एक्सपर्ट ये कहते हैं कि बांध बनने से ना सिर्फ विस्थापन की समस्या होगी बल्कि भूकंप आने पर बड़ी तबाही का भी खतरा हो सकता है.

आदिवासी समुदाय की मीटिंग में क्या चर्चा हुई

दरअसल यह मीटिंग 31 गांव के आदिवासी समुदाय के द्वारा की गई थी. इनमें अधिकतर महिलाएं थी. सही मायने में तो इस बैठक में पुरुषों कीसंख्या महिलाओं से कम रहीं.

इस मिटिंग का उद्देश्य था की सरकार को बसनिया बांध परियोजना के तहत हो रही विस्थापन की समस्याओं पर ध्यान दिलवाया जाए.

बसनिया बांध परियोजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश के तीन जिले मंडला, सिवनी और जबलपुर आते हैं. इन तीन जिलों में 132 गांव पड़ते हैं.

जिनमें से 82 गांव में लोगों से विस्थापन किया जाएगा. अब इन गांवो की जनसंख्या 12,000 है. इनमें से 43 प्रतिशत 

अनुसूचित जनजाति, 12 प्रतिशत दलित और 38 प्रतिशत पिछड़ी हुई जाति के लोग रहते हैं. 

इनमें से ज़्यादातर लोग किसान है. अर्थात अपनी रोजी रोटी के लिए आस पास के जंगलों और खेती पर निर्भर है.  लेकिन इस परियोजना के तहत उनसे उनके घर के अलावा रोज़ी रोटी भी छीनी जा रही है. 

सरकार के द्वारा विस्थापन के लिए दिया गया मुआवजा से ना वो आस पास के इलाकों में घर खरीद सकते हैं और ना ही कोई नया काम शुरूकर सकते हैं.

आदिवासियों की इन्हीं समस्याओं को देखते हुए सोमवार को मध्य प्रदेश के चकदही गांव में मीटिंग रखी गई. 

जिसमें यह फैसला लिया गया की अगर सरकार विस्थापन से हो रही उनकी इन समस्याओं पर ध्यान नहीं देगी तो वे आने वाले चुनावों में मौजूदासरकार यानी बीजेपी को वोट नहीं करेंगे

अक्सर आदिवासी  हो या कोई आम आदमी उन्हें अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाने के लिए ऐसी ही चेतावनी का इस्तेमाल करना पड़ता है.

क्योंकि वक्त में रहते सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देती. 

 

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