HomeIdentity & Lifeस्टुअर्टपुरम: इस आदिवासी गांव के साथ नाइंसाफ़ी में दिलचस्प क्या है?

स्टुअर्टपुरम: इस आदिवासी गांव के साथ नाइंसाफ़ी में दिलचस्प क्या है?

स्टुअर्टपुरम (Stuartpuram) गांव पर एक और फ़िल्म बन रही है. यह फ़िल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' के निर्माता बना रहे हैं. इस गांव पर पहले भी तीन फ़िल्म बन चुकी हैं. इस गांव के 'जी नागेश्वर राव' के जीवन पर बन रही फ़िल्म की बात करते हुए कई मीडिया प्लेटफ़ार्म कहते हैं कि उनकी कहानी काफ़ी दिलचस्प है. लेकिन मेरी नज़र में तो इस गांव की कहानी ऐतिहासिक नाइंसाफ़ी और पूर्वाग्रह की है. जो अंग्रेज़ों के ज़माने में शुरू हुई और आज तक चल रही है.

‘स्टुअर्टपुरम’ (Stuartpuram village) आंध्र प्रदेश के बापतला ज़िले के चिराला ब्लॉक में बसा एक गांव है. इस गांव का नाम बेशक आपको थोड़ा सा सोच में तो ज़रूर डलाता है. दरअसल यह गांव एक अंग्रेज़ अफ़सर के नाम पर बसाया गया है. इस अंग्रेज अफ़सर का नाम था -हेरोल्ड स्टुअर्ट . तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के सदस्य हेरोल्ड स्टुअर्ट (Harold Stuart) के नाम पर इस गाँव को स्थापित किया गया था. 19वीं शताब्दी की शुरूआत में वह भारत के गृहमंत्री की भूमिका में थे. 

इस गांव में येरुकला आदिवासी रहते हैं. इन आदिवासियों ने अपने गांव के पास से गुज़रने वाले हाईवे नं 48 पर एक हरे रंग का बोर्ड लगाया है. इस बोर्ड पर तेलगू में एक अपील लिखी गई है. यह अपील उन फ़िल्म निर्माताओं से है जो इस गांव के आदिवासियों पर फ़िल्म बना रहे हैं. इस अपील में कहा गया है कि आदिवासियों के इस गांव को बदनाम करना बंद किया जाए. 

इस गांव के इतिहास और आदिवासियों के साथ हुए अन्याय पर बात करने से पहले बात उस पृष्ठभूमि की जिसकी वजह से गांव के लोगों को ये बोर्ड लगाने पड़े हैं. तेलुगु फिल्मों के स्टार रवि तेजा (Film Star Ravi Teja) के साथ एक फ़िल्म बन रही है ‘टाइगर नागेश्वर राव’ (Tiger Nageshwar Rao). इस फ़िल्म में दिखाया गया नायक एक आदिवासी है. जी नागेश्वर राव को साल 1987 में पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया था. 

इस फ़िल्म के निर्माता अभिषेक अग्रवाल हैं जिन्होंने ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ (Film The Kashmir Files) बनाई थी. 

जी नागेश्वर राव के बारे में कहा जाता है कि उनकी ‘रॉबिनहुड’ वाली छवि थी. यानि क़ानून की नज़रों में वह एक अपराधी थे. लेकिन उनके गांव के लोगों के लिए वह मसीहा से कम नहीं थे. यह पहला मौक़ा नहीं है आदिवासियों के इस गांव पर कोई फ़िल्म बन रही है. इस गांव पर 1991 में दो फ़िल्में ‘स्टुअर्टपुरम पुलिस’ (Stuartpuram Police, 1991) और ‘स्टुअर्टपुरम डोंगालु’ (Stuartpuram Dongalu, 1991) के अलावा साल 2019 में ‘स्टुअर्टपुरम’ नाम की फ़िल्म बनी थी.

इस गांव के लोगों का निवेदन है कि उनके गांव के बारे में लगातार नकारात्मक प्रचार किया गया है. इसकी वजह से उनकी जीविका और जीवन पर बुरा असर पड़ा है. 

स्टुअर्टपुरम का इतिहास और आदिवासियों के साथ अन्याय

1913 में यह गांव अंग्रेज़ों ने एक ‘सुधार बस्ती’ (reformation settelment) के तौर पर बसाया था. ब्रिटिश शासकों ने साल 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट (Criminal Tribes Act 1871) बनाया था. इस कानून के तहत किसी भी आदिवासी समुदाय को अपराधियों का समूह घोषित किया जा सकता था. 

इस कानून को बनाने के पीछे समझ यह थी कि जब तक पूरे आदिवासी समुदाय पर नज़र नहीं रखी जाएगी तब तक अपराधियों को काबू करना मुश्किल था. इसलिए भारत के कई समुदाय पर यह सामाजिक और कानूनी कलंक (social and leagal stigma) सदा के लिए चस्पा कर दिया गया. 1897 में इस कानून में संशोधन किया गया. 

इस संशोधन में यह प्रावधान किया गया कि येरुकला आदिवासी समुदाय के अपराधियों के बच्चों को मां-बाप से अलग सुधार बस्तियों में रखा जाए. लेकिन 1908 में इस कानून में हुए संशोधन के बाद पूरे आदिवासी समूह को ही सुधार बस्तियों में रख कर उन पर निगरानी की व्यवस्था की गई.

आज़ादी के बाद भी कलंक नहीं मिटा है

साल 1952 में उस क़ानून को समाप्त कर दिया गया जो कुछ आदिवासी समुदायों को ‘अपराधी’ घोषित करता है. लेकिन इसके बावजूद इन समूहों के बारे में ग़ैर आदिवासी समुदायों, पुलिस, प्रशासन और न्यायालयों की धारणा नहीं बदली है. 

आदिवासी भारत में यात्राओं के दौरान यह हमने बार-बार देखा और सुना है. मध्य प्रदेश और राजस्थान के सहरिया से लेकर महाराष्ट्र के कातकरी या फिर आंध्र प्रदेश के येरुकुला के बारे में जो पूर्वाग्रह अंग्रेज़ों के ज़माने में मौजूद थे, वो आज भी हैं. 

महाराष्ट्र के कातकरी समुदाय पर देखिये यह ख़ास रिपोर्ट –

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