HomeIdentity & Lifeमणिपुर: शांति का रास्ता भरोसे की गली से निकलेगा

मणिपुर: शांति का रास्ता भरोसे की गली से निकलेगा

कुकी और मैती दोनों समुदायों के संघर्ष में कम से कम 115 लोगों की जान जा चुकी है और 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को अपना घर-बार छोड़ कर कैंपों में शरण लेनी पड़ी है. इस लिहाज़ से यह एक मानवीय त्रासदी भी बन गई है. इस मसले का हल भी तभी निकल सकता है जब इसे मानवीय पीड़ा की दृष्टि से देखा जाएगा.

मणिपुर से ख़बर है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफ़ा देने से मना कर दिया है. वे आज यानि 30 जून शुक्रवार को दोपहर बाद 3 बजे राज्यपाल अनुसुया उईके से मिलने वाले थे. लेकिन यह बताया गया है कि उनके घर के सामने मैती समुदाय के लोग इतनी बड़ी संख्या में जमा हो गए कि मुख्यमंत्री अपने घर से ही नहीं निकल पाए. उसके बाद मणिपुर सरकार की तरफ से यह बताया गया कि मुख्यमंत्री को इस्तीफा नहीं देने के लिए मना लिया गया है. उनके इस्तीफ़े के बारे में आई ख़बरों के मुताबिक केंद्र सरकार की तरफ से ही उन्हें इस्तीफ़ा देने के लिए कहा गया था. ऐसा लग रहा था कि मणिपुर के संकट से निपटने की दिशा में केंद्र सरकार ने निर्णायक कदम उठाने का फैसाल कर लिया है.  है. क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ना सिर्फ हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं, बल्कि उन पर आरोप है कि उन्होंने हिंसा को भड़काने वाले बयान दिये है.  इधर दिल्ली से ख़बरें आती रहीं कि गृहमंत्रालय में उच्च स्तरीय बैठक में मणिपुरा के हालातों पर गंभीर चर्चा हो रही है.  

इस बीच कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी भी मणिपुर पहुंचे और वहां पर हिंसा प्रभावित लोगों और राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की है. उन्होंने मणिपुर के हालातों का जायज़ा लेने के बाद कहा है कि वे वहां पर लोगों के दुख को समझने के लिए आए हैं, वो इस मुद्दे पर किसी तरह राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं करना चाहते हैं. निश्चित ही यह एक स्वागतयोग्य बात है. 

मणिपुर में मैती समुदाय और कुकी आदिवासियों के बीच संघर्ष और हिंसा को अब दो महीने हो चले हैं. लेकिन राज्य या केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में कोई निर्णायक कदम सामने नहीं आया है. गृहमंत्री अमितशाह तीन दिन मणिपुरा में रहे. वे वहां के अलग अलग समुदायों के नेताओं से भी मिले. लेकिन उन मुलाकातों का कोई नतीजा नहीं निकला. उसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से ऐसा कोई कदम नज़र नहीं आया जिससे मणिपुर में शांति बहाली की उम्मीद जगती हुई दिखाई देती.

मणिपुर के मामले में सबसे हैरान करने वाली बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुप्पी है. प्रधानमंत्री ने मणिपुर के हालातों पर या वहां के समुदायों का भरोसा जीतने की कोशिश से जुड़ा एक भी बयान नज़र नहीं आता है. बोल्ड फैसलों का दावा करने वाली मोदी सरकार मणिपुर के मामले में क्यों इतनी ख़ामोश है समझना मुश्किल है. 

मणिपुर भारत पूर्वोत्तर के खूबसूरत राज्यों में से एक है और साथ साथ देश की सुरक्षा और कई अन्य कारणों से भी यह राज्य बेहद अहम है. इस राज्य की पहाड़ियों में कुकी और नागा आदिवासी समुदाय रहते हैं और घाटी यानि मैदानी इलाकों में मैती आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. मैती आदिवासी समुदाय के लोग शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर ज़्यादा संपन्न माने जाते हैं और वहीं पहाडों में बसने वाले आदिवासी समुदाय राज्य की ज़्यादातर ज़मीन के मालिक हैं. 

मैती समुदाय के लोग लंबे समय से यह दावा करते हैं कि उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाए, लेकिन कुकी समुदाय यह मानता है कि अगर ऐसा होता है तो मैती समुदाय जो बलशाली और संपन्न है वो पहाड़ों पर भी कब्ज़ा कर लेगा. 

इस मुद्दे के अलावा भी कई ऐसे मुद्दे बताए जाते हैं जिनकी वजह से मणिपुर के इन दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था. लेकिन राज्य में जो ताज़ा तनाव के हालात हैं वे काफी संगीन हो चुके हैं. इन हालातों को बदलने की दिशा में सबसे पहला कदम इन दोनों समुदायों का भरोसा जीत कर इन्हें बातचीत की मेज पर लाना है. क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ और सिर्फ कानून व्यवस्था का नहीं है. इस मामले को सामाजिक-राजनीतिक नज़रिये देखना होगा. 

मणिपुर में आज एक दूसरे के ख़ून के प्यासे नज़र आने वाले कुकी और मैती समुदाय का इतिहास जानने वाले कहते हैं कि दरअसल एक समय में इंफ़ाल घाटी में बसे मैती लोगों की सुरक्षा की गारंटी कुकी समुदाय था. यह बताया जाता है कि मैती समुदाय के राजाओं ने नागा लड़ाकों से बचने के लिए ही मणिपुर की पहाड़ियों में कुकी समुदाय के लोगों को बसाया था.

आज इन दोनों ही समुदाय के संघर्ष में कम से कम 115 लोगों की जान जा चुकी है और 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को अपना घर-बार छोड़ कर कैंपों में शरण लेनी पड़ी है. इस लिहाज़ से यह एक मानवीय त्रासदी भी बन गई है. 

मणिपुर में जो भी हो रहा है उसके पीछे अलग अलग समुदायों की aspirations यानि आकांक्षाओं का टकराव के अलावा भी कई बातें बताई जाती हैं. लेकिन मैती और कुकी दोनों ही समुदायों के नेताओं और बुद्धिजीवियों की बातें अगर सुनें तो दोनों ही तरफ एक असुरक्षा का भाव नज़र आता है. एक तरफ मैती समुदाय यह कहता है कि धीरे धीरे राज्य में वे अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं. उनके संसाधन सीमित हैं और उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान ख़तरे में है. भारत के अन्य हिस्सों से आकर बसने वाले लोगों के अलावा गृहयुद्ध में फेसे बर्मा से आने वाले कुकी लोगों की संख्या में भी इज़ाफ़ा हुआ है. उधर कुकी समुदाय को आशंका रहती है कि मैती समुदाय जो पहले से ही राज्य की राजनीतिक को कंट्रोल करता है, अगर अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल कर लिया गया तो फिर जो पहाड़ आज उनके हैं उन पर भी मैती समुदाय का कब्ज़ा हो सकता है. कुछ ही दिन पहले राज्य की सरकार ने कई इलाकों में कुकी आदिवासियों को ज़मीन खाली करने का आदेश दिया…उसके बाद कुकी समुदाय में यह आशंका और बढ़ती चली गई.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि मणिपुर की हिंसा के पीछे कई तरह के vested interest भी हो सकते हैं. क्योंकि यह भी कहा जाता है कि मणिपुर में नशीले पदार्थों का एक बड़ा नेटवर्क भी काम करता है…इसके अलावा वहां की पहाड़ियां में खनिज दबे हैं…लेकिन ऐसे समूह जो अपने फ़ायदे के लिए हिंसा को बढ़ावा देते हैं, तभी कामयाब होते हैं जब समुदायों के बीच faultlines यानि मनमुटाव या टकराव होता है….और सरकार उन मतभेदों पर समय रहते काम नहीं करती है.

फ़िलहाल मणिपुर के हालात संगीन हैं और सरकार इन हालतों के लिए जवाबदेह है. यह बात भी सही है कि मणिपुर के दो समुदायों के बीच पैदा इस संघर्ष का सिंपल समाधान नहीं है….लेकिन यह बात भी उतनी ही सही है कि इस संकट के समाधान की शुरूआत लोगों का भरोसा जीतने से ही होगी…अब प्रधानमंत्री को देर किये बिना लोगों से शांति बनाने की अपील के साथ समाधान का भरोसा देना चाहिए. मैती समुदाय हो या फिर आदिवासी कुकी समुदाय दोनों ही पक्षों को यह भरोसा दिलाया जाना ज़रूरी है कि उनकी चिंताओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाएगा….और ना ही लंबे समय के लिए टाला जाएगा. 

मणिपुर में नागरिकों के संगठनों के अलावा कई ऐसे व्यक्ति विशेष हो सकते हैं जो सरकार की इस काम में मदद कर सकते हैं……

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