HomeIdentity & Lifeकैसे आदिवासी ज़िंदगी बांस पर टिकी हुई है

कैसे आदिवासी ज़िंदगी बांस पर टिकी हुई है

आदिवासी जीवन बांस से बंधा है. उसकी ज़िंदगी के हर हिस्से में बांस का उपयोग होता है. मकान बनाने से लेकर खाने तक में बांस इस्तेमाल होता है.

18 सितंबर विश्व बांस दिवस है. बांस का इस्तेमाल हम सभी किसी ना किसी रूप में करते ही हैं. लेकिन

बांस का महत्व आदिवासियों के जीवन में बेहद ख़ास है. आदिवासियों में बांस का इस्तेमाल खाने में,

खाना पकाने में, मकान बनाने में किया जाता है.

इसके अलावा उनके सामाजिक और धार्मिक उत्सव में भी इसका इस्तेमाल होता है. यानि आदिवासी

जीवन का शायद ही कोई पहलू है जिसमें बांस का इस्तेमाल नहीं होता है. लेकिन आईए सबसे पहले

जानते है की विश्व बांस दिवस को क्यों मानाया जाता है?

साल 2009 को वर्ल्ड बेम्बू ऑगेंनाइजेषन ने यह फैसला किया की हर साल सितंबर के महीनें में विश्व

बांस दिवस बनाया जाए. ताकि लोगों तक इसके इस्तेमाल ओर उपयोगिता को लेकर जागरूकता फैले.

वहीं इसके उत्पादन की बात करें तो पूरे विश्व का 80 प्रतिशत बांस एशिय़ा मे मिलता है. जिसमें

मुख्य रूप से भारत चीन और म्यांमार में 19.8 बीलियन हक्टेयर में बांस की खेती की जाती है.

चीन के बाद भारत पूरे विश्व में बांस के उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर आता है. भारत में हर

साल करीब 50 लाख टन बांस का उत्पादन होता है.

आदिवासी जीवन कैसे बांस पर टिका रहता है यह जानने के लिए आप उपर का वीडियो देखें.

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