HomeAdivasi Dailyकर्मा मुदली का ज़िला टॉप करना इतनी बड़ी बात क्यों है

कर्मा मुदली का ज़िला टॉप करना इतनी बड़ी बात क्यों है

कर्म मुदली आदिम जनजाति यानि आदिवासियों में भी आर्थिक और शैक्षिक तौर पर सबसे पिछड़े समूह से हैं. उन्होंने अपने सफ़र के बारे में बात करते हुए मीडिया से कहा, “मेरे लिए पढ़ाई आसान नहीं थी, ख़ासतौर से कोविड की वजह से स्कूल बंद थे और मेरे पास इंटरनेट की सुविधा ठीक नहीं थी. इसलिए पढ़ाई करना बेहद मुश्किल हो गया था.”

ओडिशा के मलकानगिरी ज़िले के पहाड़ों में बसा बोंडा समुदाय (Bonda Community) देश के सबसे पिछड़े आदिवासी समूहों में शामिल है. इस आदिम जनजाति (Particularly Vulnerable Tribal Group) के बारे में कहा जाता है कि वो अपने परिवेश और संस्कृति को किसी भी क़ीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं है. इस आदिवासी समुदाय की आबादी में कमी पर चिंता भी प्रकट की जाती रही है. 

बोंडा समुदाय में महिलाओं की साक्षरता दर 27 प्रतिशत के क़रीब बताई जाती है. इस पृष्ठभूमि से आने वाली एक लड़की अगर 12वीं की परीक्षा में ज़िला टॉप किया हो तो यह मामूली ख़बर नहीं है. 

बोंडा आदिवासियों के बारे में जानने के लिए यह वीडियो देखें

मलकानगिरी ज़िले की कर्मा मुदली ने कॉमर्स के विषयों में 82.66 प्रतिशत अंक हासिल किये हैं. ज़िला प्रशासन ने उन्हें इस कामयाबी के लिए स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित करने का फ़ैसला किया है.

कर्म मुदली आदिम जनजाति यानि आदिवासियों में भी आर्थिक और शैक्षिक तौर पर सबसे पिछड़े समूह से हैं. उन्होंने अपने सफ़र के बारे में बात करते हुए मीडिया से कहा, “मेरे लिए पढ़ाई आसान नहीं थी, ख़ासतौर से कोविड की वजह से स्कूल बंद थे और मेरे पास इंटरनेट की सुविधा ठीक नहीं थी. इसलिए पढ़ाई करना बेहद मुश्किल हो गया था.”

बोंडा आदिवासी और चिंताएँ 

देश की 75 आदिम जनजातियों में से एक बोंडा समुदाय भी है. यानि इन समुदायों के बारे में माना जाता है कि वो अभी भी काफ़ी हद तक आदिम युग के औज़ार और तकनीक के सहारे ही जी रहे हैं. 

इन समुदायों में से कई के बारे में यह पाया गया है कि उनकी आबादी लगातार घट रही है. कई समुदायों के बारे में यह चिंता भी बताई जाती है कि उनका अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है. 

मलकानगिरी के बोंडा समुदाय के बारे में भी एक समय में यह चिंता प्रकट की जाती थी. जनगणना आंकडों में बोंडा आदिवासियों की आबादी 1941 में 2565 रह गई. लेकिन अगले दो दशक में इनकी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज हुई.

बोड़ा आदिवासी समुदाय की महिलाएँ

1961 में इनकी आबादी 4667 दर्ज हुई. 1971 में, बोंडा आदिवासियों की कुल आबादी 5338 बताई गई, और 1981 की जनगणना में 5895. यानि 70 के दशक में एकबार फिर इनकी आबादी में वृध्दि दर सुस्त हुई. फ़िलहाल पहाड़ी बोंडा आदिवासियों की आबादी 8000 बताई जा रही है.

बोंडा आदिवासी आबादी की वृध्दि दर में एक और बात नोटिस करने लायक है कि अलग-अलग दशकों में बोंडा आबादी के लिंगानुपात में फ़र्क आया है. मसलन, 1961 की जनगणना में महिलाओं की संख्या में कमी आई. इस जनगणना में 1000 पुरुष कि तुलना में 921 महिलाएं थीं.

लेकिन ताज़ा हालात बेहतर हुए हैं. बोंडा आदिवासियों में लिंगानुपात भी बेहतर हुआ है. बल्कि पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या बढ़ी है. इसके अलावा जनसंख्या वृध्दि दर भी नकारात्मक नहीं है.

बोंडा आदिवासी और शिक्षा

ओडिशा का मलकानगिरी ज़िला देश के 100 सबसे पिछड़े ज़िलों में से एक है. एक वक़्त में यह ज़िला माओवादी गतिविधियों का बड़ा केन्द्र था. सरकार के अपने आँकड़े बताते हैं कि मलकानगिरी में कुल साक्षरता दर 46.14 प्रतिशत है. महिलाओं की साक्षरता दर के बारे में सरकार का दावा है कि अब यहाँ महिला साक्षरता दर 35 प्रतिशत हो चुकी है. 

यहां शिक्षा का स्तर क्या है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए शायद यह आँकड़े काफ़ी हैं. लेकिन सोचिए कि जहां पूरे ज़िले के ये हालात हैं वहाँ दूर दराज़ के दुर्गम पहाड़ी इलाक़ों में रहने वाले आदिम जनजाति के लोगों का क्या हाल होगा. 

इस मामले में जनगणना आंकडों पर ध्यान दें तो 1961 में बोंडा आदिवासियों की साक्षरता दर थी 2.14 प्रतिशत, 1971 में ये साक्षरता दर पहले से भी कम दर्ज की गई – 1.42 प्रतिशत. 

1981 में बोंडा आदिवासियों में साक्षरता दर कुछ बढ़ी हुई बताई गई और ये दर थी 3.61 प्रतिशत. इन तीनों ही दशकों में महिला साक्षरता दर एक प्रतिशत भी नहीं पहुंची.हालांकिबताया जा रहा है कि पिछले कमसे कम दो दशकों में बोंडा आबादी की साक्षरता दर में कुछ सुधार हुआ है.

बोंडा डेवलपमेंट ऑथोरिटी ने लड़कियों के लिए अलग से स्कूल बनाए हैं. ऑथोरिटी का दावा है कि अब बोंडा आदिवासियों में साक्षरता दर 27 प्रतिशत है. हांलाकि इस दावे पर भरोसा करना बेहद मुश्किल है.

बोंडा डेवलपमेंट ऑथोरिटी और इन आदिवासियों के विकास से जुड़ी दूसरी एजेंसियों ने बोंडा आदिवासियों के बीच शिक्षा के प्रसार के लिये प्रयास भी किये हैं, और काफ़ी पैसा भी ख़र्च किया है. लेकिन MBB की टीम ने ओडिशा के कई ज़िलों में यह पाया था कि इस पैसे का ज़्यादातर हिस्सा स्कूलों की इमारतों पर ख़र्च हुआ है. 

बोंडा आदिवासियों केबच्चों को स्कूल तक लाना अभी चुनौती है. साथ ही इन बच्चों को पढ़ाने के लिये अच्छे अध्यापक मिलना भी चुनौती है. इस लिहाज से बोंडा समुदाय की एक लड़की की यह कामयाबी समुदाय को अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई के लिए भेजने को प्रेरित कर सकती है.

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