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ओडिशा के गांव में 50 दिनों में 9 जुआंग आदिवासियों की मौत, स्वास्थ्य अधिकारियों ने शुरू की जांच

ओडिशा के जंतारी गाँव में जुआंग समाज की आधी आबादी रहती है और ये आधी आबादी अब खतरे में बताई जा रही है. दरअसल यहां 9 आदिवासियों की अलग अलग कारणों से मौत हो गई और 10 अन्य लोगों में भी वहीं कारण देखने को मिले हैं.

ओडिशा (Odisha) के क्योंझर ज़िले (Keonjhar District) के बंसपाल ब्लॉक के जंतारी गांव (Jantari village) में 50 दिन के भीतर अलग-अलग कारणों से 9 जुआंग आदिवासियों की मौत हो गई है. जुआंग ओडिशा के 13 आदिम जनजातीय समूह में से एक है.

30 अगस्त के बाद से गांव में 6 महीने के शिशु सहित कम से कम 9 जुआंग आदिवासियों की मौत हो गई है.
अब इस मामले में स्वास्थ्य अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है.

एक ग्रामीण ने बताया कि मरने वाले सभी लोग बुखार और दस्त से पीड़ित थे. स्थानीय सरकारी अस्पताल से दवा लेने के बाद कुछ ही दिनों में वे ठीक होने लगे. लेकिन मरने से कुछ ही दिनों पहले उनकी हालत बिगड़ गई.

एक अन्य ग्रामीण ने कहा कि मेरी भूख काफी कम हो गई है. मुझे कमजोरी महसूस हो रही है. मैं अस्पताल गया लेकिन मेरे स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा है.
ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोनासिका गांव से 15 किलोमीटर दूर है जबकि निकटतम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बंसपाल 40 किलोमीटर दूर स्थित है.

अचानक इतने आदिवासियों की मौत हो जाने से पूरे क्षेत्र में तनाव की स्थिति बन गई है.इस पूरे गाँव में 100 से ज्यादा जुआंग आदिवासियों का परिवार रहता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक पूरे राज्य की लगभग आधी जुआंग आबादी इसी क्षेत्र में रहती है.

इसलिए जुआंग समाज में फैल रही मौत के ये अलग-अलग कारण एक बड़ी चिंता का विषय बन सकते हैं. क्योंकि अगर ऐसी ही मृत्यु जारी रही तो जुआंग समाज की आधी आबादी विलुप्त हो सकती है.

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 20 अक्टूबर को स्वास्थ्य विभाग ने इस पूरे क्षेत्र में जांच करने का फैसला किया था. जिसके बाद उन्हें जुआंग समाज में हो रही मौतों के अलग अलग कारण मिले हैं.

इसी सिलसिले में डॉ रमाकांत मुंडा ने बताया की इन 9 आदिवासियों की मौत का कोई एक कारण नहीं है. इनमें से कुछ को टीबी और कुछ को किडनी से संबंधित बीमारियां थी.

इसके अलावा बाकी मरीजों की मृत्यु बढ़ती उम्र के कारण हुई है. यहीं बीमारियां अब गाँव के 10 और आदिवासियों में देखने को मिली है. इन सभी 10 आदिवासियों का ब्लड सैंपल इन्होंने ले लिया है और इनके ब्लड की जांच अभी की जा रही है.

वहीं स्वास्थ्य विभाग के द्वारा बीमारी के अलावा जुआंग समाज में हो रही मृत्यु के कुछ अन्य कारण भी बताए हैं.

स्वच्छ पेयजल की समस्या

स्वास्थ्य विभाग ने बताया की स्वच्छ पेयजल न होना भी जुआंग समाज में बढ़ रही मौतों का कारण हो सकता है. क्योंकि कुछ समय पहले ही गाँव में पेयजल पहुंचाने वाले सौर ऊर्जा संचालित परियोजनाओं को बंद किया गया था.

दरअसल इस परियोजना के अंतर्गत पेयजल पहुंचाने वाले टैंकरों के पानी से बदबू आ रही थी और कीड़े भी तैर रहे थे. इसलिए अब इन आदिवासियों के पास टैंकर के अलावा अलग-अलग जगहों पर बह रहे झरनों से पानी लेना एकमात्र विकल्प रह जाता है.

इसके अलावा जुआंग आदिवासियों में मच्छरों से होने वाली बीमारियों की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है क्योंकि जमा हुआ पानी कीटों के लिए प्रजनन स्थल बन गया है.

स्वास्थ्य आदतों में सुधार की जरूरत

भुवनेश्वर के उत्कल विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं, जिन्होंने क्योंझर में जुआंग आदिवासियों के स्वास्थ्य-संबंधी व्यवहार पर एक अध्ययन किया था.

उन्होंने पाया की जुआंग आदिवासी ज्यादातर बीमारियों का ईलाज करने के लिए अपने पारंपरिक उपाय अपनाते हैं और स्थिति बिगड़ने पर ही पास के चिकित्सा केंद्र पर जाते हैं.

शोधकर्ताओं का कहना है कि वे आम तौर पर मानते हैं कि सभी बीमारियों का कारण ईश्वर या आत्मा है. उनके अनुसार खराब स्वास्थ्य और कुछ नहीं बल्कि रोगी पर संबंधित देवी (ठाकुरानी) या आत्माओं का प्रकोप है.

अगर घरेलू उपचार करने के बाद भी बीमारी बनी रहती है तो वे बीमार व्यक्ति की आत्मा को संतुष्ट करने के लिए गुनिया (जादूगर) या राउडिया (हर्बलिस्ट) के पास जाते हैं.

लेकिन जब मरीज की स्थिति चिकित्सक के नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो मरीज को पीएचसी ले जाया जाता है.

हैरानी की बात यह है कि अगर पीएचसी द्वारा इलाज के बाद भी मरीज ठीक नहीं होता है तो उसे एक बार फिर इलाज के लिए देहुरी (पुजारी) के पास ले जाया जाता है.

अगर जुआंग समाज के आदिवासियों को बचाना है तो इनके स्वास्थ्य स्थिति पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही ध्यान देना होगा. इसके साथ ही गाँव में चिकित्सा केंद्र बनाने की भी आवश्यकता है. जिससे इन आदिवासियों को अपने इलाज में कोई दिक्कत न हो.

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