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अवैध के साथ वैध खदानों को बंद करने के खिलाफ़ आदिवासियों का प्रदर्शन

शिकारीपाड़ा पत्थर औद्योगिक इलाके में बंद किए गए खदान क्रशर खुलवाने की मांग को लेकर मजदूर यूनियन के बैनर तले दुमका रामपुरहाट एनएच 114ए को जाम कर मजदूरों ने सरकार के विरोध में जमकर नारेबाजी की. इस दौरान महिला मजदूरों ने भी अपने पारंपरिक अस्त्र लेकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ हल्ला बोला. मजदूरों ने आरोप लगाया कि प्रशासन क्षेत्र में कोयला खदान खोलना चाहता है ताकि लोग विस्थापन का शिकार हो जाएं.

झारखंड के दुमका ज़िले में क्रशर खदानों को खुलवाने को लेकर झारखंड निर्माण मजदूर यूनियन के सदस्यों ने प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शन कर रहे मजदूरों ने दुमका-रामपुरहाट हाईवे मुख्य मार्ग को घंटों जाम कर दिया. यह जाम शिकारीपाड़ा थाना क्षेत्र के सरसडंगाल गांव के पास लगाया गया है. मजदूर अपनी मांग पूरा करवाने की जिद पर अड़े हुए हैं.

दरअसल झारखंड में अवैध खनन रैकेट के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा चल रही जांच के मद्देनजर हाल ही में प्रशासन द्वारा खदानों को बंद कर दिया गया था. हालांकि ज़िला अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने सिर्फ अवैध खदानों को बंद किया है. वहीं प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि क़ानूनी खदानों को भी बंद कर दिया गया है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है.

झारखंड निर्माण मजदूर यूनियन के ज़िला सचिव सुभाष मंडल, जिला परिषद सदस्य अविनाश सोरेन, पंचायत के जनप्रतिनिधि सहित काफी संख्या में ग्रामीण मौजूद है. मजदूर यूनियन संघ के नेता सुभाष मंडल ने कहा कि शिकारीपाड़ा में सैकड़ों पत्थर की खदानें और क्रशर प्लांट बंद कर दिए गए हैं.

प्रदर्शनकारी ज़िला प्रशासन पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि काफी संख्या में क्षेत्र के लोग बेरोजगार हो गए हैं. लेकिन प्रशासन इसे शुरू नहीं होने दे रहा है. उनका कहना है कि जिस जगह पत्थर खदान खुलवाने की मांग की जा रही है. इस इलाके को कॉल ब्लॉक के रूप में चिन्हित किया गया है. जिसके कारण पत्थर की उत्खनन पर रोक लगा दी गई.

मजदूरों ने चेतावनी दी है कि वो किसी भी कीमत पर बिना ग्राम सभा किए या ग्रामीणों से बिना सहमति के कोयला खदान नहीं खोलने देंगे. मजदूरों ने बंद हो रहे पत्थर खदान और क्रशर उद्योग को फिर रफ्तार देकर चालू कराने की मांग की है.

वहीं जिला परिषद सदस्य अविनाश सोरेन ने कहा कि इलाके में स्थिति विकट है, इसे देखते हुए पत्थर खदान, क्रशर जल्द खुलना चाहिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके.

शिकारीपाड़ा के ग्राम प्रधान उडु मरांडी ने कहा, “पत्थर की खदानों और कोल्हू संयंत्रों के बंद होने के कारण लगभग 50 हज़ार लोगों के लिए भुखमरी जैसी स्थिति बनी हुई है. इस वर्ष बारिश नहीं होने की वजह से सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है, ऐसे में हमारा जीवन कठिन हो गया है.”

वहीं ज़िला खनन अधिकारी कृष्ण कुमार किस्कू ने कहा कि प्रस्तावित कोयला ब्लॉकों के अलावा अन्य क्षेत्रों में स्थित कानूनी पत्थर खदानों और क्रशर संयंत्रों का संचालन बदस्तूर जारी है.

इस सिलसिले में MBB से बात करते हुए ऑल इंडिया सेंटर काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन, (All India Central Council of Trade Unions) झारखंड के जनरल सेक्रेटरी, भुवनेश्वर केवट ने कहा कि पूरे राज्य में झारखंड सरकार ने बालू का टेंडर देना बंद कर दिया उसके चलते बालू घाट से उठाव बंद हो गया. उसी तरह से पत्थर खदान और अभ्रक के छोटे खदान को गैर क़ानूनी बनाकर पूरे राज्य में सारा काम ठप्प कर दिया है. जिसके चलते निमार्ण सेक्टर में काम करने वाले राज्य के 40 लाख से अधिक मजदूर पूरी तरह से बेरोजगार हो गए और उन्हें काम मिलना बंद हो गया है, ये लोग भूखमरी के शिकार हो रहे हैं.

उनका कहना है कि पहले तो ये लोग कोविड-19 संक्रमण के दौरान काम न मिलने के चलते परेशान थे और अब सरकार के इस तरह फैसलों के चलते उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है. इसके साथ ही राज्य में इस बार बारिश नहीं हुई है, यहां औसत से 40 फीसदी कम बारिश हुई जिससे सूखाड़ की स्थिति पैदा हो गई और रोपाई का बहुत कम काम हुआ है. ऐसे में मजदूर क्या करें… इसलिए मजदूर सरकार की पॉलिसी के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं.  

उन्होंने कहा कि शिकारीपाड़ा में 250 पत्थर खदान हैं. जिसमें से कुछ खदान गैर कानूनी हैं और ज्यादातर क़ानूनी तौर पर वैध हैं, बावजूद इसके सभी खदानों को बंद कर दिया गया है. क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक निजी कंपनी को इस इलाके को कोल ब्लॉक के लिए आवंटित किया गया है. ऐसे में करीब 2,500 आदिवासी महिला और पुरुष आंदोलन के लिए सड़कों पर उतरें.

इसके बाद एसडीएम आए और उनसे कहा गया कि जबतक कोल ब्लॉक का काम शुरू नहीं होता है तबक खदानों को चालू रखा जाए और इसके लिए पत्र भी दिया गया. अचनाक वहां डीएसपी आ गए और उन्होंने फौरन जगह खाली करने का फरमान सुना दिया.

लेकिन आदिवासियों के साथ ऐसा है कि वो अपनी मर्जी से चले गए तो ठीक पर अगर उनके साथ जबरदस्ती की जाती है तो वो मर जाएंगे लेकिन हटेंगे नहीं, ये उनका स्वभाव है..यहां पर उन्हें जबरन हटाने की कोशिश की गई और दबाव बनाया गया, तब जाकर लोग अड़ गए और इस बीच दोनों पक्षों के बीच नोकझोक हुई. सात नामजद के साथ 450 से अधिक महिला और पुरुषों पर मामला दर्ज किया गया है.

लोगों का कहना है कि जो पत्थर खदान गैर क़ानूनी है उन्हें वैध करार दिया जाए क्योंकि हज़ारों की संख्या में मजदूर यहां काम करते हैं.

आख़िर में भुवनेश्वर कुमार ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे मजदूरों की मांग है कि बालू, पत्थर और अभ्रक खदान बंद होने की वजह से बड़ी संख्या में जो मजदूर बेरोजगार हुए हैं उनको रोजगार की गारंटी दी जाए. और अगर आप रोजगार नहीं देते हैं और जबतक लोगों को काम नहीं मिलता है तबतक मजदूरों को प्रतिमाह 7 हज़ार 500 भत्ता दें.

मंडल ने कहा कि अगर उनकी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हुई तो उनका आंदोलन तेज़ किया जाएगा.

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