कथित तौर पर फर्जी अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) प्रमाण पत्र के साथ सरकारी नौकरियां हासिल करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर विभिन्न आदिवासी संगठन 5 फरवरी से पुणे में जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान में भूख हड़ताल पर हैं.
जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से उन गैर-आदिवासियों की पहचान करने और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने को कहा था, जिन्होंने जाली प्रमाणपत्रों का उपयोग करके सरकारी नौकरियां और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश हासिल किया.
सरकार ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि 11,700 गैर-आदिवासियों ने फर्जी दस्तावेजों के साथ सरकारी नौकरियां हासिल कीं. आदिवासी संगठनों का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद पिछले पांच वर्षों में कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
महाराष्ट्र के ट्राइबल डॉक्टर फोरम के अध्यक्ष रामकृष्ण पेढेकर ने कहा कि ऐसे कई मामले पाए गए हैं जहां गैर-आदिवासी फर्जी प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल करके राजनीतिक सीटों सहित उच्च सरकारी पदों पर बैठे हैं.
उन्होंने कहा, “हमें टीआरटीआई के संयुक्त आयुक्त के साथ बैठक के लिए बुलाया गया, जहां हमने 21 मांगें रखीं. प्राथमिक मुद्दा गैर-आदिवासी लाभार्थियों का फर्जी एसटी प्रमाणपत्रों के साथ प्रवेश या सरकारी नौकरियां हासिल करना है.”
पेढेकर, जो नासिक में बिरसा मुंडा मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल के निदेशक भी हैं. उन्होंने कहा, “हम सरकारी संस्थानों में खाली सीटों को पूरा करने की भी मांग करते हैं.”
टीआरटीआई के ज्वाइंट कमिशनर चंचल पाटिल ने कहा कि आदिवासियों द्वारा उजागर की गई ज्यादातर मांगें उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आती हैं. लेकिन जिन्हें टीआरटीआई-स्तर पर हल किया जा सकता है उन्हें संबोधित किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “करीब 15 मुद्दे हैं, जैसे कि लाभार्थियों का व्यक्तिगत विवरण मांगना, जिसे नहीं दिया जा सकता और नीति-निर्माण स्तर पर उच्च अधिकारियों द्वारा इसका समाधान किया जा सकता है. बाकी की मांगों को संबोधित किया जाएगा या उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा.”
आदिवासी कार्यकर्ता संजय दाभाड़े ने कहा कि फर्जी प्रमाणपत्रों के साथ पाए गए लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, गैर-आदिवासियों को स्वीकृत प्रवेश से परे अतिरिक्त सीटें आवंटित की गईं.
अतिरिक्त सीटें वे हैं जो समय-समय पर उपयुक्त प्राधिकारी और सरकार द्वारा अनुमोदित स्वीकृत सीटों से अधिक होती हैं.
ज्वाइंट कमिशनर पाटिल ने कहा कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फर्जी प्रमाणपत्रों की पहचान करने के लिए समितियों का गठन किया गया था. लेकिन कई मामलों में टीआरटीआई द्वारा अमान्य व्यक्तियों के नाम घोषित किए जाने के बाद वे अदालतों में अपील करते हैं.
पाटिल ने कहा, “हम अपनी ओर से इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश करेंगे लेकिन जो हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, उनका प्रस्ताव सरकार के सामने रखा जाएगा.”
विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले अन्य आदिवासी संगठन गोंडवाना मित्र मंडल, आदिवासी कृति समिति और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संगठन हैं.