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लोकसभा चुनाव 2024: कांग्रेस या बीजेपी आदिवासी वोट बैंक में किसका पलड़ा है भारी?

पिछले लोकसभा चुनाव हो या फिर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव दोनों में वहीं पार्टी बहुमत हासिल कर पाई है. जिसके पास आदिवासी सहयोग हो. आदिवासी वोटों का असर कांग्रेस और बीजेपी के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के नतीज़े पर भी देखने को मिला है.

लोकसभा चुनाव 2024 में पहले चरण के मतदान को महज़ दो हफ्ते ही रहे गए है. इस साल लोकसभा चुनाव की वोटिंग सात चरणों में होने वाली है.

2023 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी आदिवासी वोट बैंक के सहारे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में भारी मतों से विजय पाने सफल रही.

इन तीन राज्यों (मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान) की कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत आदिवासी आबादी है.

मध्यप्रदेश की कुल जनसंख्या का 21.1 प्रतिशत, राजस्थान की जनसंख्या का 13.49 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ का करीब 30.6 प्रतिशत आदिवासी है.

विधानसभा के अलावा लोकसभा चुनाव में भी देखे तो बीजेपी के खाते में 2009 से अब तक आदिवासी वोट की बढ़ोतरी ही हुई है. वहीं कांग्रेस फिर से आदिवासी इलाकों में अपने परंपरागत आधार को मजबूत करते हुए के ज़रिए कम बैक करने की कोशिश कर रही है.

इस पृष्ठभूमि से यह कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2024 में भी आदिवासी वोट बैंक महत्वपूर्ण है. लोकसभा में 47 सीटे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.

एक ज़माना था, जब कांग्रेस का आदिवासियों पर काफी प्रभाव था. लेकिन यह प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा. जिसका असर पिछले लोकसभा चुनाव के नतीज़ों में भी देखने को मिला.

लोकसभा चुनाव

2009 में कांग्रेस ने 47 अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों में से 20 सीटों पर विजय पाई. जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा.

इस चुनाव में कांग्रेस महज़ 5 सीटें ही हासिल कर पाई. फिर 2019 में यह आंकड़ा और भी कम हो गया. उस समय कांग्रेस ने 47 सीटों में से बस 4 सीटें ही जीती.

वहीं बीजेपी धीरे-धीरे आदिवासी बस्तियों या ज़िलों में अपना स्थान बनाती रही. 2009 में बीजेपी के खाते में 13 सीटें आई.

फिर 2014 में बीजेपी ने 47 सीटों में से 27 सीटों में अपना नाम दर्ज किया. जो पिछले चुनाव के मुकाबले बड़ा अंक था.

जिसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 31 सीटों पर विजय पाई.

विधानसभा चुनाव

मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बाते करें तो बीजेपी ने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में 47 सीटों में से 26 सीटें हासिल की थी.

वहीं विधानसभा में छत्तीसगढ़ की 29 आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 17 और कांग्रेस ने 11 सीटे हासिल की.

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भी 25 आरक्षित सीटों में से 12 सीटें बीजेपी के खाते में आई. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इन तीन राज्यों में कांग्रेस ने आदिवासी वोट बैंक के दम पर बहुमत पाई थी.

लेकिन इस बीजेपी ने आदिवासी का विश्वास जीत इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल की.

यह स्पष्ट है कि 2019 के लोकसभा चुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को विजय आदिवसियों के सहयोग से ही मिल पाई थी.

केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने ऐसे कई प्रयास करें, जिससे आदिवासियों का दिल जीता जा सके.

जैसे आदिवासी महिला, द्रौपदी मुर्मू को देश का राष्ट्रपति बनाना, पीवीटीजी के लिए योजनाएं लाना( पीएम जनमन), आदिवासियों के लिए बजट में सीमा बढ़ाना इत्यादि.

वहीं कांग्रेस भी आदिवासियों को लुभाने की पूरी-पूरी कोशिश कर रही है. वे आदिवासी भूमि और जल, जंगल, ज़मीन पर विशेष ध्यान दे रही है. जैसे वन अधिकार अधिनियम को लागू करना, सरना धर्म कोड देने का वादा करना, पैसा एक्ट लागू करने का वादा करना.

बीजेपी ने क्या किया

  • पीएम पीवीटीजी (PM-PVTG) मिशन के लिए 24,000 करोड़ आवंटित करने की घोषणा.
  • आदिवासी महिला को देश का राष्ट्रपति बनाना. देश में पहली बार कोई आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनी है.
  • 2019 में आवासीय स्कूल स्थापित करना और आदिवासी बच्चों के लिए एकलव्य मॉडल स्कूल बनाना.

यह भी पढ़े:-https://mainbhibharat.co.in/elections/what-is-the-report-card-of-eklavya-model-residential-schools/

  • अनुसूचित जनजाति के लिए बजट में सीमा बढ़ाना. बीजेपी ने आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए 2013-14 में आवंटित रकम 4,295.94 करोड़ रुपये को बढ़ाकर 2023-24 में 12,461.88 करोड़ रुपये कर दिया है.

कांग्रेस गारंटी

  • वन अधिकार अधिनियम को नेशनल मिशन के तहत जरूरी जगह लागू करना, जिसके लिए कांग्रेस ने वादा किया है की वो अलग बजट रखेगी और अलग से एक्शन प्लान तैयार करेगी.
  • बीजेपी द्वारा बनाए गए वन संरक्षण और भूमि अधिग्रहण जैसे अधिनियम को हटाना.
  • देश के आदिवासी इलाकों में पैसा एक्ट लागू करना.
  • सरना धर्म कोड देने का वादा करना, जो झारखंड सहित देश के अलग अलग राज्यों के आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग है.

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