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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: आदिवासी इलाकों में होगी कांग्रेस की परीक्षा

1946 से ही छत्तीसगढ़ भाजपा और कांग्रेस के राजनीतिक दलों के लिए द्विध्रुवीय रण रहा है. तीसरा मोर्चा और अन्य राजनीतिक दल अपनी किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन अब तक कोई सेंध नहीं लगा सका.

सोमवार को चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर चुनावी शंखनाद कर दिया है. राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में मतदान होगा. प्रदेश में 7 और 17 नवंबर को मदतान होगा और मतगणना बाकी चार राज्यों के साथ 3 दिसंबर को होगी.

कांग्रेस ने 15 साल के बीजेपी शासन के बाद 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में 90 सदस्यीय सीटों में से 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी. तब से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देकर कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया है.

कांग्रेस के लिए आगामी छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव बेहद अहम होने वाले हैं क्योंकि इससे उसकी राजनीतिक छवि को बढ़ावा मिलेगा. राज्य में चुनावी सफलता कांग्रेस के लिए 2024 लोकसभा चुनावों के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है. इससे INDIA गठबंधन में उसे काफी मजबूती मिलेगी.

फिलहाल कांग्रेस के पास 71 विधायक हैं. भाजपा के पास 13, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जेसीसी) के पास 3 और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के पास दो विधायक हैं. वहीं दुर्ग जिले की वैशाली नगर सीट विधायक के दो महीने पहले हुए निधन के कारण खाली है.

क्या कहते हैं आंकड़े

साल 2018 में कांग्रेस ने राज्य में अभूतपूर्व वापसी की और कुल 90 में से 67 सीटें जीती थी. बाद में हुए उपचुनावों में कांग्रेस विधायकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई और भूपेश बघेल को सूबे का सीएम बनाया गया. वह राज्य के पहले ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) मुख्यमंत्री बने, जहां समुदाय की संख्या कुल आबादी की 40 फीसदी से अधिक है. 

बघेल ने मजबूत की कांग्रेस की स्थिति

पांच साल पहले कांग्रेस की जीत की मुख्य वजहों में सत्ता विरोधी लहर और नेतृत्व के प्रति भाजपी कार्यकर्ताओं के असंतोष को बताया जाता है. मौजूदा वक्त में आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर क्षेत्र में सभी सीटें सत्तारूढ़ कांग्रेस के पास हैं.

वहीं चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि बीते पांच वर्षों के दौरान सीएम बघेल ने रणनीतिक रूप से राज्य में उप-राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और एक कहानी भी बनाई कि भाजपा ने अपने 15 साल के शासन में छत्तीसगढ़ी लोगों को दरकिनार कर दिया था.

इसके अलावा बघेल ने राज्य के क्षेत्रीय त्योहारों, खेल, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया देकर छत्तीसगढ़यावाद को मजबूती दी है. इससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है.

उदाहरण के लिए बघेल ने दो साल पहले अधिकारियों को सभी जिलों में ‘छत्तीसगढ़ महतारी’ (छत्तीसगढ़ी भाषा में मां) की मूर्तियां स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि उनके चित्र सभी सरकारी कार्यक्रमों में प्रमुखता से प्रदर्शित किए जाएं.

एक आउटरीच कार्यक्रम के एक हिस्से रूप में बघेल ‘तीजा-पोरा’ और ‘गोवर्धन पूजा’ सहित क्षेत्रीय त्योहारों को मनाने के लिए समारोहों की मेजबानी करते हैं. उनकी सरकार आदिवासी समुदाय को सम्मानित करने के लिए आदिवासी नृत्य उत्सव और “आदिवासी परब सम्मान निधि” का भी आयोजन करती है.

दूसरी ओर बीजेपी ने लोगों का ध्यान भ्रष्टाचार की ओर दिलाने की कोशिश की. बीजेपी इसे मुद्दा बनाते हुए लगातार कांग्रेस सरकार पर हमला कर रही है. भाजपा ने प्रवर्तन निदेशालय के छापों का हवाला देकर कांग्रेस सरकार पर हमले किए हैं. भाजपा ने महादेव ऐप घोटाला, कोयला और शराब घोटाले का जिक्र कर भूपेश बघेल सरकार को घेरने की कोशिशें की हैं.

हालांकि चुनावी विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों, खासकर राज्य के आदिवासी इलाकों में 2018 के चुनावों की तुलना में चुनावी रूप से कमजोर नज़र आ रही है.

छिटक सकता है साहू समाज

इस मसले पर कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “2018 के चुनावों में हमें जो सीटें मिली थीं, उसकी तुलना में कांग्रेस को सभी चार क्षेत्रों (सरगुजा, बिलासपुर, बस्तर और दुर्ग) में सीटें खोने की संभावना है. पहला कारण यह है कि बड़ी संख्या में पहली बार के विधायकों ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है, जिसके परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में सत्ता विरोधी लहर है.”

कांग्रेस नेता ने कहा कि इन जातियों में साहू समाज शामिल है. साल 2018 में साहू समाज के करीब 12 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस को इस उम्मीद के साथ वोट दिया था कि उसके नेता ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे. क्योंकि अब यह साफ हो गया है कि अगर कांग्रेस जीतती है तो बघेल मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे ऐसे में साहू भाजपा की ओर चले गए हैं.

भाजपा के सामने भी बड़ी चुनौती

भाजपा के खेमे में भी एक कमी साफ नजर आ रही है. भाजपा पिछले पांच साल में कांग्रेस पर आक्रामक हमला बोलने में नाकाम रही है. हाल के महीनों में ही भ्रष्टाचार को एक मुद्दे के रूप में पेश करने में कामयाब रही लेकिन विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान कितना प्रभावी होगा इस पर सवाल अभी भी बरकरार हैं.

स्थानीय स्तर पर भाजपा की जिला इकाइयां केंद्र के खिलाफ कांग्रेस के हमलों का मुकाबला करने में विफल रही हैं. इसका असर कई सीटों के चुनाव नतीजों पर भी पड़ सकता है.

हालांकि इस बार चुनावों में बीजेपी ने अपनी स्थानीय इकाइयों पर ही भरोसा जताया है. बीजेपी के एक पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी ने आरएसएस और उसके सदस्यों से जमीन पर पार्टी के लिए काम करने की उम्मीद जताई है.

साल 2018 के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस ने 68 सीटें और 42.8 फीसदी वोट हासिल किए थे जो भाजपा से 10 फीसदी से अधिक था. चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक, बीजेपी को इस बड़े अंतर को पाटने और 46 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

छत्तीसगढ़ में चुनावी मुद्दे

छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनाव में धान की खेती करने वालों के लिए उचित मूल्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा सहित आदिवासियों से संबंधित प्रमुख मुद्दे हैं.

अनुभवी राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त सुशील त्रिवेदी के मुताबिक, सत्तारूढ़ कांग्रेस मुख्य रूप से अपनी सरकार की उपलब्धियों और किसानों के साथ पूरे किए गए वादों, धान की खेती करने वालों के लिए एमएसपी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, मजदूरों, गरीबों, महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं और बेहतर शिक्षा की दिशा में उठाए गए कदमों पर ध्यान केंद्रित करेगी.

त्रिवेदी को लगता है कि बीजेपी उन वादों पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगी जो कांग्रेस द्वारा पूरे नहीं किए गए हैं जैसे शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना और पीएससी भर्ती पर भ्रष्टाचार के आरोप..

1946 से ही छत्तीसगढ़ भाजपा और कांग्रेस के राजनीतिक दलों के लिए द्विध्रुवीय रण रहा है. तीसरा मोर्चा और अन्य राजनीतिक दल अपनी किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन अब तक कोई सेंध नहीं लगा सका.

छत्तीसगढ़ में लगभग 38 लाख किसान हैं, कृषि और धान से संबंधित मुद्दा राज्य में राजनीतिक दलों के भाग्य का पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. खासकर तब जब कांग्रेस ने अपने वादे के मुताबिक 2018 में सत्ता में आते ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दिया.

राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत किसान समर्थक योजनाएं, जिसके तहत सरकार खरीफ धान को प्रोत्साहित करने के लिए 23 लाख किसानों को 21 हज़ार 912 करोड़ रुपये की इनपुट सब्सिडी देती है. इस पहल ने कांग्रेस की स्थिति मजबूत की है.

सत्तारूढ़ कांग्रेस धान की खेती करने वालों को लुभाने के लिए एक और चुनावी वादे के रूप में अपने घोषणापत्र में प्रति क्विंटल धान की कीमतों में बढ़ोतरी की घोषणा कर सकती है.

वहीं बस्तर में माओवादी हिंसा में नष्ट हुए सैकड़ों स्कूलों को फिर से खोलने के साथ कांग्रेस निकट भविष्य में इस तरह की और पहल की गारंटी देगी क्योंकि वह बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा देने वाले नए स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी और हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों पर प्रकाश डाल रही है.

भाजपा राज्य की पीएससी परीक्षा और 2021-22 की चयन प्रक्रिया में भर्ती में कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर कांग्रेस को घेरने की उम्मीद कर रही है और सरकार पर राजनेताओं, नौकरशाहों, व्यापारियों और आयोग में तैनात शीर्ष अधिकारियों के बच्चों के रिश्तेदारों और करीबी सहयोगियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा रही है.

कोयला खनन, जिला खनिज फाउंडेशन, गोधन न्याय योजना, शराब व्यापार, अवैध ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप में कथित घोटालों को लेकर कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिनमें से कुछ की जांच प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही है. इन मामलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने अपनी हालिया सार्वजनिक रैलियों के दौरान द्वारा उठाए हैं.

हालाँकि, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कई मौकों पर इस बात पर पलटवार किया है कि केंद्र कांग्रेस सरकार को बदनाम करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रहा है.

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