मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने कहा है कि मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में जोड़ने में अभी समय लगेगा. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने इस मांग को पूरा करने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया है, क्योंकि एक विशेषज्ञ समिति द्वारा इस मामले पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है.
बिरेन सिंह ने यह बयान मणिपुर विधानसभा में दिया. उन्होंने कहा कि मैती समुदाय को एसटी की श्रेणी में रखने से पहले गहन जांच की ज़रूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले पर एकमत की कमी है.
बिरेन सिंह के इस बयान पर मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (Scheduled Tribe Demand Committee of Manipur – STDCM) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. समिति ने मुख्यमंत्री के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
STDCM की मैती के लिए एसटी स्टेटस की मांग 2012 से चली आ रही है. 4 मार्च, 2019 को विधायक के मेघचंद्र ने इस मांग को लेकर सरकार से विधानसभा में सवाल किया था.
इसके जवाब में मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने कहा था कि वह व्यक्तिगत रूप से इस मांग से सहमत हैं, और इसे पूरा करने की कोशिश करेंगे. लेकिन दो साल बाद भी राज्य सरकार ने इस मामले को निपटाने के लिए कोई पहल नहीं की है.
2015 में राज्य की कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में तीन बिल पास किए जिससे इनर लाइन परमिट जैसा एक सिस्टम तैयार होता. इनर लाइन परमिट राज्य के बाहर से आने वाले लोगों को मणिपुर में प्रवेश की अनुमति देता है. इसके पीछे सोच यह है कि राज्य के आदिवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित है.
राज्य के आदिवासियों ने इन बिलों का कड़ा विरोध किया था. उनका कहना था कि इनर लाइन परमिट से मैती समुदाय को फ़ायदा मिलेगा, क्योंकि पहाड़ों में रहने वाले आदिवासियों की संवैधानिक सुरक्षा छिन जाएगी.
मणिपुर की इम्फ़ाल घाटी में राज्य का 10% भूक्षेत्र हैं, लेकिन लगभग 60% आबादी है. इनमें ज़्यादातर मैती समुदाय से हैं. आसपास की पहाड़ियों में नागा और कूकी आदिवासी रहते हैं.
एक तरफ़ जहां घाटी में कोई भी ज़मीन खरीद सकता है, मैती समुदाय के लोग पहाड़ों में ज़मीन नहीं खरीद सकते.
राज्य के आदिवासी समूहों का कहना है कि अगर मैती समुदाय को आदिवासी का दर्जा दिया गया तो वह ख़ुद के लिए अलग राज्य की मांग रखेंगे.
मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैती समुदाय से बनी है, जबकि नागा आदिवासी आबादी 24 प्रतिशत है, और कुकी-ज़ो आबादी 16 प्रतिशत है.