ओडिशा में बाल विवाह, ख़ासतौर पर समाज के पिछड़े और आदिवासी समुदायों के बीच, को रोकने पर काफ़ी ज़ोर दिया जा रहा है. कुछ दिन पहले आपने इसी वेबसाइट पर इस पहल से जुड़ी ख़बरें पढ़ी होंगी.
लेकिन सच यह है कि राज्य सरकार के हस्तक्षेप की वजह से जहां पिछले कुछ सालों में बाल विवाह के मामलों में गिरावट आई है, लेकिन प्रशासन की ख़राब पहुंच, कमज़ोर समुदायों में जागरुकता की कमी, और सामाजिक रीति-रिवाजों की वजह से कई जिलों के दूरदराज़ के इलाकों में बाल विवाह अभी भी होते हैं.
राज्य के सुंदरगढ़ ज़िले की बात करें तो पिछले 38 सालों में बाल विवाह की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, लेकिन ज़िले के अंदरूनी इलाक़ों में यह प्रथा बेधड़क जारी है. आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में राउरकेला शहर में 15, और पिछले पांच सालों में 43 बाल विवाह रोके गए हैं.
माना जा रहा है कि बाल विवाह की संख्या इन आंकड़ों से काफ़ी ज़्यादा है.
बाल विवाह को रोकने के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का दावा है कि पिछले एक साल में पाए गए सभी 15 मामले चाइल्ड लाइन को अलग-अलग स्रोतों से मिली जानकारी की वजह से सामने आए थे. जबकि बाल विकास परियोजना अधिकारियों (सीडीपीओ) को इसकी ज़्यादा परवाह नहीं है.
इसके अलावा वो कहते हैं कि स्कूल न जाने वाली लड़कियों का सशक्तिकरण एक सपना ही बना हुआ है क्योंकि मौजूदा योजनाएं ठीक से लागू नहीं की जाती हैं.
चाइल्ड लाइन जिला परियोजना समन्वयक अंबर आलम ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ज्यादातर मामलों का पता बोनाई, लहुनीपाड़ा, नुआगांव, कुआंरमुंडा, बालिशंकारा, हेमगीर, लेफ्रिपाड़ा और ज़िले के कुछ दूसरे ब्लॉक्स में सामने आए हैं. इनमें भी यह प्रथा आदिवासियों, हिंदू और मुसलमानों के बीच ज़्यादा पई गई है.
सुंदरगढ़ जिले के समाज कल्याण अधिकारी (DSWO) प्रवासिनी चक्रा ने कहा कि सभी 21 सीडीपीओ को बाल विवाह रोकने और पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का निर्देश दिया गया है.
आदिवासी बहुल नबरंगपुर जिले में भी हाल काफ़ी बुरा है. पिछले साल, प्रशासन ने 2024 तक पूरे ज़िले में बाल विवाह को ख़त्म करने के लिए एक अभियान ‘अन्वेषा’ शुरू किया था. इसके तहत जिला समाज कल्याण विभाग, बाल संरक्षण यूनिट और यूनिसेफ को मिलाकर एक ग्रुप बनाया गया.
जागरुकता फैलाने के लिए अलग-अलग जातियों और समुदायों के प्रमुखों, सरपंचों, वॉर्ड सदस्यों और सेल्फ़-हेल्प ग्रुप को भी शामिल किया गया. इसका कुछ फ़ायदा ज़रूर नज़र आया है.
नबरंगपुर के 885 गांवों में से 414 को अब तक बाल विवाह मुक्त घोषित कर दिया गया है. लेकिन बाकि बचे 471 गांवों में हालात अच्छे नहीं हैं. इनमें भी 399 में बड़े पैमाने पर बाल विवाह अभी भी जारी है.
इन गांवों में इस कुरीति से लड़ना एक चुनौती है क्योंकि यहां के आदिवासियों में कम उम्र युवाओं की शादी को ग़लत नहीं माना जाता.
आधिकारियों का कहा है कि ज़िले में POCSO (बच्चों का यौन अपराधों से बचाने वाला क़ानून) के तहत 37 मामले दर्ज किए गए हैं. ज़िले के अतिरिक्त पब्लिक प्रोसिक्यूटर संतोष मिश्रा ने कहा कि जागरुकता फैलाना ही समय की ज़रूरत है.