HomeAdivasi Dailyगुजरात: AAP विधायक ने अलग भील प्रदेश की मांग उठाई

गुजरात: AAP विधायक ने अलग भील प्रदेश की मांग उठाई

चैतर वसावा ने कहा कि केवड़िया में जहां स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थित है, आदिवासी समुदायों की हजारों हेक्टेयर जमीन विभिन्न परियोजनाओं के लिए बाहरी लोगों को दे दी गई. इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र के आदिवासी, जो जमीन के असली मालिक थे अब 280 रुपये प्रति दिन पर मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं.

गुजरात (Gujarat) राज्य की स्थापना के बाद से समय-समय पर आदिवासियों के अलग राज्य की मांग उठती रही है. अब आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के डेडियापाडा से विधायक चैतर वसावा ने भीलों के लिए अलग राज्य की मांग बुलंद की है.

गुजरात में आप के विधायक और आदिवासी नेता चैतर वसावा ने मंगलवार को गुजरात और तीन पड़ोसी राज्यों में आदिवासी आबादी के लिए एक अलग राज्य ‘भील प्रदेश’ (Bhil Pradesh) की मांग फिर से उठाई है.

गुजरात के नर्मदा जिले में अनुसूचित जनजाति आरक्षित डेडियापाड़ा सीट से पहली बार विधायक बने चैतर वसावा ने कहा, “इतिहास हमें बताता है कि भील प्रदेश नामक एक अलग राज्य था. लेकिन स्वतंत्रता के बाद उस राज्य को विभाजित किया गया और इसके हिस्सों को गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मिला दिया गया.”

इससे पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक और पूर्व विधायक छोटूभाई वसावा ने भी यह मांग उठाई थी.

लेकिन अब आप विधायक ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान दावा किया कि इन चार राज्यों (गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) में 39 आदिवासी बहुल जिले हैं, जो पुराने भील प्रदेश का गठन करते हैं. चैतर वसावा ने कहा कि संविधान की पांचवीं अनुसूची (जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण के संबंध में प्रावधान हैं) अभी भी इन जिलों पर लागू है.

उन्होंने आगे कहा कि छोटूभाई वसावा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कई साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को इस मांग से जुड़ा एक ज्ञापन सौंपा था.

आप नेता ने कहा, ‘अगर सरकार आदिवासियों के साथ अन्याय करना जारी रखती है तो हम निश्चित रूप से एक अलग भील प्रदेश की मांग उठाएंगे.’

उन्होंने कहा कि केवड़िया में जहां स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थित है, आदिवासी समुदायों की हजारों हेक्टेयर जमीन विभिन्न परियोजनाओं के लिए बाहरी लोगों को दे दी गई. इसके परिणामस्वरूप क्षेत्र के आदिवासी, जो जमीन के असली मालिक थे अब 280 रुपये प्रति दिन पर मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं.

चैतर वसावा ने कहा कि हमारे जल, जंगल और जमीन से हमारा ही अधिकार छीना जा रहा है इसलिए हम फिर से अलग भील प्रदेश की मांग उठा रहे हैं. आप नेता ने दावा किया कि आदिवासी क्षेत्र पानी, लकड़ी और कोयले के भंडार के साथ-साथ अन्य खनिजों से समृद्ध हैं, लेकिन वे अविकसित हैं और गुजरात में भाजपा सरकार ने आदिवासी समुदायों के लिए बजट को डायवर्ट कर दिया.

वहीं इस मांग पर भरूच से बीजेपी सांसद और साथी आदिवासी नेता मनसुख वसावा ने कहा कि इससे अराजकता पैदा होगी और आदिवासी समुदायों और अन्य लोगों के बीच विवाद पैदा होगा. यह विवाद आखिरकार आदिवासी क्षेत्रों में विकासात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित करेगा.

उन्होंने कहा कि दाहोद के पूर्व सांसद सोमजीभाई डामोर ने मूल रूप से आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य के लिए एक आंदोलन शुरू किया था लेकिन उनका किसी ने समर्थन नहीं किया.

बीजेपी नेता ने कहा कि अन्य आदिवासी नेताओं ने भी बाद में इस आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश की लेकिन उन्हें भी ठंडी प्रतिक्रिया मिली क्योंकि अधिकांश आबादी इसका समर्थन नहीं करती है.

भाजपा नेता ने आम आदमी पार्टी विधायक को सलाह देते हुए कहा कि एक अलग राज्य की मांग करने के बजाय, इन नेताओं को सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहिए कि क्या कमी है और कैसे आदिवासियों के लिए बनाई गई योजनाओं को ठीक से लागू किया जा सकता है.

भील प्रदेश की माँग मामूली नहीं है

फिलहाल यह मुद्दा बहुत बड़ा नज़र नहीं आ रहा है. लेकिन भील प्रदेश की मांग सिर्फ गुजरात तक ही सीमित नहीं है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो वक्त आने पर आदिवासी राजनीति का केंद्र बन सकता है.

यह माँग गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के भील बहुल इलाकों से जुड़ती है. भारतीय ट्राइबल पार्टी का जन्म इसी मांग के साथ हुआ था.

यह बात सही है कि अभी इस मांग को कोई भी राजनीतिक दल बहुत दमदार तरीके से नहीं उठा रहा है. लेकिन राजस्थान में आदिवासी परिवार नाम का संगठन लगातार अलग भील प्रदेश के लिए प्रचार में जुटा है.

यह मुद्दा भील आदिवासियों की तरफ से अपनी पहचान और अधिकार को मजबूत तरीके से रखने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है.

इसलिए यह मुद्दा किसी भी वक्त इन राज्यों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है.

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