HomeAdivasi Dailyक्या एलिमेंटरी लिटरेसी आदिवासी आजीविका को प्रभावित करती है?

क्या एलिमेंटरी लिटरेसी आदिवासी आजीविका को प्रभावित करती है?

आदिवासी आजीविका 2021 द्वारा सरल पढ़ने और लिखने की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए आदिवासी परिवारों के साथ एक टेस्ट आयोजित किया गया. जिसके नतीजे बताते हैं कि झारखंड के आदिवासी परिवारों के करीब 45 फीसदी पुरुष और 63 फीसदी महिलाएं बिल्कुल भी पढ़ या लिख नहीं सकती हैं.

साक्षरता आजीविका को कैसे प्रभावित करती है, इस पर अलग-अलग विचार हैं. एक ओर यह राय है कि निर्धारित पाठ्य पुस्तकों का उपयोग कर औपचारिक स्कूल-आधारित साक्षरता आजीविका के वास्तविक अभ्यास के लिए अप्रासंगिक है. यानि कि हम जो किताबें स्कूल में पढ़ते हैं उसका हमारी आजीविका से ज्यादा कुछ लेना-देना नहीं होता है.

कुछ के पास लिटरेसी स्किल की कमान हो सकती है लेकिन उन्हें अपनी आजीविका के लिए उसका इस्तेमाल करने की आवश्यकता महसूस नहीं हो सकती है. यहां तक कि कभी-कभी वे लिटरेसी प्रैक्टिस को अपनी आजीविका में बाधा के रूप में देख सकते हैं.

दूसरी ओर विद्वानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक वर्ग साक्षरता को गरीबी उन्मूलन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण मानता है. यूनेस्को की ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट के मुताबिक, अगर कम आय वाले देशों में सभी छात्रों ने एलीमेंट्री रीडिंग स्किल के साथ भी स्कूल छोड़ दिया तो 171 मिलियन लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है.

दरअसल, झारखंड और ओडिशा को कवर करते हुए प्रदान (PRADAN) द्वारा प्रकाशित आदिवासी आजीविका की स्थिति 2021 (Status of Adivasi Livelihoods 2021) की रिपोर्ट में साक्षरता को आजीविका को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों में से एक माना गया है.

साक्षरता पर एसएएल 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि झारखंड में 53 प्रतिशत आदिवासी परिवारों और ओडिशा में 58.6 प्रतिशत, घर के मुखिया के पास स्कूली शिक्षा नहीं थी. आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि झारखंड के आदिवासी परिवारों की 43.7 प्रतिशत महिला सदस्यों और ओडिशा की 50.3 प्रतिशत के पास स्कूली शिक्षा नहीं है.

आदिवासी आजीविका की स्थिति 2021 द्वारा सरल पढ़ने और लिखने की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए आदिवासी परिवारों के साथ एक टेस्ट आयोजित किया गया. जिसके नतीजे बताते हैं कि झारखंड के आदिवासी परिवारों के करीब 45 फीसदी पुरुष और 63 फीसदी महिलाएं बिल्कुल भी पढ़ या लिख नहीं सकती हैं. वहीं ओडिशा में आदिवासी परिवारों के 55 प्रतिशत पुरुष और 75 प्रतिशत महिलाएं बिल्कुल भी पढ़ या लिख नहीं सकते थे.

एसएएल 2021 रिपोर्ट झारखंड और ओडिशा के 53 एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना ब्लॉकों के 4 हजार 135 आदिवासी परिवारों के नमूने पर आधारित है.

जनगणना 2011 की रिपोर्ट ने देश के लिए कुल साक्षरता दर 72.98 प्रतिशत दिखाई, जिसमें महिला साक्षरता दर 64.63 प्रतिशत और पुरुष साक्षरता दर 80.9 प्रतिशत थी.

एसएएल डेटा की तुलना राष्ट्रीय स्तर की साक्षरता दर से नहीं की जा सकती क्योंकि यह सात या उससे अधिक उम्र के सभी व्यक्तियों पर विचार करता है जबकि एसएएल रिपोर्ट में घरों के मुखिया और उनके पति की साक्षरता स्थिति दिखाई गई है.

लेकिन बावजूद इसके भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि झारखंड और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्र शिक्षा के मामले में राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं.

हालांकि, यह औपचारिक स्कूली शिक्षा और वार्षिक घरेलू आय के बीच संबंध में कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं दिखाता है. लेकिन एसएएल 2021 के आंकड़ों ने वार्षिक घरेलू आय और कार्यात्मक साक्षरता के बीच एक स्पष्ट सकारात्मक संबंध दिखाया है.

आय और कार्यात्मक साक्षरता के बीच संबंध को समझने के लिए परिवारों को पांच आय समूहों में बांटा गया. निम्नतम 20 प्रतिशत परिवारों वाले आय समूह ने कार्यात्मक साक्षरता परीक्षण में सबसे कम औसत स्कोर प्राप्त किया, जबकि टॉप 20 प्रतिशत ने आय समूहों के बीच उच्चतम औसत स्कोर प्राप्त किया.

हालांकि पुरुषों का औसत स्कोर संबंधित आय समूहों में महिलाओं के औसत स्कोर से अधिक है. पुरुषों और महिलाओं के स्कोर औसत घरेलू आय के साथ संबंध के मामले में समान पैटर्न दिखाते हैं.

एसएएल 2021 के आंकड़ों से यह काफी स्पष्ट है कि कार्यात्मक साक्षरता ने आदिवासी क्षेत्र में आजीविका को प्रभावित किया है. जैसा कि बेसिक पढ़ने, लिखने और संख्यात्मक कौशल आजीविका में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं. आजीविका में सुधार के लिए किसी भी विकास पहल को बुनियादी साक्षरता प्रशिक्षण के साथ जोड़ा जा सकता है.

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