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आंध्र प्रदेश: आदिवासियों ने मांगी शिक्षक के पदों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण

सीटू महासचिव उमामहेश्वर राव ने कहा, “अगर आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों में अनुबंध के आधार पर गैर-आदिवासियों को शिक्षक पदों पर नियुक्त किया गया तो आदिवासी लोगों का भविष्य दांव पर लग जाएगा.

मगंलवार को आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के विजयवाड़ा (Vijayvada) में 200 से ज्यादा आदिवासियों ने प्रदर्शन किया . राज्य में आदिवासियों द्वारा लंबे समय से ये मांग की जा रही है कि आदिवासी इलाकों में उन्हें शिक्षक के पद के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए.

लेकिन 2020 में इस मांग के संदर्भ में दाखिल की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था. इस मामले में सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU) के महासचिव उमामहेश्वर राव ने कहा कि अगर आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों में अनुबंध के आधार पर गैर-आदिवासियों को शिक्षक पदों पर नियुक्त किया गया तो आदिवासी लोगों का भविष्य दांव पर लग जाएगा.

विशाखापत्तनम, अल्लूरी सीतारमा राजू और पार्वतीपुरम-मण्यम जिलों से आए 200 से अधिक आदिवासी लोगों की एक सभा को संबोधित करते हुए उमामहेश्वर राव ने कहा कि सरकारी आदेश नंबर 3 (Government Order 3) गारंटी देता है कि राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षकों के 100% पद आदिवासियों के लिए आरक्षित होने चाहिए.

लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. इससे कई आदिवासी शिक्षकों के जीवन पर असर पड़ा है. अब उन्होंने मांग की कि 100 फीसदी आरक्षण व्यवस्था बहाल की जाए.

वहीं आदिवासी मातृभाषा उपाध्याय संघम के प्रदेश सचिव एस डोमडु ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा, “ देश में सक्षारता दर 73 प्रतिशत है. लेकिन आदिवासी समुदायों का सक्षारता दर 59 प्रतिशत ही है. बहुत से आदिवासी बच्चे उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंच पाते हैं. हममें से कुछ लोग पढ़ाई पूरी करने में कामयाब रहे और पढ़ाने की स्थिति में हैं, लेकिन हमें पढ़ाने का काम नहीं दिया जाता है.”

आदिवासी गिरीजन संघम के सदस्यों ने आदिवासी लोगों से “झूठे वादे” करने के लिए जगन मोहन रेड्डी सरकार की आलोचना की.

उन्होंने कहा कि हमें बताया गया कि अल्लूरी सीतामा राजू और पार्वतीपुरम-मण्यम जिले आदिवासी लोगों के लाभ के लिए कल्याणकारी योजनाए बनाई गई थी. लेकिन किसको फायदा हो रहा है?

गिरिजन संघम ने दावा किया है कि इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सोसाइटी ने अल्लूरी सीतारमा राजू जिले में 22 रिक्त पदों के लिए अधिसूचना जारी की तो उनमें से एक भी पद आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं है.

उन्होंने यह भी मांग की कि आदिवासी शिक्षकों का वेतन 5,000 से बढ़ाकर 26,000 किया जाए.

सदस्यों ने कहा कि लगभग 1,400 आदिवासी शिक्षक, जिन्हें अनुसूचित क्षेत्रों में बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के लिए नियुक्त किया गया था, उन्हें मात्र 5,000 मिल रहे हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार आंध्र प्रदेश में 50 लाख आदिवासी रहते हैं. जो राज्य की कुल जनसंख्या का 5.6 प्रतिशत है.

इस मामले में गिरिजन संघम के नेताओं ने MBB को बताया कि आदिवासी इलाकों में मातृ भाषा में पढ़ाया जाना ज़रूरी है. इसलिए अगर आदिवासी शिक्षक होंगे तो कम से कम प्राइमरी स्तर पर स्कूल ड्रॉपआउट कम हो सकता है.

इस पूरे मामले में यह बात सही है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए उसे अपने ही आदेश से पीछे हटना पड़ा था.

लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि आदिवासियों के मामले में राज्य सरकारें अदालत में अपना पक्ष ठीक से नहीं रखते हैं. इसलिए इस मामले में आदिवासी संगठनों का दबाव जायज़ है.

यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दबाव में सरकार सुप्रीम कोर्ट में फिर से इस मामले को दाखिल करेगी और पुरज़ोर तरीके से आदिवासी हित में लड़ेगी.

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