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मध्य प्रदेश चुनाव: बागियों ने कांग्रेस और बीजेपी की नींद हराम कर दी है

निमाड़ क्षेत्र में झाबुआ को राजनीति और ख़ासतौर से आदिवासी राजनीति का केंद्र माना जाता है. यहां कांतिलाल भूरिया बड़े आदिवासी नेता हैं. लेकिन यहां की राजनीति में दखल रखने वाले नेता पार्टी के खिलाफ़ झंडा बुलंद करने में झिझकते नहीं हैं.

मध्य प्रदेश का झाबुआ विधानसभा क्षेत्र आदिवासी बहुल है. इसके अलावा यह कांग्रेस पार्टी और राज्य के कद्दावर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया का गृहक्षेत्र भी है. कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर उनके बेटे विक्रांत भूरिया को टिकट दिया है. उनके सामने बीजेपी भानू भूरिया चुनाव लड़ रहे हैं.

यानि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों से उम्मीदवार भील जनजाति से आते हैं. लेकिन विक्रांत भूरिया के परिवार का झाबुआ में काफ़ी लंबे समय से दबदबा और सम्मान रहा है. हांलाकि साल 2018 के चुनाव में वे चुनाव हार गए थे.लेकिन एक ही साल बाद हुए उप चुनाव में उनके पिता ने यह सीट जीत ली थी.

ऐसा माना जाता है कि पिछला विधान सभा चुनाव विक्रांत भूरिया इसलिए हारे थे क्योंकि उनकी पार्टी नेता जेवियर मेडा बागी हो गए थे.इस बार झाबुआ में बीजेपी के उम्मीदवार भानू भूरिया को अपनी पार्टी के बागी सोम सोलंकी की वजह से मुश्किल परिस्थियों का समाना करना पड़ रहा है.

मध्य प्रदेश का निमाड़ क्षेत्र चुनाव की दृष्टि से बहेद महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि यहां पर राज्य की कुल 230 सीटों में से 66 सीटें हैं. इन 66 सीटों में से 22 अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. साल 2018 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने इन 22 सीटों में से 14 सीटों जीत ली थीं.

निमाड़ क्षेत्र में झाबुआ को राजनीति और ख़ासतौर से आदिवासी राजनीति का केंद्र माना जाता है. यहां कांतिलाल भूरिया बड़े आदिवासी नेता हैं. लेकिन यहां की राजनीति में दखल रखने वाले नेता पार्टी के खिलाफ़ झंडा बुलंद करने में झिझकते नहीं हैं.

सच्चाई तो यह है कि आज कांग्रेस पार्टी की प्रचार समिति के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया साल 2003 में खुद एक बागी के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं. झाबुआ के अलावा भी निमाड़ की कई अन्य विधान सभा सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को बगावत का समाना करना पड़ रहा है.

जहां तक सत्ताधारी दल बीजेपी का सवाल है तो बताया जा रहा है कि कम से कम 6 सीटों पर पार्टी को बागी उम्मीदवारों या कार्यकर्ताओं का सामना करना पड़ रहा है. वहीं कांग्रेस पार्टी में भी कई सीटों पर टिकट ना मिल पाने पर कई नेता और उनके समर्थक नराज़ बताए जा रहे हैं. दोनों ही पार्टियों की तरफ से चुनाव प्रचार के साथ साथ अपने बागियों को मनाने में काफी समय लगाया जा रहा है.

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