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Women’s Premier League: मुंबई इंडियंस के लिए खेलने को तैयार है ये आदिवासी महिला क्रिकेटर

एक आदिवासी महिला क्रिकेटर सजना सजीवन (Sajana Sajeevan) ने जिन्हें महिला क्रिकेट के बारे में पता नहीं था. अब वह मुंबई इंडियंस के लिए महिला प्रीमियर लीग में खेलेंगी.

एक लड़की जो महिला क्रिकेट के बारे में नहीं जानती थी और जिसने प्लास्टिक की बॉल और बैट से खेलना शुरू किया, उसने अब महिला प्रीमियर लीग (Women’s Premier League – WPL) में जगह बना ली है.

मिन्नू मणि के नक्शेकदम पर चलते हुए केरल के वायनाड के आदिवासी समुदाय – कुरिचिया जनजाति (Kurichiya tribe) की दूसरी खिलाड़ी सजना सजीवन (Sajana Sajeevan) महिला प्रीमियर लीग में मुंबई इंडियंस के लिए खेलने की तैयारी कर रही हैं.

सजना ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “मुझे पिछले साल उम्मीद थी. लेकिन किसी भी टीम ने मुझे नहीं चुना. अब मैं बेहद खुश हूं और मैं डब्ल्यूपीएल को अपनी प्रतिभा को सुधारने और प्रदर्शित करने का एक शानदार अवसर मानती हूं.”

वह मनन्थावडी (Mananthavady) के एक ऑटो रिक्शा चालक सजीवन और नगर पालिका पार्षद सारदा सजीवन की सबसे बड़ी बेटी हैं.

एक इंटरव्यू में उनसे क्रिकेट से जुड़ी याद पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह सचमुच नहीं जानती कि उन्होंने कब क्रिकेट खेलना शुरू किया था. उन्हें बचपन से ही क्रिकेट खेलना पसंद है और उन्हें याद है कि उनके पिता ने सजना को एक प्लास्टिक क्रिकेट बैट गिफ्ट में दिया था.

सजना सजीवन का कहना है कि वह क्रिकेट खेलती थी लेकिन उन्हें यह नहीं पता था की महिला क्रिकेट टीम भी होती है.

सजना ने बताया कि वह बचपन से ही क्रिकेट देखती थी लेकिन उन्हें लगता था कि यह सिर्फ पुरुषों का खेल है. वह सचिन और गांगुली को देखकर बड़ी हुई इसलिए उन्हें लगा कि क्रिकेट केवल पुरुषों के लिए है.

इसके साथ ही सजना ने बताया कि भारत के लिए खेलना उनका अंतिम लक्ष्य है. उन्हें लगता है कि डब्ल्यूपीएल में उनके प्रदर्शन के द्वारा वो वहां तक पहुंच सकती हैं.

सजना ने कहा कि अनुभव प्राप्त करने के लिए किसी भी टीम में प्रवेश करना चाहती थी. लेकिन चैंपियन टीम मुंबई इंडियंस ने उन्हें चुना. वह बहुत खुश है और उन्हें यह उम्मीद है कि वो अच्छा प्रदर्शन करेंगी.

सजना ने कहा कि एक लड़की के लिए, खासकर गांव की लड़की के लिए अपने सपनों पर काम करना आसान नहीं है.

लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने पर सजना को पीटा गया है. हालांकि उनके माता-पिता को कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन उनके कुछ रिश्तेदारों को थी. उनका कहना है कि हम शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि वे लोग बूढ़े हैं और दुनिया के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं.

वैसे सजना पूरे मोहल्ले में अकेली लड़की थी इसलिए बचपन से ही उन्होंने उन लड़कों के साथ खेलना शुरू कर दिया जो ज्यादातर क्रिकेट में रुचि रखते थे.

18 साल की उम्र तक उन्हें यह भी नहीं पता था कि महिला क्रिकेट का अस्तित्व है और उन्हें लगता था कि यह कुछ ऐसा है जिसे केवल लड़के ही खेलते हैं.

कब शुरु किया सजना ने क्रिकेट?

स्कूल में पढ़ाई के दौरान सजना का प्लास्टिक का बल्ला नारियल के डंठल में बदल गया. फिर हायर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लेने के बाद उन्होंने एथलेटिक्स में प्रदर्शन किया. वह एथलेटिक्स में भाला फेंक, गोला फेंक और मध्य दूरी की दौड़ जैसी ट्रैक और फील्ड स्पर्धाओं में अच्छी थी.

उस समय एक खेल का सामान हुआ करता था जिसे क्रिकेट बॉल थ्रोइंग कहा जाता था. वह इसमें भी अच्छी थी और उसके फिजिकल एजुकेशन टीचर ने इस पर ध्यान दिया. उन्होंने सजना को क्रिकेट खेलने का सुझाव दिया और वहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई.

सजना ने एक इंटरव्यू में बताया है कि जब वह गवर्नमेंट वोकेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल मनन्थावडी में अपनी हायर सेकेंडरी की पढ़ाई कर रही थी तो वहां क्रिकेट बॉल थ्रोइंग नामक एक खेल की प्रतियोगिता होती थी.

वह इसमें अच्छी थीं और उनकी फिजिकल एजुकेशन टीचर एल्सम्मा ने उन्हें क्रिकेट खेलने के लिए कहा. तभी उन्हें पता चला कि महिला क्रिकेटर भी होती हैं. इसे जिलेवार और राज्यवार खेल सकते हैं और हम भारत के लिए भी खेल सकते हैं.

सजना ने 2012 में जिला टीम के लिए खेलना शुरू किया. उनके जुनून के अलावा जिस चीज ने उन्हें शुरुआती दिनों में इस खेल के लिए प्रतिबद्ध रखा, वह था आर्थिक बोझ…क्योंकि उन पर इस खेल की वजह से आर्थिक दिक्कत नहीं हुई.

उन्होंने बताया है कि जब मैं जिला मैच खेलती थी तो मुझे एक छोटा सा अलाउंस मिलता था. यह 150 रुपये प्रतिदिन था. भले ही मैच 6 से 7 दिनों में होगा लेकिन हमारे लिए वह रकम बड़ी थी.

उसी वर्ष वह राज्य चयन के लिए गई लेकिन सफल नहीं हो सकी. लेकिन वह टी20 में पहला आरक्षित स्थान हासिल करने में सफल रहीं.

सजना ने क्रिकेट के बारे में और अधिक सीखा, अधिक अभ्यास किया और अगले वर्ष उनका चयन हो गया. उसी वर्ष उन्हें टी20 सीनियर के लिए रिजर्व कर लिया.

सजना ने टी20 सीनियर्स डेब्यू मैच हैदराबाद के बारे में बताया कि आखिरी गेंद पर केरल को चार रन चाहिए थे. उन्हें चौका मिला तब से वह केरल टीम में एक स्थायी खिलाड़ी बन गई. वह अभी भी अपने पहले मैच को लेकर उत्साहित है.

इसके बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारना जारी रखा और कई मैचों में केरल के लिए खेली और कप्तान बनी.

वह एक ऑलराउंडर हैं और दाएं हाथ से बल्लेबाजी करने और ऑफ स्पिन करने में भी उतनी ही माहिर हैं.

उनकी कप्तानी में केरल ने 2017-18 अंडर 23 चैंपियनशिप जीती. फिर साल 2015 और 2017 में उन्होंने केसीए से साल की सर्वश्रेष्ठ महिला क्रिकेटर का पुरस्कार जीता.

इसके अलावा 12वीं कक्षा के बाद सजना ने केरल के त्रिशूर के वर्मा कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. फिर उन्होंने अपना पूरा ध्यान क्रिकेट पर केंद्रित कर दिया.

आदिवासी समाज से अब कई लड़कियां और लड़के क्रिकेट और अन्य खेलों के जरिए राष्ट्रीय स्तर अपनी और अपने समाज की पहचान बना रहे हैं.

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