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जम्मू-कश्मीर: गुज्जर समुदाय ने पहाड़ी आरक्षण विधेयक खारिज नहीं होने पर सड़कों पर उतरने की दी धमकी

आदिवासी नेताओं का कहना है कि पहाड़ी लोग समाज के संपन्न वर्ग से आते हैं. उनका कहना है कि वे सामाजिक रूप से उच्च वर्ग के आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं जिनकी साक्षरता दर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में औसत से ऊपर है.

आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था ‘ऑल रिजर्व्ड कैटेगरीज ज्वाइंट एक्शन कमेटी’ (All Reserved Categories Joint Action Committee) ने कड़ी चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अगर पहाड़ी समुदाय (Pahari community) के लिए आरक्षण के प्रस्ताव वाले विधेयक को संसद के आगामी सत्र में पेश किया गया तो वे सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करेंगे.

एआरसीजेएसी की ओर से वकील अनवर चौधरी ने विधेयक पर कड़ा विरोध जताया और दावा किया कि यह अवैध और असंवैधानिक है.

उन्होंने तर्क दिया कि पहाड़ी लोग अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) दर्जे के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं और इस बात पर जोर दिया कि विधेयक पर चर्चा भी नहीं की जानी चाहिए और इसे पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए.

एक अन्य वकील, मोहम्मद आजम ने जनसांख्यिकी का मुद्दा उठाया और कहा कि पहाड़ी समुदाय की आबादी गुज्जर समुदाय के लोगों की संख्या से अधिक है. उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि अगर विधेयक को आगे बढ़ाया गया तो सत्तारूढ़ भाजपा को जम्मू क्षेत्र की हर विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ेगा.

अधिवक्ता मोहम्मद अयूब चौधरी ने सरकार को कड़ा संदेश भेजा, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि जम्मू-कश्मीर में गुज्जर और बकरवाल उनके अधिकारों को छीनकर ऊंची जाति के व्यक्तियों को दिया जाना स्वीकार नहीं करेंगे.

उन्होंने चेतावनी दी कि वे 60 विधानसभा सीट पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और आगाह किया कि अगर लोग सड़कों पर उतर आए तो स्थिति को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा.

अमित शाह ने ST आरक्षण का किया था ऐलान

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण के पक्ष में हैं और यह आरक्षण निकट भविष्य में लागू किया जाएगा.

शाह ने जम्मू-कश्मीर के राजौरी में एक मेगा रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “जस्टिस शर्मा कमीशन ने पहाड़ियों के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश की है. प्रधानमंत्री मोदी इस सिफारिश को लागू करने जा रहे हैं.”

दरअसल, राजौरी में चार अक्टूबर को गृह मंत्री ने पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण की घोषणा की थी. शाह ने कहा कि पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति कैटगरी के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाएगा. साथ ही इससे गुज्जर और बकरवाल समुदाय को दिया जा रहा आरक्षण प्रभावित नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 नहीं हटता तो यहां आदिवासी आरक्षण नहीं मिलता.

अमित शाह ने कहा था, “(आर्टिकल) 370 हटने के बाद आरक्षण की प्रक्रिया को मंजूरी दी गई. जस्टिस शर्मा (जीडी शर्मा) आयोग ने रिपोर्ट भेजी थी और गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए आरक्षण की सिफारिश की थी. इन सिफारिशों को मान लिया गया है और कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद बहुत जल्द इसका लाभ दिया जाएगा.”

इस दौरान शाह ने कहा था कि गुज्जर और बकरवाल समुदाय के एसटी कोटे में एक फीसदी की भी कटौती नहीं होगी. पहाड़ी और सभी समुदाय को बराबर का हिस्सा मिलेगा.

NCST का भी समर्थन

पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के अमित शाह के ऐलान के एक महीने के भीतर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने भी स्वीकृति दी थी कि ‘पहाड़ी जातीय समूह’ को एसटी कैटेगरी में शामिल किया जाए.

गुज्जर और बकरवाल समुदाय का विरोध

वहीं राज्य में पहाड़ियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ गुर्जर और बकरवाल समुदाय पहले से विरोध करते आए है.

आदिवासी नेताओं का कहना है कि पहाड़ी लोग समाज के संपन्न वर्ग से आते हैं. उनका कहना है कि वे सामाजिक रूप से उच्च वर्ग के आर्थिक रूप से संपन्न लोग हैं जिनकी साक्षरता दर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में औसत से ऊपर है.

उन्होंने कहा कि अगर 60 से अधिक जातियों वाले ये समूह एसटी के दायरे में आते हैं तो वे वास्तविक जनजातियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देंगे. जो गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक भेदभाव का सामना करने वाले कमजोर वर्ग हैं.

जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय

राज्य की आबादी में 40 फीसदी हिस्सेदारी पहाड़ी समुदाय की है. पहाड़ी भाषाई अल्पसंख्यक हैं. जम्मू के राजौरी और पुंछ के पहाड़ों और कश्मीर के कुपवाड़ा व बारामूला जिलों में इनकी आबादी रहती है.

पहाड़ी समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए संघर्षरत हैं क्योंकि उनके साथ रहने वाले दूसरे समुदाय गुर्जरों और बकरवालों को 1991 में ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया गया था. उन्हें नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी का आरक्षण मिल रहा है.

पहाड़ी समुदाय आरक्षण के लिए पिछले 3 दशक से संघर्ष कर रहे हैं. समुदाय के लोगों का कहना है कि हम 1989 से आरक्षण की जंग लड़ रहे हैं. पिछले साल अक्टूबर में अमित शाह ने पहाड़ी समुदाय से ही प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी. तीन दशक के लम्बे इंतजार के बाद अब मांग पूरी हुई है.

एसटी सूची में शामिल होने की शर्तें

अगर पहाड़ी समुदाय को आरक्षण मिलता है तो यह भारत में किसी भाषाई समुदाय के लिए आरक्षण देने का पहला मामला होगा. इसके लिए केंद्र सरकार को आरक्षण में संशोधन करने की जरूरत होगी. जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय की आबादी करीब 6 लाख है, जिनमें 55 फीसदी हिंदू हैं और बाकी मुस्लिम हैं.

एसटी सूची में नए समुदायों को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों के मुताबिक अगर एक बार एनसीएसटी और आरजीआई के कार्यालय ने सूची में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी तो उसके बाद प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाएगा.

इसके बाद जम्मू-कश्मीर की एसटी सूची में जोड़ने के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय को संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति आदेश, 1989 में तदनुसार संशोधन करने के लिए संसद में एक विधेयक लाने की जरूरत होगी.

इसके बाद भारत के राष्ट्रपति द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 द्वारा अधिकारित संशोधित अनुसूची को अधिसूचित करने के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा.

वर्तमान में जम्मू और कश्मीर में 12 समुदाय हैं जिन्हें एसटी के रूप में अधिसूचित किया गया है.

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