रांची के एक आदिवासी लड़के सौरव कुमार मुंडा ने फिल्म निर्देशन में तीन साल के पीजी डिप्लोमा कोर्स के लिए प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में खुद के लिए एक सीट हासिल कर ली है. लेकिन अब अपने सपने को पूरा करने के लिए लगभग 4 लाख रुपये की जरूरत है. इसके लिए सौरव ने क्राउड फंडिंग शुरू कर दी है.
सौरव मुंडा झारखंड में अपनी जनजाति के पहले कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने एशिया के सर्वश्रेष्ठ फिल्म स्कूल में जगह बनाई है. लेकिन वित्तीय संकट उनके सपने के आड़े आ रहा है.
सौरव 2018-20 बैच के रांची विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता भी हैं. वो गोस्सनर कॉलेज से पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर हैं. इससे पहले उन्होंने 2016 में होटल मैनेजमेंट में प्रतिष्ठित बीआईटी मेसरा से स्नातक किया.
सौरव ने मीडिया को बताया, “मेरे पिता एक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं और अब 71 वर्ष के हैं. हालांकि वे चाहते हैं कि मैं फिल्म निर्माण का कोर्स करूं लेकिन हमारे पास वित्तीय संकट है.”
मुंडा तीन भाई-बहनों में सबसे छोटा है. उसका बड़ा भाई चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम जिला) में शिक्षक के पद पर कार्यरत है और उसकी बहन की शादी हो चुकी है.
सौरव ने कहा, “मेरा परिवार मेरी शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकता है इसलिए मैंने क्राउड सोर्सिंग शुरू कर दी है. वहीं बैंक तब तक लोन देगा जब तक कि कोलैटरल सिक्योरिटी जमा न हो जो कि हमारे पास तुरंत नहीं है. इसके अलावा फिल्म निर्माण एक ऐसा क्षेत्र है जहां आप लोन चुकाने में सक्षम होने के लिए कोर्स पूरा करने के बाद सीधे प्लेसमेंट की उम्मीद नहीं कर सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि बीआईटी मेसरा में अपनी पढ़ाई के दौरान उन्हें फिल्म निर्माण के एक अपरंपरागत क्षेत्र से जोड़ा गया. जो दो साल पहले रांची में एक फिल्म निर्माण कार्यशाला में भाग लेने के बाद और मजबूत हुआ.
सौरव मुंडा ने बताया, “होटल मैनेजमेंट करते समय मुझे एहसास हुआ कि फिल्म निर्माण मेरी सच्ची कॉलिंग थी. लेकिन पहले मुझे अपना स्नातक पूरा करना पड़ा क्योंकि मेरे माता-पिता ने तब मोटी रकम का भुगतान किया था. 2016 के बाद से अगले दो सालों के लिए मैंने कोलकाता में SRFT संस्थान में दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन मैं असफल रहा. पिछले साल मैं FTII परीक्षा में बैठा और इसे पास किया.”
इस साल जनवरी में सौरव ने पहले सेमेस्टर के लिए अपने दोस्तों और परिवार से फंड की व्यवस्था करके पहली किस्त के रूप में 35,000 रुपये का भुगतान किया है. लेकिन तीन साल के कोर्स और दूसरे खर्चों के लिए साथ ही पुणे में रहने के लिए उन्हें करीब 4 लाख रुपये की जरूरत है. हालांकि कोविड -19 महामारी के चलते संस्थान बंद होने के कारण मुंडा फिलहाल अपने गृहनगर रांची में हैं.
सौरव ने कहा कि क्योंकि वो एक अनुसूचित जनजाति से है इसलिए वह सरकारी छात्रवृत्ति के लिए पात्र होंगे लेकिन यह शिक्षण शुल्क का सिर्फ 50 फीसदी ही कवर करेगा बाकी का खर्चा मुझे वहन करना होगा.
शहर के जाने-माने डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता श्री प्रकाश जो सेंट जेवियर्स कॉलेज में इस विषय को पढ़ाते हैं ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से क्राउड फंडिंग की अपील की है.
प्रकाश ने कहा, “मैंने महसूस किया कि मुझे उनके सपने का समर्थन करना चाहिए क्योंकि उनके जैसे आदिवासी छात्रों की शिक्षा अहम है. जो उनके और अन्य हाशिए के समुदायों के कई लोगों को सिनेमा के माध्यम से अनकही कहानियों को बताने के लिए फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करेगी. मुंडा आदिवासी होने के नाते संभवतः झारखंड में या अपने समुदाय के पहले कुछ छात्रों में से हैं जिन्होंने FTII में दाखिले के लिए क्वालीफाई किया है. लेकिन वह अब एक ऐसी बाधा के सामने खड़ा है जिसे उसके पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए खत्म करना चाहिए.”