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आदिवासियों को भोजन के लिए जंगली सूअर का शिकार करने की हो अनुमति: पॉलिसी डॉक्यूमेंट

दस्तावेज़ में कहा गया है कि जंगली सूअर के शिकार के अधिकार स्थानीय आदिवासी समुदायों तक ही सीमित होने चाहिएं, और इस पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए. एक बार जानवरों की आबादी घटने के बाद शिकार बंद कर दिया जाना चाहिए.

इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते टकराव को रोकने के लिए केरल के सेंटर फ़ॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ (सीडीएस) ने एक पॉलिसी डॉक्यूमेंट तैयार किया है. इसमें सुझाव है कि आदिवासी समुदायों को एक सीमित अवधि के लिए जंगली सूअर का शिकर करने की अनुमति दी जाए. इससे जंगली सूअरों की बढ़ती आबादी को रोकने के लिए उन्हें मारने की ज़रूरत नहीं होगी.

यह दस्तावेज़ (‘Empowering forest-fringe panchayats: A policy reflection on the solution to the shrinking human-wildlife interface in Kerala’) सीडीएस के स्थानीय स्व-सरकार विकास अध्ययन केंद्र ने तैयार किया है.

इस दस्तावेज़ में जंगली सूअर को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की अनुसूची 3 से अनुसूची 5 से हटाने का सुझाव है. इससे आदिवासी समुदाय जंगली सूअरों का शिकार कर सकेंगे, और कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन इस समुदायों की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी.

पॉलिसी बनाने वाले शोधकर्ताओं का मानना है कि जंगली सुअरों के शिकार से जंगली मीट और इसके मूल्य वर्धित उत्पादों के लिए एक बाज़ार भी खड़ा होगा. इसके लिए सरकारी संस्थान मीट प्रॉडक्ट्स ऑफ़ इंडिया की मदद ली जा सकती है. यह संस्थान केरल में मीट की प्रोसेसिंग और सप्लाई पर नज़र रखता है.

इसके अलावा दस्तावेज़ में कहा गया है कि जंगली सूअर के शिकार के अधिकार स्थानीय आदिवासी समुदायों तक ही सीमित होने चाहिएं, और इस पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए. एक बार जानवरों की आबादी घटने के बाद शिकार बंद कर दिया जाना चाहिए.

मुआवज़े की बात

दस्तावेज़ में जंगली जानवरों की वजह से अपनी फ़सल गंवाने वाले किसानों को उचित और पर्याप्त मुआवज़ा देने का भी सुझाव है. इसके लिए मुआवज़े की रक़म को तो बढ़ाया जाएगा ही, साथ ही इसके दायर में महत्वपूर्ण खाद्य फसलों, कंदों और सब्जियों को भी लाया जाएगा.

जंगल की सीमा पर बसी पंचायतों को बफ़र ज़ोन में सभी वन और राजस्व विभागों के साथ समान भागीदार के रूप में काम करने का अधिकार दिया जाना चाहिए. यह भी सुझाव है कि स्थानीय निकायों को जानवरों की घुसपैठ को रोकने के लिए गार्ड नियुक्त करने का भी अधिकार होना चाहिए.

आक्रामक उपजाति

जंगली इलाक़ों में आक्रामक प्रजातियों के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए क़दम उठाने का भी सुझाव है, क्योंकि ऐसी प्रजातियों ने शाकाहारी जीवों के लिए भोजन की उपलब्धता सहित इकोसिस्टम को भी नष्ट कर दिया है.

दस्तावेज़ में साफ़ है कि ऐसी आक्रामक प्रजातियों के प्रसार की जंगल की सीमा पर इंसानों और जानवरों के बीच टकराव को बढ़ाने में अहम भूमिका है.

दरअसल, राज्य में जंगली सूअरों की बढ़ती संख्या एक चिंता का विषय है. जंगलों से बाहर आकर यह जंगली सूअर अकसर रात के अंधेरे में खेतों को बर्बाद कर देते हैं. ऐसे में हर साल इनकी संख्या कम करने के लिए इन्हें मार दिया जाता है. इस साल भी सितंबर महीने के शुरुआत में केरल में यह प्रक्रिया शुरु हुई थी.

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