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केरल सरकार 5 एकड़ तक की आदिवासी भूमि की बिक्री को नियमित करेगी

अगर अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के कब्जे, उपभोग या स्वामित्व वाली भूमि का एसटी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को भूमि का ट्रांसफर दो हेक्टेयर (पांच एकड़) से अधिक नहीं है तो वह ट्रांसफर वैध होगा.

केरल राजस्व विभाग ने आखिरकार लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवाद का समाधान ढूंढ लिया है. जिसमें अनुसूचित जनजाति के लोगों से खरीदी गई जमीन को नियमित करना शामिल है.

1999 के ‘द केरल रिस्ट्रिक्शन ऑन ट्रांसफर बाय लैंड्स टू शेड्यूल ट्राइब्स एक्ट’ के मुताबिक, सक्षम प्राधिकारी की लिखित सहमति के बिना अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाली भूमि का समुदाय से बाहर के लोगों को कोई भी हस्तांतरण अमान्य होगा.

यह कानून 1 जनवरी, 1960 से पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया था. कानून के अधिनियमन ने कई गैर-आदिवासी लोगों को मुश्किल स्थिति में डाल दिया, जिन्होंने पलक्कड़, इडुक्की और वायनाड जैसे जिलों में आदिवासी लोगों से जमीन खरीदी थी.

राजस्व और पंजीकरण अधिकारियों ने भूमि के स्वामित्व का म्यूटेशन और ट्रांसफर करने से इनकार कर दिया. प्रत्येक ‘पटाया मेले’ पर हजारों लोग कानूनी समाधान खोजने के लिए राजस्व अधिकारियों से संपर्क करते थे.

राजस्व विभाग के अधिकारी सरकार को सूचित कर रहे हैं कि क्योंकि कानून आदिवासी भूमि की बिक्री को नियमित करने की अनुमति नहीं देता है इसलिए मामले का समाधान असंभव है.

दूसरी बार पिनाराई विजयन सरकार के सत्ता में आने के बाद विभाग ने इस मुद्दे को उठाया और सभी अधिकारियों से कानूनी समाधान खोजने को कहा.

1993 में पारित एक अधिनियम के गहन सत्यापन के बाद यह पाया गया कि कानून की धारा 5 एक समाधान प्रदान करती है. इसमें कहा गया है कि अगर अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के कब्जे, उपभोग या स्वामित्व वाली भूमि का एसटी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को भूमि का ट्रांसफर दो हेक्टेयर (पांच एकड़) से अधिक नहीं है तो वह ट्रांसफर वैध होगा.

विभाग ने अधिकारियों से मौजूदा पटाया विधानसभाओं में भूमि को नियमित करने के लिए जरूरी कार्रवाई करने को कहा है.

एक राजस्व अधिकारी ने बताया कि पटाया असेंबली एक बड़ी सफलता साबित हुई है क्योंकि अकेले एक जिले में 2,000 पटाया मुद्दों को हल किया जा रहा है. एसटी भूमि हस्तांतरण के मुद्दे को हल करके, एक प्रमुख राजस्व मुद्दा हल किया गया है.

विभाग ने 1 जनवरी 1977 से पहले कब्जे वाली वन भूमि को भी नियमित करने का निर्णय लिया है. राजस्व और वन अधिकारियों का मानना है कि जनवरी 1977 से पहले कब्जे वाली वन भूमि को केंद्र सरकार की अनुमति से नियमित किया जाना चाहिए.

हालांकि, ‘केरल लैंड असाइनमेंट स्पेशल रूल्स, 1993’ के मुताबिक, इन नियमों के तहत भूमि को व्यक्तिगत खेती की रजिस्ट्री उद्देश्यों या आवासीय या वाणिज्यिक साइटों के लिए आवंटित किया जा सकता है, जैसा भी मामला हो.

राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में एक हजार परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं. हालांकि विभाग ने इस मामले पर कानूनी राय मांगी है. लेकिन विभाग का यह भी मानना है कि अगर जरूरत पड़ी तो अलग से आदेश जारी किया जाएगा.

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