HomeAdivasi Dailyमेघायल-असम सीमा समझौते के ख़िलाफ़ अदालत जाएगा आदिवासी परिषद

मेघायल-असम सीमा समझौते के ख़िलाफ़ अदालत जाएगा आदिवासी परिषद

समन्वय समिति की रिपोर्ट के अध्ययन के आधार पर परिषद असम-मेघालय सीमा पर 12 विवादित क्षेत्रों में से छह के निपटारे के लिए किए गए समझौते का विरोध करते हुए अदालत में एक याचिका दायर की जाएगी.

मेघालय के एक स्वायत्त आदिवासी परिषद ने राज्य के असम के साथ हुए सीमा समझौते को कोर्ट में चुनौती देने का फ़ैसला किया है. इसके लिए परिषद ने एक समन्वय समिति का गठन किया है.

खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (Khasi Hills Autonomous District Council – KHADC) ने मंगलवार को पांच पारंपरिक खासी आदिवासी राज्यों, जिन्हें हिमा कहा जाता है, के प्रतिनिधियों के साथ समिति का गठन किया. इनमें से हर एक हिमा के पास असम की सीमा से लगे इलाक़े हैं.

KHADC मेघालय में तीन आदिवासी-आधारित परिषदों में से एक है. बाकि के दो गारो हिल्स स्वायत्त जिला परिषद और जयंतिया हिल्स स्वायत्त जिला परिषद हैं.

KHADC के एक सदस्य ने कहा कि समन्वय समिति की रिपोर्ट के अध्ययन के आधार पर परिषद असम-मेघालय सीमा पर 12 विवादित क्षेत्रों में से छह के निपटारे के लिए किए गए समझौते का विरोध करते हुए अदालत में एक याचिका दायर की जाएगी.

उन्होंने कहा, “हमें अदालत से समाधान मांगना है, क्योंकि राज्य सरकार सीमा सौदे की समीक्षा नहीं करने पर अड़ी है.”

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उनके मेघालय समकक्ष कोनराड के. संगमा ने 29 जनवरी को छह इलाक़ों में सीमा विवाद को निपटाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. केंद्र सरकार ने दो महीने बाद समझौते को अपनी सहमति दे दी थी.

यह सौदा “गिव-एंड-टेक” फॉर्मूले पर किया गया था, जिसके तहत विवादित क्षेत्रों को दोनों राज्यों के बीच लगभग आधा-आधा विभाजित कर दिया गया है. सौदे से नाखुश, सीमा पर बसे मेघालय समर्थक ग्रामीण नियमित रूप से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

KHADC का कहना है कि नैशनल पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व वाली मेघालय सरकार ने उनकी सिफारिशों को ध्यान में रखे बिना असम के साथ सीमा समझौते को अपनी मंज़ूरी दे दी. उनका कहना है कि समझौते में कई खामियां हैं, और इसको बनाते वक़्त कई ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी की गई है.

पहले 1970 में एक स्वायत्त राज्य के रूप में, और फिर 1972 में एक राज्य के रूप में मेघालय को असम से अलग किया गया था. केएचएडीसी के अनुसार, मौजूदा सीमा सौदा 1965 के असम पुनर्गठन अधिनियम और 1971 के उत्तर पूर्व पुनर्गठन अधिनियम को दरकिनार कर देता है.

एनपीपी के गठबंधन सहयोगियों में से सबसे बड़ी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी सीमा समझौते पर नाखुशी जाहिर की है. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष मेटबाह लिंगदोह ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर संगमा के साथ चर्चा करेंगे.

उन्होंने कहा है कि चर्चा करेंगे, और यह संगमा और उनकी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वे इस मामले की जांच करें, और विभिन्न समूहों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करें.

दो राज्यों के बीच फंसे लोग

ब्रिटिश शासन के दौरान, अविभाजित असम में वर्तमान नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम शामिल थे. मेघालय को 1972 में असम से अलग कर बनाया गया था. राज्य की सीमा को 1969 के असम पुनर्गठन (मेघालय) अधिनियम के अनुसार सीमांकित किया गया था, लेकिन तब से ही सीमा की एक अलग व्याख्या की गई है.

2011 में, मेघालय सरकार ने असम के साथ विवाद वाले 12 क्षेत्रों की पहचान की थी, जो लगभग 2,700 वर्ग किमी में फैले हुए थे.

इनमें से कुछ विवाद असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता वाली 1951 की समिति द्वारा की गई सिफारिशों से पैदा हुए थे. मसलन, बोरदोलोई समिति की सिफारिश का उल्लेख है कि जयंतिया हिल्स (मेघालय) के ब्लॉक I और II को असम के मिकिर हिल (कार्बी आंगलोंग) जिले में ट्रांस्फ़र किया जाए. इसके अलावा मेघालय के गारो हिल्स से लेकर असम के गोलपारा जिले तक के कुछ इलाकों के साथ भी ऐसा किया जाए.

1969 का अधिनियम इन सिफारिशों पर आधारित है, जिसे मेघालय ने यह दावा करते हुए खारिज कर दिया कि ये क्षेत्र मूल रूप से खासी-जयंतिया हिल्स से संबंधित हैं. दूसरी ओर, असम का कहना है कि मेघालय के पास यह साबित करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं हैं कि ये क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से मेघालय के ही थे.

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