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कोलाम आदिवासी बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों की कमी के कारण अक्षर ज्ञान से वंचित

बच्चों के माता-पिता ने जिला अधिकारियों से अपने-अपने गांवों में आंगनबाड़ी स्थापित करने का आग्रह किया है. 8 साल से कम उम्र के लगभग 12 बच्चे वहां रहते हैं. वे गांव में खेलते हैं जब उनके माता-पिता आदिलाबाद ग्रामीण मंडल की थिप्पा ग्राम पंचायत के निशानीघाट में काम करते हैं.

तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले के कोलाम आदिवासी के कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें अक्षर का भी ज्ञान नहीं है. और ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके गाँवों में कोई आंगनवाड़ी केंद्र नहीं है.

वहीं माता-पिता सुरक्षा की चिंता और अन्य कारणों से अपने बच्चों को दूसरे गांवों के स्कूलों में भेजने को तैयार नहीं हैं.

कोलाम समुदाय को विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) माना जाता है. ये समुदाय दयनीय स्थिति में रह रहा है. ये लोग प्रकृति से गहराई से जुड़े हुए हैं. ये आदिवासी जंगल से बाँस इकट्ठा कर इससे कुछ वस्तुएँ बनाते हैं.

कोलाम आदिवासी इन वस्तुओं को बेचकर अपना जीवनयापन करते हैं. कई कोलाम खेती करना चाहते हैं लेकिन उनके पास कृषि भूमि नहीं है.

कुमराम सुरु युवा सेना के जिला महासचिव कुमार राजू ने कहा कि संगठन ने बेला मंडल में मसाला-दुबबागुडा, चिन्नुगिदा और दौना गांवों, नारनूर मंडल में गणेशपुर-कोलमगुड़ा और आदिलाबाद ग्रामीण मंडल में निशानीघाट सहित कोलम गुड़ाओं में आंगनवाड़ी केंद्र स्थापित करने के लिए अधिकारियों को प्रस्ताव प्रस्तुत किया था लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

आंगनबाड़ी नहीं होने के चलते यहां कई बच्चे बाल मजदूर बन गए हैं. बच्चों के माता-पिता ने जिला अधिकारियों से अपने-अपने गांवों में आंगनबाड़ी स्थापित करने का आग्रह किया है.

8 साल से कम उम्र के लगभग 12 बच्चे वहां रहते हैं. वे गांव में खेलते हैं जब उनके माता-पिता आदिलाबाद ग्रामीण मंडल की थिप्पा ग्राम पंचायत के निशानीघाट में काम करते हैं.

हालांकि, कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को सरकारी छात्रावासों में रखा है. वे गादीगुड़ा और जैनद मंडलों में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ते हैं.

लेकिन बाकी बच्चे गांव में ही रहते हैं. इनमें से कुछ के माता-पिता जब खेती-किसानी में लगे होते हैं तो लड़किया अपने छोटे भाई-बहनों का घर पर ध्यान रखती हैं.

आदिलाबाद जिले के इंद्रवेली, गाडीगुडा, नारनूर, सिरीकोंडा, गुड़ीहथनूर, बजरहथनूर, बोथ, आदिलाबाद ग्रामीण, बेला और उत्नूर मंडलों के कई आंतरिक गांवों में कोई आंगनवाड़ी केंद्र नहीं है.

ये गांव बाहरी दुनिया से कटे रहते हैं. इन गांवों के लिए कोई उचित सड़क संपर्क नहीं है क्योंकि इनमें से कई कम आबादी वाले गांव गहरे जंगलों में पहाड़ियों पर स्थित हैं.

कई कोलम आदिवासी, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, एनीमिया से पीड़ित हैं और स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं. अगर इन बच्चों को स्कूल भेज दिया जाए तो इन्हें कुछ पौष्टिक खाना मिल जाएगा.

इसके लिए ऐसे गांवों में आईटीडीए (एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी) को आंगनवाड़ी केंद्र स्थापित करने की जरूरत है.

ऐसा ही एक गांव है निशानघाट और कोलमगुड़ा जहां 13 कोलम परिवार रहते हैं. 40 सदस्यों के छोटी आबादी वाले इस गांव में पहले बिजली नहीं थी.

लेकिन ITDA उत्नूर ने दिसंबर 2022 में सभी परिवारों को सौर ऊर्जा पैनल दिए, जिसके बाद से इन परिवारों के पास पंखा और लाइट है.

पुराने आदिलाबाद जिले में करीब 60 हज़ार कोलम आबादी है. कई कोलम कई स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं. पिछले दस वर्षों में इन क्षेत्रों में सरकार ने ध्यान नहीं दिया है जिसके चलते इन गांवों में रहने की स्थिति बद से बदतर हो गई है.

नारनूर मंडल की गणेशपुर-कोलमगुडा बस्ती गरीब अफ्रीकी देशों से मिलती-जुलती है जहां लोग दयनीय स्थिति में रहते हैं. कुछ कोलम परिवार पुराने सरकारी निर्मित घरों में रह रहे हैं जो अब छत के बिना जर्जर स्थिति में हैं.

इस गांव के बच्चों के लिए लंबे समय से कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है.

तेलंगाना सरकार देश भर के अख़बारों में अपनी उपलब्धि का गुणगानों के विज्ञापन छाप रही है. लेकिन आदिवासियों के लिए एक आंगनबाड़ी का इंतज़ाम तक सरकार ने नहीं किया है.

उम्मीद है कि इस रिपोर्ट के बाद कम से कम सरकार यह काम कर देगी.

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