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आदिवासी भारत में भी प्रतीकों की राजनीति, जबलपुर स्टेशन को रानी दुर्गावती का नाम देने की माँग

इससे पहले साल 2021 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखा गया था. आदिवासी गोंड समुदाय के लिए एक बहुत सम्मानित रानी कमलापति भोपाल क्षेत्र की अंतिम हिंदू महारानी थीं.

मध्य प्रदेश में काफी समय से कई जगहों और रेलवे स्टेशन के नाम आदिवासी राजाओं और नेताओं के नाम पर बदले जा रहे हैं. इसी क्रम में अब पश्चिम मध्य रेलवे के जबलपुर रेलवे स्टेशन का नाम गोंडवाना की रानी दुर्गावती के नाम पर रखे जाने की योजना है.

दरअसल, बीजेपी के जबलपुर सांसद राकेश सिंह ने सोमवार को 155 साल पुराने जबलपुर रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की मांग की है. उन्होंने ऐतिहासिक गोंडवाना साम्राज्य की आदिवासी रानी दुर्गावती के नाम पर रखने की मांग की है. रानी दुर्गावती 24 जून, 1564 को जबलपुर जिले में नरई नाला के पास मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी.

जबलपुर रेलवे स्टेशन का नाम आदिवासी महारानी दुर्गावती के नाम पर रखने की वकालत करते हुए राकेश सिंह ने कहा कि उन्होंने नाम बदलने के मुद्दे पर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की है और एक औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पहले पूरी प्रक्रिया का अध्ययन करेंगे.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके राकेश सिंह के इस कदम को मध्य प्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आदिवासियों को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

इससे पहले साल 2021 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखा गया था. आदिवासी गोंड समुदाय के लिए एक बहुत सम्मानित रानी कमलापति भोपाल क्षेत्र की अंतिम हिंदू महारानी थीं.

वहीं इस सिलसिले में लोकसभा में बीजेपी के मुख्य सचेतक और जबलपुर सांसद राकेश सिंह ने वेस्टर्न सेंट्रल रेलवे (WCR) के महाप्रबंधक और जबलपुर रेलवे मंडल प्रबंधक के साथ बातचीत के बाद पत्रकारों से कहा, “जबलपुर रेलवे स्टेशन का नाम रानी दुर्गावती के नाम पर रखने को लेकर मैंने पश्चिम मध्य रेलवे के शीर्ष अधिकारियों से बात की थी.”

उन्होंने आगे कहा, “रानी दुर्गावती हमारी पूर्वज थीं. हमें उस जगह का हिस्सा होने पर गर्व और विशेषाधिकार महसूस करना चाहिए जहां रानी दुर्गावती रहती थीं. उनका शासन और जल प्रबंधन और वीरता अद्वितीय थी. जबलपुर के लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, जबलपुर स्टेशन का नाम उनके नाम पर रखा जाना चाहिए.”

राकेश सिंह ने कहा, “लेकिन यह (नाम बदलने) एक लंबी कवायद है. क्योंकि केंद्र द्वारा निर्णय लेने और अनुमोदित करने से पहले राज्य सरकार का प्रस्ताव विभिन्न मंत्रालयों के पास जाता है. मैं राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजने से पहले रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने की प्रक्रिया का अध्ययन करने जा रहा हूं.”

भाजपा नेता ने यह भी कहा कि 300 करोड़ रुपये के निवेश से रेलवे स्टेशन को नए सिरे से तैयार करने के लिए एक और प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

आदिवासी वोटों को वापस लुभाने में जुटी भाजपा

सत्तारूढ़ बीजेपी कई विधानसभा सीटों पर काफी प्रभाव रखने वाले आदिवासियों को वापस जीतने के लिए कोशिश कर रही है. आठ जिलों वाले जबलपुर राजस्व मंडल में कई आदिवासी आरक्षित सीटें हैं. यहां कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था. 2018 में बीजेपी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस से मामूली अंतर से हार गई थी. तब कांग्रेस ने आदिवासी आरक्षित 31 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी को सिर्फ 16 सीटों से संतोष करना पड़ा था.

शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव हारने के बाद मौजूदा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस सरकार के खिलाफ विद्रोह के बाद सत्ता में लौटने से पहले बीजेपी 15 महीने तक विपक्ष में बैठी रही.

इससे पहले 2003 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हराकर बीजेपी मध्य प्रदेश में सत्ता में आई थी. तब इसके प्रदर्शन को आदिवासी आरक्षित सीटों पर शानदार प्रदर्शन से बल मिला था. वहां इसने अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए निर्धारित 41 निर्वाचन क्षेत्रों में से 37 पर जीत हासिल की थी.

बीजेपी ने 2008 में 47 एसटी आरक्षित सीटों में से 31 पर जीत हासिल की और सत्ता बरकरार रखी. परिसीमन लागू होने के कारण राज्य में आदिवासी-आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई. साल 2013 में बीजेपी ने एसटी आरक्षित विधानसभा सीटों पर अपने 2008 के प्रदर्शन को दोहराया.

2011 की जनसंख्या जनगणना के मुतबिक अनुसूचित जनजाति समुदाय की आबादी 1.53 करोड़ से अधिक थी. मध्य प्रदेश के कुल 7.26 करोड़ निवासियों में से इसकी हिस्सेदारी 21.08 प्रतिशत थी.

करीब 1.75 करोड़ आदिवासी जो अब मध्य प्रदेश में 22 प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं, उनके पास राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से आरक्षित 47 सीटों के साथ सत्ता की कुंजी है.  राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि राज्य की 35 अन्य विधानसभा सीटों पर भी 50 हज़ार से अधिक आदिवासी मतदाता मौजूद हैं.

जबलपुर रेलवे स्टेशन का इतिहास

जबलपुर (तब जुबुलपुर के नाम से जाना जाता था) स्टेशन 1867 में बॉम्बे (अब मुंबई) और कलकत्ता (अब कोलकाता) को जोड़ने वाले रेल यातायात के लिए खोला गया था. उस समय यह ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे और ईस्ट इंडियन रेलवे के बीच इंटरचेंज स्टेशन था.

आदिवासी मुद्दे और प्रतीकों की राजनीति

बीजेपी ने देश भर में आदिवासियों को एक बड़े वोट बैंक में बदलने की योजना बनाई है. इस योजना के तहत आदिवासी प्रतीकों की राजनीति की जा रही है. मसलन बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की गई है.

इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले आदिवासी नायकों पर चर्चा की जा रही है. केंद्र सरकार के साथ साथ मध्यप्रदेश सरकार भी इस तरह की राजनीति कर रही है.

लेकिन आदिवासियों के ठोस मुद्दों पर केंद्र सरकार या मध्य प्रदेश सरकार का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है. 2014 के बाद जब से केंद्र में बीजेपी की सरकार आई है कम से कम दो क़ानूनों में ऐसे बदलाव करने की कोशिश की गई है जो आदिवासियों के भले में नहीं है.

ये क़ानून ज़मीन अधिग्रहण अधिनियम 2013 और पर्यावरण से जुड़े नियमों में बदलाव की कोशिश आदिवासियों की ज़मीन की लूट को आसान करती है.

मध्य प्रदेश आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में देश भर में नंबर एक पर है.

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