HomeAdivasi Daily1969 में हड़पी गई ज़मीन आदिवासी परिवार को लौटाई जाएगी

1969 में हड़पी गई ज़मीन आदिवासी परिवार को लौटाई जाएगी

यह फ़ैसला देने वाले एसडीएम अतुल सिंह के मुताबिक आदिवासियों की ज़मीन जिस तरह से ग़ैर आदिवासी परिवार ने नियमों के खिलाफ़ ख़रीदी थी.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एसडीएम कोर्ट ने आदिवासी की जमीन के मामले में बुधवार को अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट के इस फ़ैसले के अनुसार आदिवासी परिवार को जमीन वापस वापस मिल सकेगी. 

यह फ़ैसला देने वाले एसडीएम अतुल सिंह के मुताबिक आदिवासियों की ज़मीन जिस तरह से ग़ैर आदिवासी परिवार ने नियमों के खिलाफ़ ख़रीदी थी.

उन्होंने कई क़ानूनों का हवाला देते हुए ज़मीन को आदिवासी परिवार के हवाले करने का आदेश दिया.

एसडीएम ने अपने फ़ैसले में कहा है कि भू राजस्व संहिता 1959 की धारा 170 (ख), उपधारा 3 के तहत मौजा सुनारी मोहगांव में खसरा नंबर 273, 192 में क्रमश रकबा 0.138 और 1.781 हेक्टेयर भूमि आदिवासी दमड़ी पिता हीरा खड़िया की थी.

इस ज़मीन को सालकराम पिता शोभाराम रघुवंशी ने खरीदा लिया था. ज़मीन ख़रीदने बाद उसने यह ज़मीन दो भाइयों दयाराम और सियाराम रघुवंशी को बेच दी थी. जबकि नियम के मुताबिक कलेक्टर की अनुमति के बिना आदिवासी की जमीन हस्तांतरित नहीं की जा सकती. 

इसलिए यह जमीन आदिवासी परिवार की ही है और उसको ही लौटानी होगी. ज़मीन के मालिक दमड़ी खड़िया की मौत हो चुकी है इसलिए अब यह ज़मीन उनके वारिस चैन सिंह, श्याम, जवाहर, शांति बाई पिता धनराज और सुकया बाई को लौटानी होगी.

एसडीएम की जाँच में यह पता चला है कि सुनारी मोहगांव में दमड़ी पिता हीरा खड़िया की जमीन थी. इस ज़मीन को धोखे से गैर आदिवासी ने ख़रीद लिया था.

जाँच में पता चला है कि 1975 में आदिवासी परिवार की ज़मीन को बिना कलेक्टर की अनुमति के ही ग़ैर आदिवासी परिवार ने ख़रीद लिया. 

यह मामला इतना ही नहीं था. ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से ख़रीदी गई इस ज़मीन को आगे दूसरे व्यक्तियों को भी बेचा गया.

ज़ाहिर है इस पूरे मामले में ज़िला प्रशासन और राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिली भगत ज़रूर रही होगी. क्योंकि प्रशासन की मर्ज़ी के बिना नियमों के तहत यह संभव ही नहीं था. 

छिंदवाड़ाा की एसडीएम कोर्ट का यह फ़ैसला एक बेहद गंभीर मसले की तरफ़ इशारा करता है.इस केस से यह अंदाज़ा होता है कि आदिवासियों की मजबूरी का फ़ायदा उठा कर या फिर उन्हें बहका कर उनकी ज़मीन कैसे हड़पी जाती है.

इसके अलावा यह भी पता चलता है कि कैसे नियमों और क़ानूनों के बावजूद आदिवासी की ज़मीन हड़पी जा रही है. अफ़सोस की बात ये है कि इस तरह के मामलों का कोई सही सही डेटा या जानकारी जमा नहीं की जाती है.

अगर देश में अनुसूचि 5 के क्षेत्रों में ज़मीनों के रिकॉर्ड और उनके मालिकाना हक़ के बारे में जाँच की जाए तो ऐसे हज़ारों मामले मिल सकते हैं. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments