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मध्य प्रदेश: अलीराजपुर और झाबुआ में NOTA को मिल रही प्राथमिकता, जाने वज़ह

मध्यप्रदेश के अलीराजपुर और झाबुआ में आदिवासी मतदाता अधिकतर नोटा में वोट करते है. जब की यहां का सक्षारता दर बेहद है. इसी वज़ह से अब कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ये फैसला किया है की वो ज़िलों के सभी मतदाताओं को ईवीएम का सही प्रोसेस सिखाएंगी.

पिछले दो चुनावों में मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के अलीराजपुर (Alirajpur) और झाबुआ (Jhabua) ज़िले में नोटा (NOTA) यानी नॉन ऑफ द अबोव (None of the above) में सबसे ज्यादा वोट दिए गए थे. जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक इन दोनों ही ज़िलों में सक्षारता दर बेहद कम है.

अब ये परिस्थिति बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चिंताजनक है क्योंकि यहां पर चुनाव में मुख्य मुकाबला दोनों पार्टियों में ही देखने को मिलता है. इसलिए उम्मीदवारों को लगता है कि मतदाताओं को सही बटन दबाने के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है.

पिछले चुनाव में झाबुआ और अलीराजपुर दोनों के निर्वाचन क्षेत्रों में 4.79 फीसदी नोटा वोट दर्ज किए गए हैं, जो कुछ उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त जीत के अंतर से भी अधिक है.

झाबुआ और अलीराजपुर जिलों के पांच निर्वाचन क्षेत्रों में जोबट ऐसा निर्वाचन क्षेत्र रहा जहां नोटा को सबसे अधिक वोट पड़े. इसलिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अब सभी निवासियों को वोटिंग सिखाने का फैसला किया है.

कांग्रेस इन दोनों ज़िलों में डेमो इवीएम की मशीन लगाएगी. वहीं बीजेपी ने 2 नवंबर से ईवीएम पर पार्टी बटन की स्थिति घोषित होते ही डेमो शीट के साथ सभी मतदाताओं तक पहुंचने की योजना बनाई है.

झाबुआ कांग्रेस के जिला अध्यक्ष प्रकाश रांका ने कहा, ”हम देख रहे हैं कि नोटा लागू होने के बाद पिछले दो चुनावों से क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिकों और अशिक्षित लोगों के बीच बहुत भ्रम की स्थिति है.

हमने सभी मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को बटनों के बारे में जानकारी देने के लिए अपने बूथ कोऑर्डिनेटर को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया है. क्षेत्रों में प्रचार कर रहे पार्टी नेता यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि वे नोटा के बारे में सभी को ठीक से समझाएं. हम नहीं चाहते कि वे गलती से नोटा पर अपना वोट डालें.”

रांका ने कहा कि यह थोड़ा मुश्किल है लेकिन वे पार्टी को उसके प्रतीक से संदर्भित करते हैं और ग्रामीण भी पार्टी के नाम से बेहतर प्रतीक को पहचानते हैं.

2013 में नोटा को तीसरा सबसे बड़ा वोट मिला. 5689 वोट जो निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल वोटों का 4.79% था. इस सीट पर बीजेपी के माधो सिंह डावर ने कांग्रेस के विशाल रावत को 11051 वोटों से हराया था.

हालांकि, 2018 में नोटा को मिले वोट कांग्रेस की विजेता उम्मीदवार स्वर्गीय कलावती भूरिया को मिले अंतर से अधिक थे. जहां कलावती बीजेपी के माधो सिंह डाबर को 2056 वोटों के अंतर से हराने में कामयाब रहीं, वहीं 5139 वोट यानी कुल वोटों का 3.74 फीसदी नोटा को मिले.

झाबुआ भाजपा जिला अध्यक्ष प्रवीण सुराणा ने कहा, “हम डेमो शीट के साथ आदिवासी गांवों में जाते हैं, जिसमें हम मतदाताओं को समझाते हैं कि पार्टी का बटन कहां होगा. कुछ लोग, अधिकतर बुजुर्ग, भ्रमित हो जाते हैं. हम बूथ प्रभारियों की मदद से मतदान तिथि से पहले उन तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. हम डेमो मशीनें भी लगाएंगे. नोटा पर डाले गए वोट इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि मशीन किस दिशा में रखी गई है.”

इन दोनों ही पार्टियों का मानना है की यहां पर रहने वाले आदिवासियों को नोटा के बारे में अधिक जानकारी नहीं है और वो गलती से नोटा में वोट कर देते हैं.

ये दोनों ही ज़िले आदिवासी बहुल क्षेत्र है इसलिए इनमें एक सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित की गई है. यहां 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए है.

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