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महाराष्ट्र: 2017-18 से हर महीने हॉस्टल में 2 आदिवासी छात्रों की मौत

आदिवासी कल्याण मंत्री विजयकुमार गावित ने कहा कि वास्तविक मौतें 108 थीं. इनमें से 49 आदिवासी छात्रों की मौत सीधे सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में हुई, जबकि 59 की मौत निजी स्कूलों में हुई, जिन्हें राज्य से धन मिलता है. दोनों संस्थानों में हुई मौतों के लिए गावित ने 'विभिन्न बीमारियों' को कारण बताया.

महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को विधान परिषद को सूचित किया कि राज्य में शैक्षणिक सत्र 2017-18 और 2022-23 के बीच हर महीने स्कूल या छात्रावास (आश्रमशाला) में औसतन दो आदिवासी छात्रों की ‘विभिन्न बीमारियों’ के कारण मृत्यु हो गई. सरकारी और निजी सहायता प्राप्त आश्रमशालाओं के परिसर में कुल मिलाकर 108 मौतें हुईं, जिनमें से 25 प्रतिशत मामले नासिक डिवीजन के हैं.

पांच वर्षों के दौरान लगभग 22 छात्रों की औसत वार्षिक मृत्यु होती है. लेकिन ये आंकड़े तब और अधिक स्पष्ट हो जाते हैं जब कोई इस बात पर ध्यान देता है कि कोविड-19 (2020-21 सत्र) के दौरान आवासीय विद्यालय महीनों तक बंद रहे.

तो क्योंकि ये मौतें कैंपस में हुईं इसलिए वास्तविक अवधि चार साल के करीब है जब स्कूल पूरी तरह से खुले थे. इस तरह छात्रों की वार्षिक मृत्यु औसत 27 के करीब पहुंच गया.

प्रवीण दरेकर और प्रसाद लाड सहित कई विधान परिषद के सदस्यों ने मौतों की इतनी ज्यादा संख्या पर जवाब मांगा और जानना चाहा कि क्या शैक्षणिक सत्र 2017-18 और 2022-23 के बीच ‘464 छात्रों की मृत्यु हुई’.

आदिवासी कल्याण मंत्री विजयकुमार गावित ने कहा कि वास्तविक मौतें 108 थीं. इनमें से 49 आदिवासी छात्रों की मौत सीधे सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में हुई, जबकि 59 की मौत निजी स्कूलों में हुई, जिन्हें राज्य से धन मिलता है. दोनों संस्थानों में हुई मौतों के लिए गावित ने ‘विभिन्न बीमारियों’ को कारण बताया.

सवाल उठाने वाले एमएलसी ने नासिक डिवीजन में सबसे ज्यादा मौतें होने के बारे में सत्यापन की भी मांग की.

मंत्री ने पुष्टि की कि सदन में जिन 108 मौतों पर चर्चा हो रही थी उनमें से 25 प्रतिशत से अधिक मौतें नासिक डिवीजन में हुईं.

गावित ने कहा कि ऐसा इसलिए था क्योंकि नासिक में बड़ी संख्या में आश्रमशालाएं थीं और नामांकन भी उसी के मुताबिक थे. 108 मौतों में से 28 नासिक डिवीजन में हुईं. गावित ने कहा कि इनमें से 20 लड़के थे.

गावित ने कहा कि महाराष्ट्र में 542 निजी, सहायता प्राप्त आश्रमशालाएं हैं, जिनमें वर्तमान में 2.42 लाख छात्र नामांकित हैं.

राज्य सरकार ने 2016 में इस मुद्दे को देखने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्व महानिदेशक डॉक्टर सुभाष सालुंखे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.

गावित ने कहा कि इस समिति द्वारा दिए गए सुझावों के बाद कई पहल की गईं. एक प्रमुख पहल जिला कलेक्टरों के अधीन एक समिति है जो आश्रमशालाओं में खुद जाकर दौरा करेगी और वहां की स्थितियों का निरीक्षण करेगी. गावित ने कहा कि समिति के सदस्य छात्रों के साथ बातचीत करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखा जा रहा है.

गावित ने कहा कि सरकारी आश्रमशाला में मृत्यु के मामले में, परिजनों को 2 लाख का मुआवजा दिया जाता है. जबकि निजी सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए मुआवजा 1 लाख है.

महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में चलने वाले हॉस्टल युक्त स्कूलों (आश्रमशाला) में बच्चों की मौत का मामला हाईकोर्ट तक जा चुका है. सरकार ने भी इन मौतों को रोकने के लिए कई उपाय करने का दावा किया है.

लेकिन विधान सभा में दिए गए आंकड़े दुखी करने वाली और बेहद भयावह तस्वीर पेश करते हैं.

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